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कैराना उपचुनाव में बीजेपी को हराने के बाद तबस्सुम ने यूपी के मुसलमानों के माथे पर लगा कलंक भी हटाया

उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी की मृगांका को राष्ट्रीय लोकदल के चुनाव निशान पर गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने पचास हजार के लगभग वोटो से हरा दिया है,तबस्सुम हसन ने बीजेपी को हराने के बाद उत्तर प्रदेश में एक नया रिकॉर्ड भी स्थापित किया है।

कैराना से नवनिर्वाचित साँसद तबस्सुम हसन 16वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश की पहली मुस्लिम सांसद बन गयीं. गोरखपुर और फूलपुर सीटों पर हाल में हुए उपचुनाव में एसपी के हाथों मिली हार के बाद हुए कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ बीजेपी को झटका लगा है.

मुस्लिम और दलित बहुल कैराना सीट पर आरएलडी-एसपी गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी की मृगांका सिंह को 44618 वोटों से हराया. इस तरह 16वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश से वह पहली मुस्लिम सांसद भी बन गयीं.

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी की आंधी‘ के चलते बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीती थीं. जबकि उसके सहयोगी अपना दल को दो सीटें मिली थीं. उस चुनाव में इस सूबे से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत सका था.

इससे पहले साल 2009 में कैराना से ही बीएसपी की सांसद रह चुकी तबस्सुम ने अपनी इस जीत के लिये आरएलडी, एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने इसे कैराना की जनता और खासकर किसानों की जीत करार देते हुए कहा कि बीजेपी ने विकास के बजाय असल मसलों से भटकाने वाले मुद्दे उछाले, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ गया.

तबस्सुम ने उपचुनाव से एक दिन पहले बागपत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के बारे में कहा कि अब मोदी के आने का कोई असर नहीं होगा. अहंकारी लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि उनका कोई विकल्प नहीं है, लेकिन विकल्प तो अल्लाह निकालता है. हम सब मिलकर 2019 में उन्हें धूल चटाएंगे.

मालूम हो कि साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ और राजनीतिक रूप से खासा दबदबा रखने वाले मुनव्वर हसन के परिवार में वोटों के बंटवारे के बीच बीजेपी के हुकुम सिंह ने कैराना लोकसभा सीट जीती थी. सिंह के निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई थी.

कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं. इनमें तीन लाख मुसलमान, लगभग चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बसपा का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है. यहां यादव मतदाताओं की संख्या कम है ऐसे में यहां दलित और मुस्लिम मतदाता खासे महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

इस क्षेत्र में हसन परिवार का खासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है. साल 1996 में इस सीट से सपा के टिकट पर सांसद चुने गये मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम साल 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इस परिवार में टूट हुई थी. तब मुनव्वर के बेटे नाहीद हसन सपा के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, मगर दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था. हालांकि नाहीद दूसरे स्थान पर रहे थे.

इस सीट पर आरएलडी का भी दबदबा रहा है. 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी यहां से सांसद रह चुके हैं. आरएलडी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष का साथ दिया था. कैराना में सपा, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और कई दूसरे विपक्षी दलों ने आरएलडी प्रत्याशी का सहयोग किया था.

बीजेपी ने करीब दो साल पहले कैराना से बहुसंख्यक वर्ग के परिवारों के ‘पलायन’ का मुद्दा उठाया था. बीजेपी ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के लिये अपने घोषणापत्र में इसे एक अहम मुद्दे के तौर पर शामिल किया था. लेकिन वह बीजेपी के लिये फलीभूत नहीं हुआ था और कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह की बेटी बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह को हार का सामना करना पड़ा था.

कैराना लोकसभा सीट पिछले करीब दो दशकों से अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. साल 1996 में सपा, 1998 में बीजेपी, 1999 और 2004 में आरएलडी, 2009 में बसपा और 2014 में बीजेपी का इस पर कब्जा रहा. अब यह सीट फिर आरएलडी की झोली में जा चुकी है