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ख़ुदकुशी हराम है….By-Farooque Rasheed Farooquee

Farooque Rasheed Farooquee
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. ख़ुदकुशी हराम है
अल्लाह ने फ़रमाया कि जिसने अपने नफ़्स (यानी अपनी जान) को क़त्ल किया उसका बदला जहन्नम है जहाॅं वो हमेशा रहेगा।
ख़ुदकुशी आमतौर पर वो लोग करते हैं जो दुनिया की ज़िन्दगी के बाद किसी और ज़िन्दगी —क़ब्र और आख़िरत, जन्नत और जहन्नम के बारे में नहीं सोचते। लोग दुनिया के नुक़सान, दुनिया की मुश्किलों, दुनिया की नाकामियों, लम्बी बीमारी की तकलीफों से घबराकर ख़ुदकुशी कर लेते हैं। लोग अक्सर कहते हैं कि जब तक ज़िन्दगी है उसी वक़्त तक सारी परेशानियाॅं हैं और मौत के बाद सब कुछ ख़त्म हो जाता है। शायद इन लोगों का यह ख़्याल होता है कि ज़िन्दगी ख़त्म होने से इंसान का वुजूद ख़त्म हो जाता है। हक़ीक़त यह है कि मौत के बाद हमेशा-हमेशा रहने वाली ज़िन्दगी शुरू होती है। वही अस्ल ज़िन्दगी है और यह दुनिया सिर्फ़ उस ज़िन्दगी की तैयारी के लिए है।

हम किसी जानदार को पैदा नहीं कर सकते और न हमने अपने आप को पैदा किया है। जिसने हमें यह ज़िन्दगी दी है उसी को हक़ है कि जब चाहे अपनी अमानत यानी हमारी ज़िन्दगी वापस ले ले। जिसने पैदा किया है वही मौत देता है। ख़ुदकुशी करने वाला ईमान की हालत पर नहीं मरता। ईमान का ताल्लुक़ अल्लाह की रहमत, अल्लाह की मदद और अल्लाह से वाबस्ता उम्मीद से होता है। एक मोमिन की पूरी ज़िन्दगी अल्लाह से ख़ौफ़ और उम्मीद के दरमियान गुज़रती है।

इस दुनिया की तकलीफ़ों और ग़मों से घबराकर इंसान ख़ुदकुशी कर लेता है। हमें यह सोचना चाहिए कि क्या मौत हमें हर तकलीफ़ से आज़ाद कर देगी? ख़ुदकुशी के फ़ौरन बाद क़ब्र का अज़ाब शुरू हो जाएगा। फिर आख़िरत में हमेशा रहने वाला जहन्नम का अज़ाब होगा। ख़ुदकुशी के बाद ज़िन्दगी का ख़ात्मा वही मान सकता है जो अल्लाह को न मानता हो।

ज़िन्दगी की जो तकलीफ़ें या नाकामियाॅं ख़ुदकुशी के लिए आमादा करती हैं वो क़ब्र की तकलीफ़ और जहन्नम के अज़ाब के सामने कुछ भी नहीं हैं। अगर आप शिद्दत की तकलीफ़ या कोई गहरा सदमा महसूस कर रहे हैं तो अल्लाह से उसको दूर करने के लिए दिल से दुआ कीजिए। हालात की मजबूरी में आप यह दुआ भी कर सकते हैं, “ऐ अल्लाह अगर ज़िन्दगी मेरे लिए बेहतर हो तो मुझे ज़िन्दगी अता फ़रमा और अगर मौत मेरे लिए बेहतर हो तो मुझे मौत अता फ़रमा।” अगर हर तरह का ग़म बर्दाश्त कर लिया और अल्लाह से दुआ करते रहे तो अल्लाह या वो ग़म दूर कर देगा या फिर क़ब्र और आख़िरत की बेहतरीन ज़िन्दगी अता फ़रमाएगा। अल्लाह से रोज़ यह दुआ कीजिए कि ऐ अल्लाह मुझ पर वो बोझ न डाल जिसे बर्दाश्त करने की मुझ में ताक़त नहीं। यह बात याद रखिए कि कोई ईमान वाला कभी किसी हाल में ख़ुदकुशी नहीं कर सकता। अल्लाह हम सबका ख़ात्मा ईमान पर करे। अल्लाह हम सब को नेक अमल करने की तौफ़ीक़ दे और दुनिया और आख़िरत में कामयाब करे।……आमीन!

(फ़ारूक़ रशीद फ़ारूक़ी)