विशेष

कौन था असली ‘तीसमार खां’

कौन था असली तीसराम खां और ऐसा क्या कारनामा किया था? जो नाम ही बन गया कहावत
आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा- ज्यादा ‘तीसमार खां’ न बनो। किताबो के मुताबिक तीसमार खां का शाब्दिक मतलब होता है ऐसा व्यक्ति जिसने तीस जानवर या आदमी मारे हों। कई बार बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले या शेखी बघारने वाले शख़्स के लिए व्यंगात्मक लहजे में भी इस कहावत का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन असल में यह इंसान हैदराबाद के छठवें निजाम मीर महबूब अली खान थे ।उस जमाने में शिकार पर पाबंदी नहीं थी। राजा, महाराजा नवाब और निजाम खुलेआम शिकार किया करते थे और यह उनका प्रिय खेल था। मीर महबूब अली खान को भी शिकार का शौक था और अक्सर अपनी रियासत में कैंप लगाकर कई-कई दिन शिकार करते थे। मीर महबूब अली खान ने अपनी रियासत में 30 बाघ मारे थे। उस वक्त यह बहुत बहादुरी का काम माना जाता था। इसके बाद महबूब अली खान का नाम बहादुर के प्रतीक के तौर पर ‘तीसमार खां’ यानी 30 जानवरों को मारने वाला पड़ गया।

अरूणिमा सिंह
=============
रेल चली है छुक छुक!
बचपन में इस तरह की रेल बहुत चलाई है और बैठे भी है।
लकड़ी नही मिला तो गमछा, चुन्नी को ही रेल बना लिया या एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख कर रेल बनाकर चलाया है।
हाथ से हाथ पकड़ कर लंबी कतार बनाकर तीर में तीर लंबी तीर किसकी शादी भी खूब खेला है।
एक सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल था। एक बच्चे के अंजुली में धूल रखकर उस पर लकड़ी या पत्ती गाड़ कर उसकी आंख बंद करके दूर ले जा कर रखवाते थे और फिर जिस स्थान से ले जाते थे वापस वही पर आकर साथी को गोल गोल घुमा कर छोड़ दिया जाता था और फिर कहा जाता था कि धूल रखने वाली जगह को खोजो।
खिलाड़ी अगर जगह खोज लेता है तो वही धूल उठाकर सबके ऊपर फेंकता है। यदि नही खोज पाता तो हार जाता है और मार खाता है।
बचपन के हमारे कुछ यूं अनोखे खेल हुआ करते थे जिन्हे खेलकर धुरियाधूर्कंड (धूल से सन कर) घर जाते थे और घर में छिपते छिपते घुसते थे। घरवालों की नजर में आते ही डांट खाते और हिदायत मिलती पहले अच्छी तरह से हाथ, पैर, मुंह धोना फिर घर के अंदर आना।
बड़े सुहावने दिन थे जो बीत गए।
पोस्ट अच्छी लगे तो लाइक और शेयर करें
कॉमेंट में अपने विचार अवश्य व्यक्त करे
तस्वीर फेसबुक साभार
अरूणिमा सिंह