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केंद्र सरकार ने SC में कहा-एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेना संविधान सम्मत था, सीजेआई ने कहा-क़ानून के नियंत्रण से ख़त्म नहीं होता दर्जा!

 

नई दिल्ली।केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेना संविधान सम्मत था। इसी आधार पर उसने 2016 में यह निर्णय किया था। केंद्र ने कहा, इसके लिए कानूनी रूप से लड़ने का पूर्ववर्ती यूपीए सरकार का रुख सार्वजनिक हित के खिलाफ और हाशिये पर रह रहे वर्गों के लिए आरक्षण की सार्वजनिक नीति के विपरीत था। शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल सवाल से जुड़ी कई याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई शुरू की।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष केंद्र ने कहा, यह कहना उचित नहीं है कि सत्ता परिवर्तन के कारण सरकार के रुख में बदलाव आया है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को कभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के उस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अलग अपील दायर नहीं करनी चाहिए थी, जिसमें कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, न कभी रहा है। पिछली सरकार का रुख 1967 में अजीज बाशा मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के भी विपरीत था, जिसमें कहा था कि विश्वविद्यालय न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक की ओर से स्थापित था, न प्रशासित किया गया था। माना गया, संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत वह शैक्षणिक संस्थानों को प्रशासित करने के लिए अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा का लाभ नहीं ले सकता है।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हाईकोर्ट के 2006 के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने का रुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर लागू आरक्षण की सार्वजनिक नीति के खिलाफ था। इसलिए एनडीए सरकार ने यूपीए सरकार की ओर से दायर अपील वापस लेने का आग्रह कानूनी स्थिति पर उचित विचार करने के बाद किया।

 

कानून के नियंत्रण से खत्म नहीं होता दर्जा : सीजेआई
सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा, केवल इसलिए कि शैक्षणिक संस्थान कानून से नियंत्रित होता है, इससे उसका अल्पसंख्यक संस्थान का चरित्र खत्म नहीं हो जाता। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद-30 का जिक्र किया, जो शैक्षणिक संस्थान की स्थापना व प्रशासन के अल्पसंख्यकों के अधिकार से जुड़ा है। अनुच्छेद 30 के तहत जरूरी नहीं कि संस्थान पर अल्पसंख्यक समूह का पूर्ण प्रशासन हो। किसी भी समाज, राज्य में कुछ भी पूर्ण नहीं है। जीवन का हर पहलू किसी न किसी तरह से नियंत्रित होता है।

 

 

एएमयू राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान धर्मनिरपेक्षता बनाए रखनी चाहिए
केंद्र सरकार ने कहा, एएमयू राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है, जिसे धर्मनिरपेक्षता की स्थिति बनाए रखनी चाहिए। पहले राष्ट्र के व्यापक हित की सेवा करनी चाहिए। एएमयू, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की तरह राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है। ऐसा कोई भी विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। केंद्र ने यह भी कहा, संसद की ओर से राष्ट्रीय महत्व का घोषित कोई अन्य संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

सरकार बदलने से रुख बदला : एमएमयू
एएमयू के वकील राजीव धवन ने कहा, सत्ता बदलने के कारण केंद्र सरकार के रुख में बदलाव आया है। नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बदलाव को सही ठहराने के लिए नई सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं लाई गई है।