विशेष

तल्ख़ियां : क्या ये दिन देखना हम डिज़र्व करते थे?

Aadesh Rawal
@AadeshRawal
1971 में महज़ 13 दिन की लड़ाई में इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे।उनके 90000 से ज्यादा फौजियों को युद्धबंदी बना लिया था।जबकि अमेरिका ने इंदिरा गांधी को धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान पर हमला किया तो वह नौसेना का बेड़ा भेज देगा।इंदिरा गांधी डरी नही।बांग्लादेश को अलग कर दिया।

Markandey Katju
@mkatju
Looks like all parties benefited by the recent Indo-Pak conflict.
Pakistan got an IMF loan, China tested their jets and missile system, Turkey tested their drones, the BJP ensured a sweeping victory in the forthcoming Bihar and other elections, France tested Rafale, the Pahalgam terrorists got their 72 houris, and Trump got his credit and may get the Nobel Peace Prize.

Jairam Ramesh
@Jairam_Ramesh
ब्रह्मोस इन दिनों काफी चर्चा में है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को मिलाकर रखा गया है। यह भारत-रूस सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह शासन में निरंतरता का एक और अद्वितीय प्रमाण भी है-जिसे नकारा नहीं जा सकता, भले ही आज दिल्ली की सत्ता प्रतिष्ठा इसे मिटा देने की लगातार कोशिश करे।

भारत का एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम 1983 में शुरू हुआ था, और इसने कई महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल कीं। 1990 के दशक के मध्य में, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और उनके सहयोगियों जैसे डॉ. शिवथानु पिल्लई ने रूस के साथ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के लिए साझेदारी की आवश्यकता महसूस की। इसके परिणामस्वरूप 12 फरवरी 1998 को एक inter-governmental समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जब इंदर कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री थे। गौरतलब है कि वे 1976-80 के बीच सोवियत संघ (USSR) में भारत के राजदूत भी रह चुके थे। इसके बाद पहला औपचारिक अनुबंध 9 जुलाई 1999 को हुआ, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। पहला सफल परीक्षण 12 जून 2001 को हुआ था।

डिजाइन, सिमुलेशन और एयरोस्पेस ज्ञान से जुड़ी सुविधाओं वाले ब्रह्मोस मुख्यालय परिसर का उद्घाटन दिसंबर 2004 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा नई दिल्ली में किया गया था।

इसके बाद ब्रह्मोस मिसाइल को 2005 में भारतीय नौसेना और 2007 में भारतीय थलसेना में शामिल किया गया। इसकी वायु-प्रक्षेपणीय (एयर-लॉन्च्ड) संस्करण 2012 में सामने आया। यह सब उस समय हुआ जब डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे। उन्हीं की नेतृत्व में 2005 में ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौता हुआ, जिसने भारत के लिए मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम (MTCR) में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्हीं के कार्यकाल में हैदराबाद में ब्रह्मोस इंटीग्रेशन कॉम्प्लेक्स और तिरुवनंतपुरम में ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड की स्थापना भी हुई।

Shyam Meera Singh
@ShyamMeeraSingh
क्या ये दिन देखना हम डिज़र्व करते थे?
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युद्ध/सीमा मामलों पर सरकार कोई हो हमेशा देश हित में फैसले लेती है। चाहें नेहरू हों या वाजपेयी। लेकिन ये मोदी थे जिन्होंने नेहरू-मनमोहन को टार्गेट किया जैसे वे पाक-चीन से लड़ना ना चाहते हों। कमजोर हों। जबकि सीमा विवादों की प्रतिक्रिया- समय, तैयारी, रिस्क देखकर की जाती है। चूँकि अंततः युद्ध सेना लड़ती है कोई नेता नहीं।

लेकिन मोदी ने ऐसी ग़लत प्रथा डाली जिसमें नेहरू से लेकर मनमोहन को ये कहकर बदनाम किया जैसे उनकी वजह से देश कमजोर हो और पाकिस्तान-चीन को जवाब ना दे रहा हो। और मोदी आ जाएँगे तो देश मजबूत हो जाएगा। जैसे युद्ध सेना नहीं मोदी लड़ेंगे।

जबकि एक प्रधानमंत्री ख़ुद में कुछ नहीं होता। देश की ताक़त ही प्रधानमंत्री की ताक़त होती है। देश की ताक़त ही नेहरू-मोदी की ताक़त है।

मोदी ने अपनी मुँहफट्टी की वजह से नेहरू-मनमोहन का नाम ले लेकर विदेश मामलो में जनता के हस्तक्षेप की एक ख़राब प्रथा को जन्म दिया। युध्द नीतियाँ जनदबाव में नहीं होनी चाहिए अपितु सेना और देश की क्षमता और रिस्क असेसमेंट को देखते हुए होनी चाहिए। और ये निर्णय का काम सेना और सरकार ख़ुद करनी चाहिए।

Modi ने पिछली सर्जिकल स्ट्राइक का सेहरा सेना के सर पर ना बांधकर ख़ुद के सर पर बाँध लिया। ख़ुद को हीरो बना लिया। इस कारण गुप्त मिशनों की जगह सर्जिकल स्ट्राइक जैसी फोटोजेनिक कार्रवाइयां इंपोर्टेंट हो गईं।

जबकि सेना के गुप्त मिशन और सरकार के डिप्लोमेटिक एफ़र्ट्स पाकिस्तान को अधिक नुक़सान पहुँचा सकते थे।
लेकिन नकी टॉप सीक्रेट मीटिंग भी 4K रेजोल्यूशन वाले कैमरों के आगे होती हैं। रॉ के गुप्त मिशनों में वो बात नहीं जो इन कैमरे वाले कामों में थी।

जबकि ये क्लियर हो चुका था कि इस बार दोनों न्यूक्लियर स्टेट युद्ध में जा सकते हैं। इधर मोदी को जनदबाव के कारण “फोटो” तो खिंचाने ही थे। क्योंकि देश में जिंगोइज्म फैलाने का काम इन्होंने ही किया है। इसलिए बिना असेसमेंट के कार्रवाई कर दी। और देश एक ऐसे युद्ध में चला गया जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं था। ना हिंदुस्तान, ना पाकिस्तान, न बाहरी देश।

चूँकि सबको पता था कि दोनों न्यूक्लियर स्टेट हैं कुछ भी उल्टा सीधा हुआ तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। अंततः दोनों आनन-फानन में सीजफ़ायर के लिए तैयार हो गए।

इससे दुनिया में मैसेज गया कि हमने युद्ध पहले शुरू किया और हम इतनी जल्दी सीजफ़ायर के लिए मान भी गए। बिना किसी शर्त के। फिर युद्ध क्यों किया था? ऊपर से पाकिस्तान लगातार सीजफ़ायर करता रहा। इससे हमारी छवि और अधिक डिफेंसिव हो गई। हम शिकायत कर रहे हैं कि पाकिस्तान सीजफ़ायर तोड़ रहा है। इधर हम इंडिया में कह रहे हैं कि पाकिस्तान सीजफ़ायर चाहता था। फिर भी पाकिस्तान के चाहने से हम क्यों माने? हम तो उसे चटकाने गए थे। फिर हम बिना किसी शर्त के उसकी बात क्यों माने? अगर उसने सीजफायर मांगा तो वो तोड़ क्यों रहा है? और अगर तोड़ रहा है तो हम उसपर दोबारा बड़ी कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे? सच यही है कि दोनों ही देश युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं और ना थे। दोनों देश इसके रिस्क को जानते हैं।

लेकिन एक सच ये भी है कि इस आनन-फानन कार्रवाई ने हमारा नुक़सान करवाया है। हम चाहते तो सीक्रेट ऑपरेशंस से पाकिस्तान को दस गुना नुक़सान करा सकते थे। बलूचिस्तान की लड़ाइ को तेज करा सकते थे। मगर मोदी ने ऐसी जनता का निर्माण किया जिसे रोकना ना मोदी के बस की बात थी और ना किसी और की। ये सब मोदी के छवि निर्माण और जल्दबाजी के कारण हुआ।

मैं कर्नल जीडी बख्शी को पसंद नहीं करता। मगर कल उनके उतरे चेहरे और टीवी पर उनकी फ्रस्टेशन को देखके दिल उदास हुआ। सेना अपना जीवन देकर इस देश का स्वाभिमान जिंदा रखती है। सत्तर सालों में हमारी ये स्थिति नहीं आई। सेना को जो टास्क दिए गए सेना ने हमेशा पूरे किए। पाकिस्तान से तीन-तीन युद्ध जीते। उस भिखारी देश के सामने मोदी ने हो-हल्ला के चक्कर में अनर्थ करवा दिया।

इसलिए नीति-निर्माता समझदार, संयमी, विवेकवान होना चाहिए। जो सही समय का इंतजार करे, जनदबाव में ना आए। और अपनी छवि निर्माण से अधिक देश के असली भले की सोचे।

इतने शक्तिशाली देश, इतनी शौर्यवान आर्मी के बावजूद हम आज ये स्थिति देख रहे हैं तो सिर्फ़ एक आदमी के कारण।

वरना हम दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी में से एक हैं। हम भी न्यूक्लियर पॉवर स्टेट हैं। हमारे पास भी दुनिया की सबसे बड़ी आर्मी में से एक है। एक से एक न्यूक्लियर शिप, जहाज़, हथियार हैं। हम ये दिन देखना एकदम डिज़र्व नहीं करते।

हिंदुस्तान ज़िंदाबाद। इंडियन आर्मी ज़िंदाबाद 🇮🇳

Supriya Shrinate
@SupriyaShrinate
अपने 22 मिनट के राष्ट्र के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन चीज़ों की चर्चा नहीं की वो यह हैं👇

▪️ट्रम्प बार बार क्यों कह रहे हैं कि America ने ceasefire करवाया, आज तो उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्होंने आपको व्यापार का हवाला देकर धमकाया?

▪️जब भारतीय सेना पाकिस्तान को नाको चने चबवा रही थी, और आप ही ने कहा हमारी सेना आक्रामक कार्यवाही से पाकिस्तान बौखला गया था, तब ऐसे में आपने ceasefire क्यों किया?

▪️आपने ट्रम्प की कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश पर कुछ नहीं कहा. क्या आपको अमेरिका की दखलंदाज़ी मंज़ूर है?

▪️आप अमेरिका के उस वक्तव्य पर भी खामोश रहे जिसमें भारत और पाक प्रधानमंत्रियों की किसी तीसरी जगह मुलाकात की चर्चा की गई. क्या आप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मिलने वाले हैं? क्या आप पाकिस्तान से diplomatic संबंध स्थापित करने वाले हैं?

▪️हमारी सेना ने पाकिस्तान में स्थित आतंकीं कैम्प ज़रूर तबाह किए, लेकिन वो दहशतगर्द कहाँ हैं जिन्होंने पहलगाम में निर्मम हत्या की?

▪️जब सारा देश और विपक्ष आपके साथ था तब आपने POK से पाकिस्तान को क्यों नहीं खदेड़ा?

▪️ हमारे BSF जवान पूर्णम साहू जो 19 दिन से पाकिस्तान की गिरफ्त में हैं, उनको हम वापस कब लाएंगे?

▪️और एक अंतिम सवाल, पहलगाम में इतनी बड़ी सुरक्षा और intelligence की चूक हुई कैसे? इसके लिए आप ज़िम्मेदार हैं या गृह मंत्री?

इन सवालों का जवाब देश आपके संबोधन के बाद भी कर रहा है – जिनमें से कुछ ज़रूरी सवाल हमारी संप्रभुता को लेकर हैं

Kranti Kumar
@KraantiKumar
कांग्रेस पार्टी की ऑपेरशन सिंधुर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस.

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भूपेश बघेल ने आरोप लगाया जब देश और कांग्रेस पार्टी ऑपेरशन सिंधुर पर सेना और सरकार के साथ थी,

तब बीजेपी के नेता ट्वीटर पर कांग्रेस को बदनाम कर रहे थे कि, सैन्य कार्यवाही पर राजनीतिक फायदा उठा रहे थे.

भूपेश बघेल ने सवाल उठाया जब सेना पाकिस्तान को सबक सिखा रही थी तब अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति आकर युद्ध विराम की घोषणा करते हैं.

क्या ये कूटनीतिक नाकामी नही है, क्या सरकार ने तीसरे पक्ष का दखल स्वीकार कर लिया है. कांग्रेस पार्टी जानना चाहती है युद्ध विराम में पाकिस्तान से क्या वादा मिला ?

बिल्कुल सही बात है, देश को जानने का हक़ है पाकिस्तान ने गलती मानी है या नही ?

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, लेख X पर वॉयरल हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं!