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ग़ज़ा से बाहर निकलने पर क्यों मजबूर हुई इस्राईल की सबसे मज़बूत ब्रिगेड : रिपोर्ट

ज़ायोनी सेना की स्पेशल फ़ोर्स अलजौलानी ब्रिगेड़ के ग़ज़ा से बाहर निकलने के एलान की ख़बरों ने इस्राईली समाज और उसके समर्थकों को चौंका दिया है जबकि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के समर्थकों के लिए यह हैरत की बात इसलिए नहीं है कि उन्हें पहले से ही इस परिणाम का अंदाज़ा था।

अलजौलानी ब्रिगेड को कठिन आप्रेशनों में बहुत माहिर समझा जाता है और इस्राईल के भीतर इसे बड़ी ताक़तवर फ़ोर्स माना जाता है। इस फ़ोर्स को ग़ज़ा के शुजाइया इलाक़े में ज़मीनी आप्रेशन के तहत तैनात किया गया था जहां फ़िलिस्तीनी संगठनों के सैनिकों से उसकी भीषण झड़पें हुईं।

इन झड़पों में अलौजलानी ब्रिगेड के दावे के अनुसार तो कई कमांडरों सहित 40 से अधिक सैनिक मारे गए हैं मगर इस्राईली सूत्र बताते हैं कि इस ब्रिगेड ही नहीं बल्कि पूरी इस्राईली सेना के भीतर हालिया युद्ध में मरने वाले ज़ायोनी सैनिकों की संख्या उससे कई गुना ज़्यादा है जिसका एलान इस्राईली सैनिक अधिकारी कर रहे हैं।

गलजौलानी ब्रिगेड के ग़ज़ा से बाहर निकलने के मतलब यह है कि सैनिकों, हथियारों और मनोबल के स्तर पर इस ब्रिगेड को इतना नुक़सान पहुंच गया है कि अब वह जंग जारी रखने में सक्षम नहीं है।

दरअस्ल ग़ज़ा में ज़ायोनी सेना के ज़मीनी आप्रेशन की जो वीडियो फ़ुटेज आ रही हैं उनसे साफ़ ज़ाहिर है कि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ बड़ी सूझबूझ और बड़ी बहादुरी से ज़ायोनी सेना का मुक़ाबला कर रही हैं और निश्चित रूप से उन्होंने बड़ी लंबी लड़ाई की तैयारी पहले से ही कर रखी थी।

हमास की क़स्साम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू उबैदा ने कहा कि ज़मीनी आप्रेशन शुरू होने के बाद से ग़ज़ा में हमने ज़ायोनी शासन के 720 से अधिक मिरकावा टैंक और दूसरी बक्तरबंद गाड़ियां ध्वस्त की हैं।

जैसे जैसे समय बीत रहा है ज़ायोनी सना पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता जा रहा है क्योंकि दशकों से इस सेना के बारे में प्रोपैगंडा किया गया कि यह दुनिया की सबसे ताक़तवर फ़ोर्स है लेकिन ग़ज़ा अप्रेशन में सारी क़लई खुल गई कि हमास जैसे एक संगठन का मुक़ाबला कर पाना भी इस्राईली सेना के बस की बात नहीं है।

इस्राईली अधिकारियों के सामने सेना की बेइज़्ज़ती के साथ ही एक और बड़ी समस्या यह है कि दूसरे देशों से आकर मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन में बसने वाले सेटलर्ज़ बड़ी तेज़ी के साथ इस्राईल छोड़ रहे हैं। यह संख्या लाखों में पहुंच रही है। इसकी वजह यह है कि अब इन लोगों को इस्राईली सेना की क्षमताओं पर भरोसा नहीं रह गया है।

इस्राईल कोशिश कर रहा है कि किसी तरह टूट जाने वाला यह विश्वास बहाल हो जाए ताकि फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में विस्तारवादी गतिविधियां जारी रखी जाएं और नई हड़पी जाने वाले फ़िलिस्तीन ज़मीनों में सेटलर्ज़ को बसाया जाए। इसके लिए इस्राईली सरकार उन्हें पैसे भी दे रही है। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की बेटी इवान्का ट्रम्प र उनके दामाद जेर्ड कुशनर ने ग़ज़ा के क़रीब बसाई गई ज़ायोनी बस्तियों का दौरा किया ताकि इस तरह इस्राईलियों का मनोबल बढ़ाया जाए कि ख़ाली हो चुकी इन बस्तियों में इस्राईली फिर से आकर रहेंगे।

मगर ग़ज़ा के क़रीब और लेबनान की सीमा के निकट इस्राईली बस्तियों के लोग अब वहां वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें इस्राईली सेना और इंटैलीजेंस की क्षमताओं पर भोसा नहीं रह गया है। बार बार रिपोर्टें आ रही हैं कि यह ज़ायोनी अब यूरोपीय देशों की नागरिकता ले रहे हैं।

इस तरह ज़ायोनी सेना की शिकस्त दरअस्ल इस्राईल के पूरे एजेंडे की शिकस्त है।