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केजरीवाल की गिरफ़्तारी ने विपक्ष में नई ऊर्जा फूंक दी है, केजरीवाल की कल्याणकारी राजनीति से घबरा गयी बीजेपी : रिपोर्ट

चुनाव से चंद हफ्ते पहले भ्रष्टाचार के आरोपों पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी ने विपक्ष में नई जान फूंक दी है. विपक्ष ने बीजेपी पर “सरकारी एजेंसियों का हथियार की तरह इस्तेमाल” करने का आरोप लगाया है.

विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थन में खड़ा हो गया है. भ्रष्टाचार के मामले में अदालत ने उन्हें 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेजा है. दिल्ली की आबकारी नीति से जुड़े आरोपों को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के अन्य नेताओं के अलावा पार्टी प्रमुख केजरीवाल को मार्च में गिरफ्तार किया गया था.

भारत में आम चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून तक चलेंगे. इसके लिए पार्टियों का चुनावी अभियान जोरों पर चल रहा था कि केजरीवाल गिरफ्तार कर लिए गए. आप का कहना है कि केजरीवाल पर लगे आरोप, बीजेपी के विरोधियों को कुचलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीति प्रेरित हथकंडा है.

मोदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष
फरवरी में आप ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया था. इंडिया ब्लॉक की अगुवाई भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस कर रही है, जो चुनावों में बीजेपी को एक विश्वसनीय चुनौती देने को तत्पर है.

गठबंधन में दर्जनों राजनीतिक दल शामिल हैं, लेकिन आप और कांग्रेस का दबदबा सबसे ज्यादा है. पिछले दिनों नई दिल्ली में हुई ‘लोकतंत्र बचाओ’ रैली में विपक्षी नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर भारत की संघीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इल्जाम लगाया कि बीजेपी चुनावों को अपने पक्ष में फिक्स करने की कोशिश कर रही है.

राहुल गांधी ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन चुनावों में मैच फिक्सिंग की कोशिश कर रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों, मैच फिक्सिंग, सोशल मीडिया और प्रेस पर दबाव डाले बिना वो 180 से ज्यादा सीटें जीत ही नहीं सकते.”

राजनीतिविज्ञानी जोया हसन के मुताबिक, रैली से पता चलता है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी ने किस तरह विपक्षी पार्टियों में नई ऊर्जा भर दी है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “सवाल उस आबकारी नीति की खासियतों या गुणों का नहीं है, जिसकी वजह से केजरीवाल गिरफ्तार किए गए. ऐन चुनावों के वक्त उनकी गिरफ्तारी की टाइमिंग राजनीतिक प्रक्रिया को नष्ट और समान भागीदारी के अवसर को ध्वस्त कर देती है.”

विपक्ष कर पाएगा मतदाताओं को लामबंद ?
विपक्षी दलों के लिए बड़ा सवाल यह है कि केजरीवाल का मामला मतदाताओं में सहानुभूति जगाएगा या नहीं. केजरीवाल की भूमिका की तुलना अमेरिका में गर्वनर से की जा सकती है या जर्मनी में किसी प्रांत के प्रीमियर (प्रधानमंत्री) से. दिल्ली महानगर भारत के उन चुनिंदा हिस्सों में से है, जहां मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी बीजेपी को बढ़त हासिल नहीं है.

पिछले दशक से मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में आप का समर्थन किया है. वे केजरीवाल की कल्याणकारी राजनीति पसंद करते हैं, जिसके तहत आप की सरकार ने अच्छी गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूलों, परिष्कृत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और मुफ्त बिजली का वादा किया है. हालांकि, संसदीय चुनावों में आप का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.

एक वरिष्ठ आप नेता ने डीडब्ल्यू से कहा, “ये हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारी संसदीय चुनावों में हमें फायदा ही पहुंचाएगी. किसी कारणवश केजरीवाल चुनाव प्रचार न कर पाए, तो हम लोगों के बीच जाकर ये बताएंगे कि बीजेपी किस तरह राजनीतिक मैदान से विपक्ष को बाहर रखना चाहती है.”

2019 के चुनावों में बीजेपी ने लोकसभा की 543 में से 303 सीटें जीती थीं. उसे यकीन है कि 2024 में भी उसी की सरकार बनेगी. 1 अप्रैल को राजस्थान की एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा, “ये चुनाव भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए है. ये पहला चुनाव है, जिसमें तमाम भ्रष्ट व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को रोकने के लिए एक साथ आ गए हैं.”

बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने डीडब्ल्यू को बताया, “इंडिया ब्लॉक की इस दिखावटी एकजुटता में कोई जोर नहीं, खासतौर पर जबकि पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब जैसे राज्यों में उनके बीच एकता नहीं है. बीजेपी लोगों की पहली और विश्वसनीय पसंद है.”

बीजेपी का गलत कार्रवाई से इंकार
दिल्ली स्थित पब्लिक पॉलिसी की जानकार यामिनी अय्यर ने डीडब्ल्यू को बताया कि “विपक्षी नेताओं को असंगत ढंग से निशाना बनाने और विरोध को आपराधिक बना देने के लिए” बीजेपी जांच एजेंसियो, टैक्स कानूनों, देशद्रोह कानूनों, आतंक निरोधी कानूनों और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की विदेशी फंडिंग को रेगुलेट करने वाले कानूनों को “व्यवस्थागत ढंग से हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है.” वह आगे कहती हैं, “इसकी सबसे खुल्लमखुल्ला मिसाल लोकप्रिय विपक्षी नेता केजरीवाल की गिरफ्तारी है.”

इनमें से एक जांच संस्था प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) है, जो बड़े स्तर के आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली संघीय एजेंसी है. सार्वजनिक रूप से बीजेपी इस मामले पर हमलावर है. केजरीवाल के खिलाफ किसी राजनीतिक एजेंडा से भी उसने इंकार किया है. पार्टी का मानना है कि ईडी पूरी तरह से स्वतंत्र है और ये एजेंसियां सरकार से अलग हैं और महज भ्रष्टाचार मिटाने का अपना काम कर रही है.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने डीडब्ल्यू को बताया, “ये मुद्दा प्रवर्तन निदेशालय और न्यायपालिका के बीच का है और कानून अपना काम करेगा. अदालत मामले की निगरानी कर रही है. और विपक्षी दलों के आरोप के बारे में टिप्पणी करना अनुचित होगा.”

2014 में जबसे मोदी ने सत्ता संभाली, ईडी भारत की सबसे ज्यादा डराने वाली एजेंसियों में से एक बन गई है. मनी लॉन्ड्रिंग के 3,000 से ज्यादा मामलों में उसने छापा मारा, लेकिन सिर्फ 54 मामलों में सजा दिला पाई है. एजेंसी ने दर्जनों विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया है. हालांकि, कुछ बीजेपी नेता खुद कानूनी जांच के घेरे में हैं.

विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्डों के जरिए पिछले महीने जो तथ्य सामने आए हैं, उसने परेशान-हाल इंडिया ब्लॉक को राजनीति का एक अप्रत्याशित और बहुत जरूरी चर्चा बिंदु सौंप दिया है. ज्यादातर बॉन्ड बीजेपी को हासिल हुए थे.

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के पूर्व प्रमुख आकार पटेल कहते हैं, “बीजेपी ने भारतीय लोकतंत्र और नागरिक समाज को नीचा दिखाने के लिए अपने नियंत्रण वाली एजेंसियों का दुरुपयोग किया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.” मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी को 2020 में भारत में जबरन अपना काम बंद करना पड़ा था. सरकार ने उसके बैंक खाते फ्रीज कर दिए थे, जिसे एमनेस्टी ने “भारत में सिविल सोसायटी का दमन” करार दिया था.

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मुरली कृष्णन