साहित्य

क़ाश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!…..कुसुम सिंह लता की कविता पढ़िये!

Kusum Singh
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काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
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काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी,
पंथ में पंखुड़ियां बिछाती,
अगणित दीप से सजाती,
मग के कंटक सहेजती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
प्रियतम की धोती पीर,
अपने ही नयनों के नीर,
स्नेह की ज्योति जलाती,
अनुराग तुम पर उड़ेचती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
अक्षि में अंजन सजाती,
अधर सुर्ख लाली सुहाती,
ललाट टिकुली शोभती,
निज अलंकार तुम पर वारती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
स्वप्न संग अभ्र में विचरती,
मेधपुष्प चुनरी पहनती,
तारिका से मांग भरती,
सौभाग्यनि बन दमकती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
शीतल मलय चंचल अति बन,
हृदय – वाटिका घूमती,
वीणा के टूटे तन्तु को,
आघात करती डोलती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
प्रिय की वामांगिनी बन,
सर्वस्व तुम पर हारती,
सुख – दुख के हीरक क्षणों में ,
जीवन – सुधा उड़ेलती।
काश मैं होती तुम्हारी प्रेयसी!
कुसुम सिंह लता
नई दिल्ली द्वारका