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ग़ज़ा में इस्राईल के हाथों मासूमों के नरसंहार के बाद, फ़िलिस्तीनी ईसाइयों का पश्चिमी चर्च के नाम खुला ख़त, लिखा…

फ़िलिस्तीनी ईसाइयों ने पश्चिमी चर्च के नाम खुले ख़त में लिखा हैः हम पश्चिमी ईसाईयों से बड़ी शिद्दत से यह मांग करते हैं कि वे इस मामले में हमारा समर्थन करें। हम अपने ईसाई भाईयों को याद दिलाना चाहते हैं कि ईश्वर, पीड़ितों और कमज़ोरों की आवाज़ सुनता है, हज़रत ईसा ने ताक़तवरों को नसीहत की और पीड़ितों का हाथ थामा।

ग़ज़ा में इस्राईल के हाथों मासूमों के नरसंहार के बाद, फ़िलिस्तीनी ईसाइयों ने पश्चिमी चर्च और धार्मिक नेताओं के नाम एक खुला ख़त लिखा। इस ख़त में पश्चिमी ईसाई नेताओं के ग़लत विचारों का सटीक विश्लेषण करने के साथ ही ईसाईयों का सही मार्गदर्शन किया गया है।

हम यहां इस ख़त के मुख्य बिंदू पेश कर रहे हैः

सही काम करना सीखो, न्याय करो और पीड़ितों और मज़लूमों की रक्षा करो।

इस ख़त पर दस्तख़त करने वाले हम फ़िलिस्तीनी ईसाई संगठन, अपने इस वतन में एक बार फिर हिंसा के इस भयानक रूप पर खेद जताते हैं। इस ख़त को लिखते वक़्त न जाने हमारे कितने परिजन और रिश्तेदार इस्राईल की बर्बर बमबारी की भेंट चढ़ चुके हैं। इनमें वह ईसाई शहीद भी शामिल हैं, जो ग़ज़ा स्थित ऐतिहासिक चर्च पर बमबारी में अपनी जान से हाथ धो बैठे। इस जंग के ख़ौफ़ और भय को व्यक्त करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं।

ईश्वर या राष्ट्र के नाम पर हिंसा के विस्तार से हम बहुत चिंतित हैं। फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के अत्याचारों पर बहुत से पश्चिमी ईसाईयों की ख़ामोशी से हम बहुत दुखी हैं।

हम यह ख़त, इस्राईल का समर्थन करने वाले पश्चिमी धर्मगुरुओं की आलोचना में लिख रहे हैं और हम उनसे तौबा और पश्चाताप की उम्मीद रखते हैं।

बहुत ही अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ पश्चिमी नेताओं के दोहरे और पाखंडी रवैये ने ईसाई धर्म को बहुत नुक़सान पहुंचाया है।

फ़िलिस्तीनी नागरिकों के क़त्लेआम पर पादरियों की चुप्पी से हम काफ़ी नाराज़ हैं। फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े को सही ठहराने वाले पश्चिमी ईसाईयों से भी हमें शिकायत है। हमें इस बात का भी काफ़ी अफ़सोस है कि कुछ ईसाईयों ने ग़ज़ा पर इस्राईल के अमानवीय और बर्बर हमलों को सही ठहराया है।

इस्राईली सेना, ख़ास तौर पर आम नागरिकों का निशाना बना रही है। इसके लिए वह व्हाइट फ़ासफ़ोरस का इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा, भोजन, पानी और ईंधन की आपूर्ति रोक देना और स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी करना और उन्हें नष्ट कर देना इस्राईल की सैन्य रणनीति में शामिल है। इसकी एक मिसाल, अल-अहली एंग्लिकन-बैपटिस्ट अस्पताल पर बमबारी और मरीज़ों और आम नागरिकों का नरसंहार शामिल है। सेंट पोर्फिरियोस ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च पर बमबारी करके इस्राईली सेना ने फ़िलिस्तीनी ईसाई परिवारों को नष्ट कर दिया।

इसके अलावा, हम उन ईसाईयों की प्रतिक्रियाओं को रद करते हैं, जो इस जंग को नज़रअंदाज कर रहे हैं। इस्राईल अपनी स्थापना के बाद से ही फ़िलिस्तीनियों का नस्लीय सफ़ाया करने में लगा हुआ है और आज भी ग़ज़ा में वह वही कर रहा है।

यह वही भयानक ज़ुल्म और अत्याचार है, जिसे कई पश्चिमी ईसाई नेताओं और पादरियों ने लगातार नज़रअंदाज़ किया है और कभी-कभी तो ज़ायोनी विचारों का सहारा लेकर इसे सही ठहराया है।

पिछले 17 साल से इस्राईल ने ग़ज़ा की क्रूर नाकाबंदी कर रखी है और इस 365 वर्ग किलोमीटर की पट्टी को दो मिलियन से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों के लिए खुली जेल बना दिया है।

इस्राईल के हद से ज़्यादा दबाव और निराशा ने कुछ फ़िलिस्तीनी समूहों को दमन और हताशा पर प्रतिक्रिया के लिए मजबूर कर दिया है।

लेकिन अहिंसक प्रतिरोध, जिसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं, उसे नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। यहां तक कि कुछ पश्चिमी सरकारों और नेताओं ने इस्राईल के अपर्थाइड पर बात करने को ही ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया है।

फ़िलिस्तीन और इस्राईल के प्रति पश्चिमी दृष्टिकोण, एक स्पष्ट दोहरे मापदंड से ग्रस्त है, जो फ़िलिस्तीनियों को जानवर समझने और उनकी पीड़ा को नज़रअंदाज़ करने पर ज़ोर देता है।

यह दोहरा मानक उस औपनिवेशिक सोच को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें अमरीका, और अन्य देशों में मूल निवासियों का जातीय सफ़ाया कर दिया गया। अफ़्रीक़ियों को ग़ुलाम बनाने और इसके व्यापार को बढ़ावा देने और दक्षिण अफ्रीक़ा में दशकों के अपरथाइड को सही ठहराने के लिए बाइबिल का सहारा लिया गया।

इसके अलावा, हम सिर्फ युद्ध सिद्धांत की पश्चिमी ईसाई विरासत से अवगत हैं, जिसका इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, जापान में निर्दोष नागरिकों पर परमाणु बम गिराने और अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में तबाही मचाने को उचित ठहराने के लिए किया गया। इसी विरासत का इस्तेमाल इस्राईल आत्मरक्षा के नाम पर फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करने के लिए कर रहा है।

कुछ ईसाई ज़ायोनी परंपराओं को स्वीकार करते हैं और कुछ फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत को बढ़ावा देने में शामिल हैं, जो हम आज कई पश्चिमी देशों और मीडिया में देख रहे हैं।

हम अपने पश्चिमी ईसाई भाईयों से मांग करते हैं कि वह इस मार्ग में हमारे साथ हो जाएं।