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ख़बरें ईरान से : ईरान का तेल निर्यात पिछले पांच साल में सबसे ऊचे स्तर पर : विनाश की क़गार पर पहुंचा इस्राईल!

अमरीका की पाबंदियों के बावजूद इस्लामी गणराज्य ईरान का तेल निर्यात इस समय पिछले पांच साल में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है।

मई महीने में ईरान ने रोज़ाना 15 लाख बैरल से अधिक तेल का निर्यात किया है। यह वर्ष 2018 के बाद से ईरान के तेल निर्यात की सबसे ऊंची दर है।

रोयटर्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अमरीका की पाबंदियों के बावजूद ईरान में तेल का उत्पादन और निर्यात नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। वर्ष 2018 में अमरीका के ट्रम्प प्रशासन के परमाणु समझौते से निकल जाने के बाद और ईरान पर अमरीका की ओर से कठोर पाबंदियां लगाए जाने के बाद ईरान का तेल निर्यात काफ़ी गिर गया था।

इससे पहले तक ईरान रोज़ाना लगभग 25 लाख बैरल तेल का निर्यात कर रहा था।

ईरान ने मई महीने में रोज़ाना 30 लाख बैरल से अधिक तेल का उत्पादन किया। ईरान के तेल उत्पादन और निर्यात की दर में वृद्धि तब हुई है जब ओपेक प्लस ने अपना तेल का उत्पादन कम कर दिया है ताकि तेल की मंडियों में स्थिरता आ सके।

अमरीका के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि ईरान पर सारे प्रतिबंध जारी रहेंगे और अगर कोई देश ईरान से व्यापार करता है तो उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाएगी।

इस समय चीन ईरान के तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार है जबकि कुछ अन्य देश भी ईरान से तेल ख़रीद रहे हैं।


परमाणु उद्योग की उपल्धियां देखकर सुप्रीम लीडर बहुत खुश हुएः ईरान परमाणु ऊर्जा संस्था के डायरेक्टर

ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख मुहम्मद इस्लामी ने कहा कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने परमाणु उद्योग की एग्ज़ीबिशन का मुआइना करते समय परमाणु क्षेत्र की उपलब्धियों पर ख़ुशी जताई और इसका समर्थन किया।

मुहम्मद इस्लामी ने इस्फ़हान नगर में छात्रों के एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए कहा कि आज यह सच्चाई खुल कर सामने आ गई कि दुश्मनों ने परमाणु कार्यक्रम के बहाने ईरान पर क्यों पाबंदियां लगाईं। उन्होंने कहा कि परमाणु और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति और विकास विस्तारवादी व वर्चस्ववादी व्यवस्था पर अंकुश लगाने का सबसे प्रभावी तरीक़ा है और हम अपनी इस क्षमता को क़ायम रखेंगे।

ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख ने कहा कि साम्राज्यवादी ताक़तों ने हमेशा दूसरे देशों के संसाधनों को लूटा है मगर आज लूटने का तरीक़ा बदल गया है, अब मनोवैज्ञानिक तरीक़ों से देशों के युवाओं और वैज्ञानिकों को हथियाया जा रहा है और इसके लिए सबसे प्रभावी तरीक़ा दूसरे देशों के युवाओं में निराशा फैलाना है।

उन्होंने कहा कि स्वाधीनता हमारा नारा है और हम किसी के भी दबाव में आने वाले नहीं हैं, हम अपने युवाओं की वैज्ञनिक क्षमताओं का प्रयोग करते हुए दुनिया में प्रगति का रास्ता तय करेंगे।

मुहम्मद इस्लामी ने कहा कि परमाणु क्षेत्र का विकास राष्ट्रीय आत्म विश्वास का प्रतीक है और हमारे विशेषज्ञों ने इस मैदान में ख़ुद को बुलंदी की आख़िरी सीमाओं तक पहुंचा दिया है।

उन्होंने तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में परमाणु उद्योग की उपलब्धियों की एग्ज़ीबेशन का सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के ज़रिए मुआइना किए जाने का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम लीडर इस एग्ज़ीबिशन को देखकर बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने हमारा भरपूर समर्थन किया। इस्लामी ने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों ने दुश्मनों की साज़िशों के बावजूद बड़े साहस से काम किया और ख़ुद को इस विज्ञान की आख़िरी सीमा तक पहुंचाया।

ईरान और क्यूबा के बीच 6 अहम समझौतों पर हुए हस्ताक्षर

इस्लामी गणराज्य ईरान और क्यूबा के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने-अपने देशों के राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति में 6 आपसी सहयोग के समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से, ईरान ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में निकारागुआ, क्यूबा, ​​वेनेज़ुएला और बोलीविया जैसे कुछ देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए हैं। इन लैटिन अमेरिकी देशों का संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में फल-फूल रहे साम्राज्यवाद और वैश्विक अहंकार से लड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है। साथ ही वेनेज़ोएला, क्यूबा और निकारागुआ हमेशा इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ अपने संबन्धों को अधिक से अधिक विस्तृत करने पर बल देते आए हैं। हाल के वर्षों में, ईरान और लैटिन अमेरिका के प्रगतिशील देशों के बीच संबंध मज़बूत होते जा रहे हैं। इन संबंधों का राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक, औद्योगिक, ऊर्जा, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि तेहरवीं सरकार के कार्यकाल के आरंभ से ही लैटिन अमरीकी देशों और ईरान के बीच कूटनयिकों का आना-जाना शुरू हो चुका था। सैयद इब्राहीम रईसी की सरकार ने एक बार फिर से लैटिन अमरीकी देशों की ओर अपने ध्यान को तेज़ी से केन्द्रित किया है। इससे ईरान को अलग-थलग करने के अमरीकी प्रयास को विफल बनाया जा सकता है और साथ अमरीका की एकपक्षीय वर्चस्ववादी नीतियों का खुलकर विरोध किया जा सकता है।\\

अब विनाश की कगार पर पहुंच चुका है ज़ायोनी शासनः सर्वोच्च नेता

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पिछले सात दकशों की तुलना में अब ज़ायोनी शासन बहुत बदल चुका है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी प्रतिरोध संगठन के महासचिव और उनके साथ आए प्रतिनिधिमण्डल के साथ मुलाक़ात में ज़ायोनी शासन की स्थति को सत्तर साल पहले की अपेक्षा बहुत बदला हुआ बताया है।

उन्होंने कहा कि दुश्मन अब रक्षात्मक पोज़ीशन में आ गया है जिससे ज्ञात होता है कि जेहादे इस्लामी ने सही मार्ग का चयन किया जिसपर वह होशियारी के साथ बढ़ रहा है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार को जेहादे इस्लामी के शिष्टमण्डल के साथ भेंट में कहा कि इस संगठन और अन्य फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध संगठनों ने ज़ायोनी शासन के विरुद्ध संघर्ष के मुख्य कारण को समझ लिया है। उन्होंने कहा कि ग़ज्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के बढ़ते वर्चस्व के कारण ज़ायोनी अब घुटनों पर आ गए हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस रास्ते को आगे भी जारी रखा जाए।

सर्वोच्च नेता के बयान से यह बात साफ हो जाती है कि दशकों तक फ़िलिस्तीनियों पर अत्याचार करने वाले ज़ायोनी शासन का पतन अब बहुत ही स्पष्ट दिखाई देने लगा है। वर्तमान समय में अवैध ज़ायोनी शासन के भीतर जारी आंतरिक कलह और दूसरी ओर फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधकर्ता गुटों की बढ़ी सैन्य शक्ति और समर्थन ने इस शासन के विघटन की आशा को बढ़ा दिया है।

अवैध ज़ायोनी शासन के भीतर वहां के प्रधानमंत्री नेतनयाहू की न्यायिक सुधार योजना के विरुद्ध हालिया महीनों के दौरान होने वाले व्यापक विरोध प्रदर्शन, ज़ायोनी संसद क्नैसेट में बढ़ते मतभेद, एक संगठित मंत्रीमण्डल के गठन में विफलता, शासकों के प्रति वहां लोगों में अविश्वास, ज़ायोनियों का उल्टा पलायन और इसी प्रकार की बहुत सी बातों ने ज़ायोनी शासन को भीतर से बहुत ही कमज़ोर कर दिया है। क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्री स्तर पर भी ज़ायोनी शासन के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं।

दशकों तक ज़ायोनी शासन और उसका समर्थन करने वाले देशों के अथक प्रयासों के बावजूद वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्री स्तर पर ज़ायोनी शासन अधिक अविश्वसनीय हो गया है। फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और ज़ायोनियों के विरोध में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली व्यापक रैलियां, इसी वास्तविकता को साबित करती हैं। क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन भी अब ज़ायोनी शासन के हित में नहीं हो रहे हैं क्योंकि अमरीकी प्रभाव अब कम होता जा रहा है।

महत्वपूर्ण बिंदु जिसकी ओर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ध्यान आकृष्ट करवाया वह फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधकर्ता गुटों का बढ़ता हुआ प्रभाव है। इस समय पूर्व की तुलना में अधिक सशक्त और अधिक एकजुट हैं। हालिया दिनों में ज़ायोनियों के विरुद्ध पांच दिवसीय युद्ध में जेहादे इस्लामी की सफलता इसी बात को सिद्ध करती है।

इस संदर्भ में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि ग़ज़्ज़ा के हालिया युद्ध में जेहादे इस्लामी ने बहुत अच्छा काम किया। पिछले 70 वर्षों की तुलना में इस समय ज़ायोनी शासन की हालत बहुत बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि वास्तव में ज़ायोनी नेताओं को इस बात को लेकर चिंतित होने का स्वभाविक अधिकार है कि इस अवैध शासन की 80वीं वर्षगांठ को वे नहीं देख पाएंगे।