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कितना बदनसीब है ज़फ़र, राष्ट्रवाद का दम भरने वाले किसी संगठन, लीडर, एंकर ने उन्हें पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देना मुनासिब नहीं समझा!

Syed Yahiya
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आज अंतिम मुग़ल बादशाह खुद्दार बहादुरशाह ज़फर की पुण्य-तिथि है।7 नवंबर 1862 में उन्होंने वतन से दूर अंग्रेजों की कैद में रंगून में आख़िरी सांस ली थी।

“कितना बदनसीब है ज़फर दफ़्न के लिए,
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू ए यार में “।।

1857 की असफल क्रांति के बाद अंग्रेज़ सेनानायक हडसन ने हुमायूँ के मक़बरे से शाही ख़ानदान के 16 सदस्यों के साथ 87 साल के बूढ़े क़ैदी और भारतीय क्रांतिकारियों के कमांडर बहादुर शाह ज़फर को गिरफ़्तार किया था।स्वयं हडसन ने उनके दो जवान बेटों मिर्ज़ा मुग़ल,मिर्ज़ा ख़िज़्र सुल्तान और किशोर पोते मिर्ज़ा अबूबख्त को अपनी कोल्ट पिस्तौल से पॉइंट ब्लेक शूट किया और उनकी सर कटी लगभग वस्त्रहीन लाश चाँदनी चौक की एक कोतवाली पर तीन दिन तक लटका रखी ताकि लोगों में दहशत फैले ।

हडसन ने जो स्वयं कुछ-कुछ उर्दू जानता था शायर और बुज़ुर्ग बादशाह को गिरफ़्तार करते हुए कहा-
“दमदमे में दम नहीं अब ख़ैर मांगो जान की, ऐ ज़फ़र ठंडी हुई तेग़ हिंदुस्तान की।।
खुद्दार वतनपरस्त बूढ़े बादशाह ज़फ़र ने ज़वाब दिया-
“ग़ाज़ियों में जब तलक बू रहेगी ईमान की,
तख़्ते लंदन तक चलेगी तेग़ हिन्दोस्तान की।।

बुज़ुर्ग बादशाह के गर्वीले ज़वाब से आगबबूला हडसन ने तीनों मुग़ल शहज़ादों के कटे हुए सर सुर्ख़ कपड़े से ढंके एक थाल में बादशाह को भेंट करते हुए कहा-सरकार बहादुर ने आपके लिए तोहफ़ा भेजा है।ज़फर ने थाल के ऊपर ढँका कपड़ा हटा कर देखा। उसमें उसके दो जवान बेटों और एक पोते के खून से सने कटे हुए सर रखे थे।दिल थाम कर सुनिए साहेबान वयोवृद्ध ज़फर ने आहिस्ता से उसे वापस ढँका और हडसन की आँखों में आँखें डालकर कहा-“मुग़ल शहज़ादे इसी तरह सुर्खरू होकर अपने वालिद के सामने आते हैं।”

टाइम्स ऑफ इंडिया की 2005 की रिपोर्ट के अनुसार उनके वारिस कोलकाता के हावड़ा में एक गन्दी बस्ती में गुज़र-बसर करते पाए गए।बहादुर शाह जफर और मुगल खानदान चाहता तो अंग्रेजों के सामने गिड़गिड़ाकर माफ़ी मांग सकता था और ऐश करता रह सकता था जैसे दूसरे करते रहे । आज भी कर रहे।
बाक़ी जिनको देशभक्त मुग़लों को गाली देकर अपना मुँह ख़राब करना हो, करते रहें। मुग़लों और उनके वतनपरस्त वंशजों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।अफ़सोस राष्ट्रवाद का दम भरने वाले किसी संगठन, किसी लीडर, किसी एंकर ने उन्हें आज पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देना मुनासिब नहीं समझा।
ज़फर आपकी ख़ुद्दारी, आपकी वतनपरस्ती पर देशभक्त करोड़ों हिंदुस्तानियों को हमेशा गर्व रहेगा ।
ख़िराज़े अक़ीदत।

 


दिव्या पंडित
@DivyaPandit_

बहादुरशाह जफर एक स्वंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा थे, जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी अफसोस आज ऐसे क्रांतिकारियों को भुलाकर नारंगी गोडसे और सावरकर को पूज रहे है!!

Siddiqui Mohd Adnan (अदनान रियाज़ सफ़वी)
@Adnan_Siddiqui3

मुक़दमे के दौरान बहादुरशाह ज़फ़र के सामने थाल लाया गया। हडसन ने तश्त पर से ग़िलाफ़ हटाया। कोई और होता तो शायद ग़श खा जाता या नज़र फेर लेता। लेकिन बहादुर शाह ज़फर ने ऐसा कुछ नहीं किया। थाल मे रखे जवान बेटों के कटे सिरों को इत्मीनान से देखा। हडसन से मुख़ातिब हुए और कहा

Anuranjan Ashok_F C
@AnuranjanF

बहादुरशाह जफर के वंशज सुल्ताना बेगम आज भी जिंदा है कोलकाता के स्लम एरिया में आज भी चाय बेच रही है ,बस ताजमहल लालकिले पर आंख गड़ाए बैठी है एकबार मिल जाए तो बाकी जिंदगी शानो शौकत से कटे

Inderjeet Barak🌾
@inderjeetbarak

जब अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह का दमन करके बहादुरशाह जफर को गिरफ्तार कर कहा:-

“दमदमे में दम नहीं है ख़ैर मांगो जान की..
ऐ ज़फर ठंडी हुई अब तेग हिंदुस्तान की..”

इस पर ज़फ़र साहब ने उत्तर दिया-

“ग़ाज़ियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की. तख़्त ऐ लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की”