साहित्य

#कौन_हूँ_मैं #एक_खोज…By-#kavitaprabhaa

Kavita Prabha
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#कविता_प्रभा #kavitaprabhaa #मुस्कानज़िंदगीकी #आजकाख़्याल
#कौन_हूँ_मैं #एक_खोज #भाग१६
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कई दिन याद न की
कई दिन बात न की
शायद रूठ गई है
मुझसे मेरी कविता
कभी जज़्बात न आए
कभी ख़्यालात न आए
कभी मुँह फेरकर
जाती रही मेरी कविता
कभी दिल में छिपी
कभी ज़हन में रुकी
कभी नज़रें न मिलाईं
कभी पलकें डबडबाईं
सावन की घटाओं सी
ख़ूब बरसी मेरी कविता
न मालूम किस बात पर
कब रूठ जाए
अक्सर अगीत सी
मूक ही रह जाए
सिरहाने कभी ग़ज़ल की
घनी ज़ुल्फ़ों की लहक
किसी रोज़ थी तकिये पे
अश’आर की महक
कभी वासंती गीत के रंग
में सराबोर करती
फिर मरु सी प्यास लिए
छंद की बूँद को तरसती
इश्क की तहरीर बन
शाने पे सिर रखा उसने
कभी बेइंतहा बिरहन सी
बुत रही मेरी कविता…
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डॉ. कविता सिंह ‘प्रभा’
स्वरचित ©️