साहित्य

क्या मुझे रोता देख तुम्हारा मन पिघलता नहीं….

Geeta Baisoya ·
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क्या मुझे रोता देख तुम्हारा मन पिघलता नहीं….
मेरा मुरझाए चेहरे को देख, क्या तुम्हें बुरा लगता नहीं…
क्यों तुम पत्थर दिल हो जाते हो…
कैसे मुझे रोता छोड़, तुम सो जाते हो…
रात अक्सर निकल जाती है मेरी,यही सोच में…
क्या तुम्हें मेरी फिक्र नहीं, या तुम्हें अब मेरी जरूरत नहीं….
क्यूँ तुम मेरे पास बैठकर मुझसे बात करते नहीं…
क्यूँ हूं मैं उदास मेरे हाथ में हाथ लेकर मुझसे पूछते नहीं….
चाहती हूं तुम बैठो मेरे पास मुझसे बात करो….
तुम्हारी कंधे पर फिर सर रखकर मैं जी भर कर रो लूं….
जो भी हैमन में मेरे वो सब तुमसे मैं बस कह लूं….
लगा के सीने से तुम मुझे दुलार करो…
चुमकर मेरे माथे को मुझे प्यार करो…
पोंछ कर मेरे आंसुओं को मुझ से तुम बात करो…
क्या है मेरी आंसुओं की वजह फिर उसका तुम इलाज करो…
मगर मुझ से एक बार बात करो….
Geeta Baisoya….. ✍️

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Geeta Baisoya
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मन के भाव है ये मेरे, इन्हें सिर्फ शब्द ना समझना….
लिख रही हुँ जज्बात अपने, मज़ाक मत समझना…
जो है दिल मे मेरे वो सब कह रही हुँ, तुमसे….
समझ सको तो समझने का प्रयास करना….
हर किसी से मन की कही नहीं जाती…
जो हिम्मत जुटाई है मैंने कहने की तुमसे…
उसका तुम मान रखना…
ये भाव है सिर्फ तुम्हारे लिए…
इनसे तुम अंजान मत रहना..
समझ सको तो समझने का प्रयास तुम करना…
प्रेम बहुत है तुमसे, जीवन का सार हो तुम…
मेरे लिए मेरे पूज्य, मेरा संसार हो तुम….
आँखों को हमेशा तुम्हारा इंतजार रहता है…
ना देखु तो सब अधूरा सा लगता है…
कहने को बहुत कुछ है..
बस तुम मज़ाक ना समझना……
हो सके तो समझने का प्रयास करना ….
Geeta Baisoya.. ✍️