दोस्तो आज दुनिया के बहुत से क्षेत्रों व हिस्सों में हिंसा, युद्ध और लड़ाई हो रही है और इन लड़ाइयों में जो हथियार प्रयोग किये जा रहे हैं उनमें से अधिकांश का निर्माण अमेरिका में किया गया है।
शोचनीय बिन्दु यह है कि इन हथियारों का निर्माण उन देशों में होता है जो मानवाधिकार की रक्षा का राग अलापते हैं। सवाल यह पैदा होता है कि जिन देशों के हथियारों से हज़ारों नहीं बल्कि लाखों लोगों का खून बहाया जा चुका और न जाने अभी कितने का बहाया जायेगा तो क्या उन्हें इस बात का पता नहीं है कि उनके यहां जिन हथियारों का निर्माण करके दूसरे देशों में निर्यात किया जा रहा है उसका परिणाम क्या हो रहा है? और ये हथियार वहां के लोगों को उपहार में क्या दे रहे हैं? इसके जवाब में जानकार हल्कों का कहना व मानना है कि जो देश हथियारों का निर्माण करके दूसरे देशों में निर्यात कर रहे हैं वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि उनके हथियारों से कौन- कौन सी त्रासदियां अस्तित्व में आ रही हैं, कितने लोग मारे जा रहे हैं, कितने घर व समाज तबाह हो रहे हैं। आज यमन, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और जापान जैसे देशों में होने वाली तबाहियों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
इन देशों में जो तबाहियां हुई हैं उनमें सबसे अधिक अमेरिका निर्मित हथियारों के प्रयोग से हुई हैं। अगर अमेरिका मानवाधिकार की रक्षा के दावे में सच्चा है तो उसे इन हथियारों का निर्यात नहीं करना चाहिये। आज खुद अमेरिका में गन कल्चर की वजह से आये दिन कितने लोग विशेषकर स्कूली छात्र मारे जाते हैं। क्या अमेरिकी अधिकारी इस बात को नहीं जानते हैं कि अगर अमेरिका में लोगों के पास से हथियार ले लिये जायें तो वहां पर जो आये दिन फायरिंग की घटनायें होती रहती हैं उन पर अगर पूरी तरह नहीं तो काफी हद तक विराम ज़रूर लगाया जा सकता है।
आज अमेरिका सहित पूरी दुनिया में जहां भी विवाद, हिंसा, युद्ध और लड़ाई हो रही है और इन विवादों और लड़ाइयों में जो लोग मारे जा रहे हैं उनमें अमेरिका शामिल है। यूक्रेन में जान माल की भारी तबाही हो चुकी है और न जाने यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा। यूक्रेन की हथियारों से मदद सबसे अधिक अमेरिका कर रहा है। दूसरे शब्दों में यूक्रेन युद्ध से सबसे अधिक लाभ अमेरिका उठा रहा है। उसकी कई वजहें हैं। एक वजह यह है कि यूक्रेन अमेरिकी हथियारों की खपत की बेहतरीन मंडी में परिवर्तित हो गया है और हथियारों का निर्माण करने वाली अमेरिकी कंपनियां खूब मुनाफा कमा रही हैं।
अमेरिका जो यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचना व जारी रखना चाहता है तो उसकी एक वजह यही है। अमेरिका यूक्रेन युद्ध को जो लंबा खिंचना चाहता है उसकी दूसरी वजह यह है कि वह इस युद्ध के माध्यम से अपने सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी रूस को कमज़ोर करके उसकी कमर तोड़ देना चाहता है ताकि दुनिया में उसके वर्चस्ववाद का विस्तार और सरल हो जाये। बहरहाल आज दुनिया में मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाले देशों विशेषकर अमेरिका की नज़र में इंसानों के जान की कोई कीमत नहीं है और अगर कीमत होती तो अमेरिका और पश्चिमी देशों में हथियारों का निर्माण करने वाली कंपनियां इतना न फलती- फूलतीं। कुल मिलाकर अगर अमेरिका को खून का सबसे बड़ा व्यापारी व सौदागर कहा जाये तो कोई ग़लत न होगा।
जॉन बोल्टन ने दोबारा परमाणु हथियारों को तैनात किये जाने की मांग कर दी
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने कहा है कि अमेरिका को चाहिये कि वह अपने परमाणु हथियारों को उत्तर कोरिया को चेतावनी देने के लिए दोबारा दक्षिण कोरिया में तैनात करे।
उन्होंने मंगलवार को कहा कि अमेरिका को चाहिये कि वह अपने परमाणु हथियारों को एक बार फिर दक्षिण कोरिया में तैनात करे ताकि उत्तर कोरिया को स्पष्ट संदेश दिया जा सके। जॉन बोल्टन का यह बयान उस वक्त सामने आ रहा है जब दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति अपने अमेरिकी समकक्ष से भेंटवार्ता के लिए आजकल वाशिंग्टन में हैं और अपेक्षा है कि दोनों पक्ष क्षेत्र में अपने घटकों की रक्षा के लिए परमाणु हथियारों की तैनाती के बारे में भी वार्तालाप करेंगे।
अमेरिका हर कुछ समय बाद दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करके यह दिखाना चाहता है कि सिओल के साथ उसके बहुत गहरे संबंध हैं।
सिओल में आयोजित एक कार्यक्रम में जॉन बोल्टन ने कहा कि दक्षिण कोरिया में एक बार फिर अमेरिका द्वारा अपने परमाणु हथियारों के तैनात किये जाने से इस देश के लोगों की सुरक्षा की भावना में वृद्धि का कारण बनेगा और साथ ही प्यूंगयांग के लिए चेतावनी भी होगा। उन्होंने कहा कि कोरिया प्रायद्वीप में परमाणु हथियारों का दोबारा तैनात किया जाना उत्तर कोरिया को रोकने हेतु हमारे इरादे की गम्भीरता की सूचक भी होगा।
अमेरिका ने वर्ष 1958 में दक्षिण कोरिया में अपने परमाणु हथियारों को तैनात किया था और वर्ष 1991 में उन्हें वहां से निकाल लिया। अमेरिका उस समय से इस बात के प्रति वचनबद्ध हुआ है कि वह अपनी पूरी संभावना के साथ दक्षिण कोरिया की रक्षा करेगा।
ध्यान योग्य बात यह है कि अगर अमेरिका देशों के मध्य शांति व सुरक्षा स्थापित करने के लिए प्रयास करता है तो उससे पूछा जाना चाहिये कि उसने दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियारों को क्यों तैनात किया था? क्या उसके इस काम से कोरिया प्राय द्वीप में शांति स्थापित हो गयी? अमेरिका स्वयं को एक ज़िम्मेदार देश कहता व समझता है पर अमल में हम देखते हैं कि जो काम अमेरिका कर चुका है और कर रहा है वह दुनिया के किसी भी देश ने न तो किया है और न कर रहा है।
मिसाल के तौर पर अमेरिका ने वर्ष 1945 में जापान के दो नगरों हीरोशीमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी करके सामूहिक रूप से दो लाख से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। जापान के इन दोनों नगरों में जान- माल की भारी तबाही हुई और रोचक बात यह है कि इस महापराध के लिए अमेरिका ने आज तक जापान से माफी तक नहीं मांगी है।
कितनी अजीब बात है कि अगर फिलिस्तीनियों की शहादतप्रेमी कार्यवाही में कोई जायोनी मारा जाता है तो अमेरिका और उसकी हां में हां मिलाने वाले उस फिलिस्तीनी को आतंकवादी कहते हैं जबकि जायोनी लाखों फिलिस्तीनियों का खून बहा चुके हैं और उनकी मातृभूमि पर 70 से अधिक वर्षों से कब्ज़ा कर रखा है परंतु जब अमेरिका दो लाख से अधिक जापानियों को मौत के घाट उतार देता है तो वह आतंकवाद की परिभाषा भूल जाता है और पूरी दुनिया को मानवाधिकार की रक्षा और डेमोक्रेसी जैसी चीज़ों का पाठ पढ़ाता- फिरता है।
विश्व जनमत अब इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ गया है कि अमेरिका, मानवाधिकार के विषय का प्रयोग वाशिंग्टन की वर्चस्ववादी नीतियों के विरोधी देशों पर दबाव डालने के लिए हथकंडे के रूप में करता है। ईरान, उत्तर कोरिया और रूस जैसे देशों पर अमेरिका के बहुत से प्रतिबंधों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।