साहित्य

ग़रीब घर की बेटी,,,,

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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,,,गरीब घर की बेटी,,,
“चलो निकलो मेरे घर से” शिवानी की सास अपने बेटे पर चिल्ला रही थी क्योंकि वो आज गरीब घर की बेटी शिवानी से कोर्ट मैरिज जो करके आया था, बिना दहेज के| सास के बड़े अरमान थे कि बेटे को पढाया लिखाया है तो उसकी कीमत भी वसूल की जाए, लेकिन उनकी ये इच्छा मन में ही रह गई|शिवानी का पति आशीष अपनी माँ को समझा भी रहा था और माफी भी मांग रहा था, लेकिन उसकी माँ तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी| आशीष अपनी पत्नी शिवानी को लेकर बाहर निकल गया| आशीष के दो भाई और एक बहन भी थी| सबकी उम्र में दो-दो साल का फर्क था, सब ही शादी के लायक थे| आशीष ने घर से जाने के बाद बहुत बार माँ को फोन किए, लेकिन न ढंग से बात की और न ही घर आने को कहा| फिर भी आशीष ने कहा “माँ मेरे घर के दरवाजे आपके लिए सदा खुले हैं| माँ के उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगा, जब आपका दिल चाहे आ सकती हो”|

आशीष की माँ ने दहेज के लालच में दोनो बेटों की शादियाँ बहुत अमीर घरों में की और बहुएँ इतनी नखरीली और आराम परस्त थीं कि आशीष की माँ का जीना हराम कर दिया| आशीष की बहन की शादी की बात जहाँ भी चलती, वहाँ भी दहेज की मांग होती| आशीष की माँ के पास तो पैसे थे नहीं, बहू बेटे कुछ देने को तैयार नहीं थे| बेटी की शादी की उम्र निकली जा रही थी और घर में अपमान भी बहुत होता था|एक दिन आशीष की माँ अपनी बेटी के साथ आशीष के घर पहुँच गई| आशीष ऑफिस में था, शिवानी और बच्चे घर पर थे| बच्चे तो दादी दादी और बुआ बुआ कहकर दोनो से लिपट गए| आशीष की माँ हैरान थी कि इतने छोटे छोटे बच्चे जिन्होंने कभी दादी बुआ को देखा तक नहीं, कैसे प्यार से मिल रहे हैं| शिवानी ने भी पूरे आदर सत्कार के साथ बैठाया और पूरा मान सम्मान दिया और आशीष को भी फोन करके बुला लिया| सास हैरान थी, घर में दोनों बहुएँ बेटों से बात नहीं करने देती थी|

आशीष भी आ गया, न उसने और न शिवानी ने कोई शिकायत की| बस इतना ही कहा “अब आप यहीं रहना, अंधा क्या चाहे! दो आँखें” और आशीष की माँ बहू की अच्छाई को समझ चुकी थी| बच्चे भी दादी और बुआ के साथ घुलमिल गए थे|दो चार दिन बाद शिवानी ने अपनी किसी सहेली के भाई के साथ आशीष की बहन की शादी की बात चलाई और बात बन भी गई| शादी पर माँ ने दोनो बेटों को बुलाने से मना कर दिया| सारा खर्च आशीष ने किया, विदाई के बाद माँ अपनी बहू और बेटे से माफी मांगने लगी तो शिवानी बोली “माँ जी हम आपके बच्चे हैं, गलतियाँ तो हमसे भी हुई हैं, लेकिन माफी माँगते हुए बच्चे ही अच्छे लगते हैं, माता पिता नहीं”| सास बोली “मैं लालच में अंधी हो गई थी, हीरे को पहचान न सकी और इसी कारण बहुत दुख उठाए”| तो शिवानी ने सास को गले लगाया और बोली “माँ जी आपकी ये बहू अब आप पर कोई कष्ट नहीं होने देगी| आपकी गरीब बहू सदा आपके साथ रहेगी”| तो सास बोली “तू तो दिल की इतनी अमीर है, तुझ जैसी बहू तो नसीब वालों को मिलती है”|दोस्तों, इंसान की पहचान धन से नहीं उसके मन से होती है, मन अच्छा हो तो थोड़े में भी बरकत होती है,,,

शिक्षाप्रद कहानिया….