साहित्य

*क्या माता-पिता की आर्थिक स्थिति तय करेगी ससुराल में सम्मान*…BY-लक्ष्मी कुमावत

Laxmi Kumawat
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* क्या माता-पिता की आर्थिक स्थिति तय करेगी ससुराल में सम्मान *
आज की सुबह कुछ अलग थी। आज कोई मुझे परेशान नहीं कर रहा था और ना ही किसी को मुझसे कोई काम। क्योंकि अब मैंने आदर्श बहू का तमगा उतार कर फेंक दिया था और सच कहूं ऐसा लग रहा था जैसे सिर पर से कोई बोझ हट गया हो।

पर रह रहकर एक ही बात मेरे दिमाग में आ रही है कि क्या मेरे माता-पिता की आर्थिक स्थिति तय करेगी कि ससुराल में मुझे कितना सम्मान मिलना चाहिए।

क्या एक लड़की का वजूद उसके ससुराल में उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। सिर्फ माता-पिता की आर्थिक स्थिति के कारण मुझ में और मेरी देवरानी में बहुत फर्क हो चुका था। अब यह बात मेरे दिमाग में क्यों आ रही है उसके पीछे आपको कारण बताती हूं।

मेरा नाम सुनैना है। मेरी शादी को दो साल हो चुके हैं। मेरे इस परिवार में मेरी सास ससुर अंबिका जी और केशव जी, मेरे पति सुदेश और देवर साहिल है। देवर की शादी नंदिनी से एक महीने पहले ही हुई है।

मेरे माता पिता ने मुझे काफी अच्छे से शिक्षित किया है। शादी से पहले मैं एक स्कूल में शिक्षिका का कार्य करती थी। मेरी शादी के समय मेरे माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए मेरी शादी एक सामूहिक सम्मेलन में हुई थी।

ऐसा नहीं है कि उन्होंनेमेरे ससुराल वालों को पहले नहीं बताया था। जब ये लोग मुझे देखने आए थे तब ही मेरे माता पिता ने साफ-साफ कह दिया था कि उनकी इतनी स्थिति नहीं कि वह शादी धूमधाम से कर सकें। तब तो इनमें से किसी को एतराज नहीं था। पर शादी के बाद अक्सर यह लोग मुझे इस बात के लिए ताना जरूर दे देते थे।

शादी के बाद मैंने दोबारा स्कूल में शिक्षिका की नौकरी ज्वाइन कर ली। महीने के बीस हजार रुपए कमाती हूं। पर उसमें से मैं कुछ खर्च नहीं कर पाती क्योंकि इस घर के नियम के अनुसार वह सैलरी मुझे मेरी मम्मी जी के हाथों में रखनी पड़ती है। और फिर जरूरत हो तो उन्हीं के सामने अपने पैसों के लिए हाथ फैलाओ। उसके बावजूद भी किसी भी तीज त्यौहार पर मुझे ताना मारा जाता है,

“इस बेचारी के माता-पिता की कहाँ औकात है कि वो त्यौहार करें। अब अपनी बहू के तो हम ही लाड चाव करेंगे”
और फिर मेरी सैलरी से मुझे ही सामान ला करके दे दिया जाता है। मन ही मन घुटन तो बहुत होती पर यह सोचकर चुप रह जाती कि अभी बेवजह ये लोग मेरे माता-पिता को घसीटेंगे। और घर की शांति के लिए एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती पर अब मुझे लगने लगा है कि यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी। अगर मैंने जवाब दिया होता तो जो कल इस घर में हुआ, वह कभी ना होता।

दरअसल कल मेरी देवरानी के घर से त्यौहार आया। नंदिनी के माता-पिता की आर्थिक स्थिति मेरे परिवार वालों से बेहतर है। इस कारण से त्यौहार में काफी कुछ सामान उन लोगों ने भेज दिया। जिसे देखकर मेरी सास फूली न समाई। और उन्होंने आस पड़ोस की सभी औरतों को ये त्योहार देखने के लिए न्योता दे दिया।

जब आस पड़ोस की औरतें घर आई तो मम्मी जी ने नंदिनी को तो अपने पास बिठा लिया और मुझे लगा दिया काम पर सब की सेवा चाकरी करने के लिए। पर मुझे उससे कोई परेशानी नहीं थी, सो मैं सबको चाय नाश्ता सर्व करने में लग गई। क्योंकि मुझे लगा कि नंदिनी की तो अभी नई-नई शादी हुई है इस कारण मम्मी जी उसका लाड चाव कर रही है। पर मेरी यह गलतफहमी उस समय दूर हो गई, जब पड़ोस से आई सुधा आंटी ने कहा,
“अरे अंबिका, सुनैना अकेले काम कर रही है। नंदिनी को बोल दो कि कम से कम वह अपनी जेठानी की मदद कर दे”

“यह क्यों काम करेगी? करने दो उसे अकेले ही। उसने कौन सा अपने मायके में आराम देखा है, जो यहां आराम करेगी। उसके पिता तो फकीर है, वहां पर भी काम करने की आदत थी उसकी तो”
यह सुनकर तो एक पल के लिए मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था कि उन्होंने मेरे लिए यह शब्द बोले हैं। उन्हें शायद यह भी ध्यान नहीं था कि मैं उस समय कमरे में आ चुकी थी। जैसे ही उनकी नजर मेरी नजर से टकराई तो उन्होंने सकपका कर अपनी नजर दूसरी तरफ कर दी। पर बात तो मुंह से निकल चुकी थी और सीधे मेरे दिल को चीर चुकी थी। उन्होंने बात पलटने की कोशिश भी की, “अरे नहीं नहीं, मेरा मतलब वो नहीं था। अभी तो नंदिनी की नई नई शादी हुई है ना इसलिए थोड़ा आराम करने दो। बाद में तो इन दोनों ने मिलकर ही करना है”

पर अब कुछ नहीं हो सकता था। वे मेरे लिए क्या सोचती थी वह मुझ तक पहुंच चुका था। मुझे बुरा तो बहुत लगा पर उससे भी ज्यादा बुरा यह लगा कि मेरे पति और देवर पास वाले कमरे में बैठे ही सब कुछ सुन रहे थे। पर दोनों में से मजाल है किसी एक ने भी अपनी मां से कुछ कहा हो। आखिरकार मैंने ही हिम्मत करके कहा,
“माफ करना मम्मी जी। पर जब आप मुझे देखने आए थे तब आपको मेरे घर की स्थिति अच्छे से पता थी। हमने कोई बात छुपाई नहीं थी आपसे। फिर भी आपने अपने बेटे की शादी के लिए हां कर दी। हमने कोई जबरदस्ती आपके हाथ पैर तो पड़े नहीं थे। अब यहां आप इन सब के बीच बैठकर मेरे पिता की औकात बखान रही है”
“सुनैना तुम बहुत ज्यादा बोल रही हो”
अब की बार मेरे पतिदेव ने कहा।
“अच्छा! मैं कौन सा बदतमीजी से बात कर रही हूं। क्या एक लड़की का ससुराल में सम्मान उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति से होता है”
“हां, बिल्कुल सही कहा तुमने। ससुराल में एक लड़की का सम्मान उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति तय करती है। सारे त्यौहार तो हमने किए हैं। तेरे बाप की तो औकात भी नहीं थी” सासू मां ने तुनकते हुए कहा। आखिर हार तो वे मानने वाली थी नहीं।
“सही कहा आपने। सारे त्यौहार आपने किए, पर मेरी सैलरी के पैसों से खरीद कर। क्या आपकी सभी आस पड़ोस की दोस्तों को पता है कि आप मेरी सारी सैलरी भी अपने पास रख लेती है”
अपनी पोल खुलती देख कर सासू माँ ने अपनी सभी दोस्तों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, पर उसके बाद से ये लोग मुझसे बात तक नहीं कर रहे है। यहां तक कि मेरे पति भी। पर अब मुझे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा। आखिरकार अपने मन की भड़ास निकाल कर मैं सुकून से हूं। और वैसे भी जहाँ सम्मान ना हो, वहां बात करके कोई फायदा नहीं है।
और अब मैं डिसाइड कर चुकी हूं। अब मैं अपनी सैलरी का एक पैसा भी उनके हाथ में नहीं दूंगी। क्या हुआ अगर मेरे माता पिता ने दहेज नहीं दिया तो?? मैं भी तो इतने दिन अपनी कमाई इनके हाथ में रख चुकी हूं, क्या वह दहेज नहीं था?
दोस्तों, आपकी क्या राय है? सच-सच बताइएगा। क्या माता-पिता की आर्थिक स्थिति तय करेंगी कि ससुराल में कितना सम्मान मिलना चाहिए। अपनी राय जरूर लिखिएगा।
मौलिक व स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
लक्ष्मी कुमावत