साहित्य

”कुसुम शर्मा अंतरा” की ग़ज़ल – मैं हक़ीक़त हूं या हूं अफ़साना

Kusum Sharma Antra
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ग़ज़ल
मेरे अंदर है मेरी तन्हाई
ग़म का मंज़र है मेरी तन्हाई
काटती जा रही है कब से मुझे
एक ख़ंजर है मेरी तन्हाई
हर तरफ़ से ये वार मुझ पे करे
यूं सितमगर है मेरी तन्हाई
अश्क़ का इक अदद हूं क़तरा मैं
और समंदर है मेरी तन्हाई
शोर ओ गुल हूं मैं कोई दुनिया का
मुझ से बेहतर है मेरी तन्हाई
मैं हक़ीक़त हूं या हूं अफ़साना
संगे मर मर है मेरी तन्हाई
कुसुम शर्मा अंतरा
जम्मू कश्मीर