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कहानी सुंदर, महमूद और जूनियर महमूद की

इस कहानी के तीन पात्र हैं। सुंदर, महमूद और जूनियर महमूद। कहानी उन दिनों की है जब सुंदर जी फिल्मों से रिटायर हो चुके थे। उनके बारे में बहुत कम जानकारियां लोगों के पास थी। सुंदर जी कहां थे कहां नहीं, ये भी सबको नहीं पता था। एक दिन महमूद साहब ने अपने चेले जूनियर महमूद को बुलाया। उन दिनों महमूद साहब के बंगले में कुछ मरम्मत का काम चल रहा था। वो सन एंड सैंड होटल में ठहरे हुए थे। जूनियर महमूद जब अपने गुरू महमूद साहब के पास पहुंचे तो महमूद साहब ने उन्हें आदेश दिया कि सुंदर चचा को ढूंढकर ला। उन दिनों सुंदर जी की तबियत खराब रहती थी। और महमूद साहब को इसकी जानकारी थी। जूनियर जब जाने लगे तो महमूद साहब ने उन्हें एक लिफाफा देकर कहा कि ये लिफाफा सुंदर चचा को दे देना। और कहना कि जब सेहत ठीक हो तो मुझसे मिल लें।

गुरू का आदेश सुनकर जूनियर महमूद सुंदर जी को ढूंढने निकल पड़े। उन्हें तब ये पता था कि सुंदर जी अंधेरी में कहीं रहते हैं। लेकिन जब जूनियर वहां पहुंचे तो मालूम हुआ कि अब सुंदर जी वहां नहीं रहते। जूनियर महमूद ने और भी कई जगह सुंदर जी को तलाशा। मगर सुंदर जी का कोई पता उन्हें नहीं लग पाया। जूनियर महमूद जानते थे कि एच.एस.रवैल जी से सुंदर जी के बढ़िया ताल्लुकात थे। सो उन्होंने रवैल साहब के घर भी जानकारी की। वहां से जूनियर जी को पता चला कि सुंदर जी तो दिल्ली चले गए हैं। दिल्ली का सुनकर जूनियर महमूद ने अपनी तलाश खत्म कर दी। ये सोचकर कि जब सुंदर जी वापस आएंगे तब उन्हें महमूद साहब का दिया लिफाफा पकड़ा दिया जाएगा। मगर लगभग 15 दिन बाद किसी ने जूनियर जी से बताया कि आप जिन्हें ढूंढ रहे थे उन्हें तो अंधेरी ईस्ट के मरोल इलाके में देखा गया है।

जूनियर जी सुंदर जी को ढूंढने मरोल पहुंच गए। मरोल में जूनियर के एक परीचित भी रहा करते थे। और वो वहां के अच्छे-खासे रईस इंसान थे। जूनियर ने उनसे सुंदर जी के बारे में बताया। और गुज़ारिश की कि सुंदर जी का ढूंढने में मदद करें। जूनियर जी के उन परिचित ने अपने कर्मचारियों को जूनियर जी के बताए हुलिए वाले इंसान को ढूंढने का आदेश दिया। कुछ दिन बाद खबर मिली की इलाके की एक पुरानी बिल्डिंग में एक शर्मा परिवार रहता है। जूनियर महमूद जी ने जो हुलिया बताया था वैसे दिखने वाले एक आदमी को शर्मा परिवार के घर जाते हुए देखा गया है। जूनियर महमूद तुरंत शर्मा परिवार के घर पहुंच गए। जैसे ही उन्होंने डोरबैल बजाई तो सैंडो बनियान और हाफ पैंट पहने हुए एक बुजुर्ग आदमी ने दरवाज़ा खोला। जूनियर महमूद पहली ही नज़र में उन्हें पहचान गए। वो सुंदर जी ही थे। जूनियर उनके साथ कई फिल्मों में काम जो कर चुके थे।

सुंदर जी जूनियर महमूद को नहीं पहचान पाए थे। पहचानते भी कैसे। जब उन्होंने जूनियर के साथ काम किया था तब जूनियर बहुत छोटी उम्र के थे। और अब जब जूनियर उनसे मिलने आए थे तो ख़ासे जवान हो चुके थे। सुंदर जी ने पूछा,”कौन है भाई तू?” जूनियर महमूद, जो अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहे थे, वो तुरंत सुंदर जी के पैरों में गिर पड़े और बोले,”मैं आपका महमूद जूनियर हूं बाबू जी।” जैसे ही सुंदर जी ने ये सुना, उन्होंने तुरंत जूनियर महमूद को उठाया और गले से लगा लिया। मानो बरसों पुराना खोया हुआ कोई दोस्त मिल गया हो। सुंदर जी और जूनियर महमदू, दोनों की आंखों में आंसू थे। जिस घर में सुंदर जी रुके हुए थे उसके सभी सदस्य कहीं गए हुए थे। यानि सुंदर जी तब एकदम अकेले ही थे। और उन्हें इस बात का अफसोस हो रहा था कि इतने दिनों बाद जूनियर महमूद उनसे मिलने आया है। लेकिन उसे खिलाने-पिलाने के लिए घर में कुछ नहीं है।

दरअसल, सुंदर जी जिस घर में ठहरे हुए थे वो उनके एक फैन का घर था जो वक्त के साथ उनका दोस्त भी बन गया था। और बुरे वक्त में उसी शर्मा परिवार ने सुंदर जी को आसरा दिया था। खैर, जूनियर महमूद ने सुंदर जी को अपने गुरू महमूद साहब का दिया हुआ वो लिफाफा पकड़ाया और बोले,”आपकी ये अमानत कई दिनों से मेरे पास है। और इसे आपको देने के लिए ही मैं आपको ढूंढ रहा था। कई जगह आपको ढूंढा। और आज आप मिल ही गए। अब आप इसे रख लीजिए। आपने महमूद साहब की किसी फिल्म में काम किया होगा। उसी का आपका बकाया है ये।” सुंदर जी ने कांपते हाथों से वो लिफाफा पकड़ा। उनकी आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी। सुंदर जी को रोते देख जूनियर महमूद की आंखों में भी फिर से आंसू आ गए। जूनियर महमूद ने सुंदर जी से कहा कि अब मैं जाना चाहूंगा बाबू जी।

सुंदर जी बोले,”बात सुन यार जूनियर। मेरी एक सलाह है। तू कभी भी अपने उस्ताद महमूद को छोड़ना मत। उसके पैरों में गिरे रहना। तू नहीं जानता होगा। लेकिन पहले भी कई दफा महमूद ने मुझे ऐसे पैकेट्स भेजे हैं। वो बहुत प्यारा इंसान है। हमेशा उसके साथ रहना।” कुछ और देर वहां रुकने के बाद जूनियर महमूद नम आंखों संग वापस आ गए और उन्होंने महमूद साहब को खबर दे दी कि सुंदर जी को आपका दिया लिफाफा दे दिया है।

आज सुंदर जी का जन्मदिवस है। साल 1908 में सुंदर जी का जन्म लाहौर में हुआ था। अपने करियर में सुंदर जी ने 400 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया था। किसी ज़माने में हीरो के तौर पर फिल्मों में दिखे सुंदर जी की आखिर कुछ फिल्मों में क्रेडिट तक कुछ फिल्मकारों ने नहीं दिया था। खैर, कोई शिकवा-शिकायत करने का मतबल नहीं है अब। ये किस्सा खुद जूनियर महमूद साहब ने एक इंटरव्यू में बताया था। आज ना तो सुंदर जी हैं। ना ही महमूद साहब और ना ही जूनियर महमूद इस दुनिया में हैं। लेकिन उनकी ये कहानी हमेशा रहेगी। सुंदर जी के साथ-साथ महमूद साहब और जूनियर महमूद साहब को भी किस्सा टीवी नमन करता है।