विशेष

कांग्रेस लगातार एक ग़लती दोहरा रही है, नाना पटोले ने जो झगड़ा किया उसका भी ग़लत संदेश गया!

Dr. Mukesh Kumar
@mukeshbudharwi
महाराष्ट्र में शर्मनाक हार के लिए हालाँकि महाविकास अघाड़ी के तीनों घटक ज़िम्मेदार हैं, मगर सबसे ज़्यादा दोषी कांग्रेस है।
कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सबसे बुरा स्ट्राइक रेट उसी का है।
कांग्रेस लगातार एक ग़लती दोहरा रही है। वह ज़्यादा सीटें लड़ने के लिए झगड़ा करती है मगर जीतती बहुत कम है।
बिहार में तो महागठबंधन की सरकार उसकी इसी ज़िद की वज़ह से नहीं बन पाई थी।
नाना पटोले ने जो झगड़ा किया उसका भी ग़लत संदेश गया।
फिर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट न करने देना भी उसकी बड़ी ग़लती थी।
उसके नेताओं को वहम हो गया था कि कांग्रेस जीत रही है और उसे सबसे ज़्यादा सीटें मिलेंगी तो मुख्यमंत्री उसका क्यों नहीं होना चाहिए।

Akhilesh Yadav
@yadavakhilesh
‘इलेक्शन’ को ‘करप्शन’ का पर्याय बनानेवालों के हथकंडे तस्वीरों में क़ैद होकर दुनिया के सामने उजागर हो चुके हैं। दुनिया से लेकर देश और उत्तर प्रदेश ने इस उपचुनाव में चुनावी राजनीति का सबसे विकृत रूप देखा। असत्य का समय हो सकता है लेकिन युग नहीं।

अब तो असली संघर्ष शुरू हुआ है… बाँधो मुट्ठी, तानो मुट्ठी और पीडीए का करो उद्घोष ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे!’

Tribal Army
@TribalArmy
झारखंड में भाजपा के शीर्ष नेताओं—योगी आदित्यनाथ, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, हेमंता बिस्वा शर्मा—ने साम्प्रदायिक राजनीति का सहारा लेकर राज्य में माहौल बिगाड़ने और झारखंड के जल, जंगल और जमीन पर कब्जा जमाने की गहरी साजिश रची। यह साजिश केवल झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने तक सीमित नहीं थी, बल्कि मुलवासी, आदिवासी और बहुजन समाज को हाशिए पर धकेलने का भी प्रयास था। भाजपा ने झारखंड में अपनी सांप्रदायिक विचारधारा फैलाने और जनमानस को बांटने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन झारखंड के जागरूक और संघर्षशील लोगों ने इस नफरत की राजनीति को सिरे से खारिज कर दिया। जनादेश ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि झारखंड की जनता अपनी अस्मिता, अधिकार और संसाधनों की सुरक्षा के लिए एकजुट है और किसी भी प्रकार की विभाजनकारी राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने न केवल भाजपा की साजिशों का डटकर मुकाबला किया, बल्कि अकेले दम पर झारखंड के मूलनिवासी आदिवासियों की आवाज बनकर उभरे। उनके नेतृत्व और संघर्ष का नतीजा आज साफ दिखाई दे रहा है। हेमंत सोरेन ने झारखंड में नफरत की राजनीति के खिलाफ मोर्चा संभालते हुए जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता दी और यह सुनिश्चित किया कि राज्य की संस्कृति, परंपरा और अधिकार सुरक्षित रहें। यह जीत केवल एक राजनीतिक दल की नहीं है, बल्कि झारखंड के हर उस व्यक्ति की है जो अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

आज फिर यह साबित हो गया है कि भाजपा की विभाजनकारी और साम्प्रदायिक राजनीति का सामना केवल मुलवासी, आदिवासी और बहुजन समाज की एकजुटता से ही किया जा सकता है। झारखंड की इस जीत ने देश को यह संदेश दिया है कि यदि नफरत की राजनीति के खिलाफ लोग संगठित हों, तो केंद्र सत्ता की ताकत को भी पराजित किया जा सकता है। हेमंत सोरेन ने यह दिखा दिया है कि जब नेतृत्व मजबूत और ईमानदार हो, तो हर साजिश को नाकाम किया जा सकता है। झारखंड का यह संघर्ष अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा है कि अपने अधिकारों और अस्मिता के लिए लड़ना कितना जरूरी है।

डिस्क्लेमर : ट्वीट में व्यक्त विचार लोगों के निजी विचार हैं