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क्या मोदी सरकार चीनी निवेश को लेकर नरम हुई है?

पिछले दो सालों में भारत में सीमावर्ती देशों से आए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ़डीआई) के 80 प्रस्तावों को मंज़ूरी दी गई है. भारत में निवेश के इनमें से अधिकतर प्रस्ताव चीन से आए हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) से सूचना के अधिकार के तहत मिले आंकड़ों के आधार पर ये रिपोर्ट दी है.

अख़बार लिखता है कि घाटे में चल रहीं भारतीय कंपनियों पर चीनी कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिए और कोरोना महामारी के दौरान आर्थिक स्थिति का फ़ायदा उठाने की आशंका के चलते भारत सरकार ने 18 अप्रैल, 2020 को एफ़डीआई नीति में बदलाव किया था.

इस बदलाव के तहत सीमावर्ती देशों के भारत में निवेश के लिए सरकार की अनुमति को अनिवार्य बना दिया गया था. इससे पहले, इनमें से कुछ प्रस्ताव कम महत्व वाले क्षेत्रों में ऑटोमैटिक रूट से पास किए जा सकते थे.

इस फ़ैसले के साथ ही पूर्वी लद्दाख में अप्रैल-मई 2020 में भारत और चीन के बीच गतिरोध की स्थिति बन गई थी जिसने बाद में हिंसक रूप ले लिया था. 15 जून 2020 को चीन के साथ टकराव में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी.

कमांडर स्तर की कई वार्ताओं के बाद भी चीन के साथ ये मसला पूरी तरह नहीं सुलझा है. इस गतिरोध के कारण कई चीनी ऐप पर भी भारत ने प्रतिबंध लगा दिया था.

आरटीआई के ज़रिए मिले जवाब में कहा गया है, ”कुल आए 388 में से 80 प्रस्तावों को निवेश की मंज़ूरी दी गई है. किस-किस क्षेत्र में निवेश के लिए प्रस्ताव स्वीकार किया गया है, इसकी जानकारी विभाग के पास नहीं है.”

मार्च में वाणिज्य मंत्रालय ने संसद को सूचित किया था कि भारतीय सीमा से लगने वाले देशों से 18 अप्रैल, 2020 से एक मार्च, 2022 के बीच 13,624 करोड़ रुपये का निवेश आया है.

इसमें से पांच हज़ार करोड़ रुपये दवाइयों और फार्मा सेक्टर में और 2907 करोड़ सेवा क्षेत्र में निवेश किया गया है.

अक्टूबर 2020 में चीन से आने वाले एफ़डीआई प्रस्तावों की सुरक्षा मंज़ूरी की बारीकी से जांच के लिए एक एफ़डीआई प्रस्ताव समीक्षा समिति का गठन किया गया था. इस समिति के प्रमुख केंद्रीय गृह सचिव थे और सचिव डीपीआईआईटी इसके सदस्य थे.

कम महत्व वाले क्षेत्रों में ऑटोमैटिक रूट से 100 प्रतिशत एफ़डीआई की अनुमति है. इसके लिए गृह मंत्रालय की अनुमति नहीं लेनी पड़ती. लेकिन, रक्षा, मीडिया, टेलिकम्यूनिकेशन, सेटेलाइट, निजी सुरक्षा एजेंसियों, नागरिक विमानन और खनन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश के लिए सरकारी अनुमति या गृह मंत्रालय से सुरक्षा मंज़ूरी की ज़रूरत होती है.

लद्दाख, जम्मू और कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश समेत अन्य संवेदनशील स्थानों में भी निवेश के लिए क्लीयरेंस की ज़रूरत होती है.

भारत की पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से सीमा लगती है. जिन देशों के निवेशक संशोधित एफ़डीआई नीति के तहत नहीं आते उन्हें लेन-देन पूरा होने के बाद केवल भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचना देनी होती है.