साहित्य

कहानी : उसकी नीली आँखें, सुनहरे बाल और गुलाबी रंगत सबको मोह लेती थी…By- Nazia Khan

Nazia Khan

Writer
Lives in Bhopal, Madhya Pradesh

From Ujjain

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कहानी
“करना तो मुझे हाँ ही है”
“मीशा, बेटा तुम तैयार नहीं हुईं, गेस्ट आने ही वाले हैं।” बुआ की आवाज़ पर मीशा ने हल्के से ब्लेंकेट सरकाया और उनींदी आवाज़ में पूछा,
“आपके गेस्ट हैं बुआ, मैं क्या ही करूँगी आकर। नींद आ रही है।”

“ऐसे वैसे गेस्ट नहीं हैं। धवल सान्याल ख़ुद आ रहा है, वह भी अकेले। समझ रही हो न?” बुआ मुस्कुराईं।
“धवल सान्याल, सान्याल होटल्स वाला धवल?” मीशा एक झटके से उठ बैठी।

“हाँजी बिल्कुल। वही धवल। बड़ी मुश्किल से मैंने आज उसे यहीं रुकने को मनाया है। शुक्र है यहाँ उनका कोई फाइव स्टार होटल या नाइट क्लब नहीं है। चलो शाबाश, जितनी अच्छी तरह से तैयार हो सकती हो, हो जाओ।”
“बुआ, क्या आज मैं आपकी कोई साड़ी पहन सकती हूँ?”

“ओहहो, एथनिक वियर, बिल्कुल, जो चाहो पहन लो। जूलरी भी अपनी मर्ज़ी से, पर पहले फ्रेश हो लो। ताज़ा गुलाब की पंखुड़ियों पर ठहरी ओस की बूँद की तरह दिखना है तुम्हें एकदम…” बुआ की बात पर उसके गुलाबी गाल, लाल हो गए।
उनके जाते ही मीशा ने राहत की साँस ली। उसके दिमाग़ में तेज़ी से प्लान बन रहा था।

“धवल तो बहुत अमीर है। अगर मुझे उसके क़रीब जाने को मिल जाये तो उसके फोन का एक्सेस ले सकती हूँ। करोड़पति-अरबपति आसामी है, दस-बीस लाख की हेराफेरी उसके लिये क्या ही अहमियत रखती होगी। 3-4 महीने आराम से कटेंगे। फिर उसका सामान तो होगा ही, सब-कुछ क़ीमती और ब्रांडेड।” मीशा का दिल बल्लियों उछलने लगा।

मीशा कोई मामूली लड़की नहीं थी। उसके पापा अनीश मित्तल लंदन में सेटल जाने-माने बिज़नेसमैन थे। लेकिन अपने पार्टनर पर अंधा भरोसा, उसकी धोखाधड़ी, कुछ ग़लत इन्वेस्टमेंट और नेताओं से पंगे के चलते वे बिल्कुल बरबाद हो चुके थे। सारी प्रॉपर्टी, बिज़नेस यहाँ तक कि घर भी हाथ से जा चुका था। बिज़नेस की लगातार टेंशन, पुलिस के अरेस्ट का और सब कुछ खो देने का डर उसकी अंग्रेज़ माँ बरदाश्त नहीं कर पाईं थीं। लगातार स्ट्रेस, टेंशन, बिगड़ती दिमाग़ी हालत के बाद वे दो साल में ही दुनिया से विदा हो गई थीं, लेकिन यह तब की बात थी, जब मीशा बारह साल की थी। इस बात को भी बारह साल गुज़र चुके। अब वह चौबीस की हो चुकी थी।

लेकिन हालात ने उसके शार्प माइंड को और तेज़ कर दिया था। बैंक जब प्रॉपर्टी कुर्क कर रहा था, तभी वह अपनी फ्रॉक में अपनी मम्मी की सारी क़ीमती जूलरी समेट लाई थी। छोटी बच्ची पर किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। वह थी ही इतनी प्यारी, मासूम, ख़ूबसूरत। उसकी नीली आँखें, सुनहरे बाल और गुलाबी रंगत सबको मोह लेती थी।

इसके बाद उसके पिता में लड़ने-जूझने का हौंसला नहीं बचा था। गहने बेचकर वे इंडिया आ गए थे और एक झुग्गी के क़रीब सस्ते से किराए के मकान में रहने लगे थे। मीशा समझ चुकी थी कि पिता से कोई उम्मीद रखना बेकार है। उसे अपने दम पर जीना सीखना होगा। आसपास के बच्चों के साथ मिलकर उसने चोरी चकारी, पॉकेटमारी, सेंध लगाने, ताले तोड़ने की बहुत सी ललित कलाएं सीख ली थीं। उसकी फर्राटेदार अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ों जैसे रूप-रंग की बदौलत हर जगह अलग ही धाक जम जाती थी। शुरुआत में उसे भाषा और रंग के अंतर से बहुत परेशानी हुई पर वह जल्द ही समझ गई थी कि यहाँ इंडिया में लोग इंग्लिश और गोरी चमड़ी पर दिलो-जान से फिदा हैं। हर इंग्लिश बोलने वाले को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है और गोरे होने के लिये बरसों क्रीम लोशन और घरेलू टोटके आज़माए जाते हैं। ग्रेजुएशन के साथ ही वह हैकिंग और डार्क वेब की दुनिया में भी एक्सपर्ट हो चली थी। मित्तल ने किसी को अपनी हालत नहीं बताई थी, न ही ये कि वे लंदन नहीं, इंडिया में ही रह रहे हैं। बेटी की चोरियों पर उन्होंने आँखें मूंद रखी थीं क्योंकि घर का ख़र्च वही चलाते थे। अब मीशा का कॉलेज पूरा होने पर उन्होंने ये जताया कि वे कुछ समय के लिये इंडिया आये हैं और सब रिश्तेदारों से मिलेंगे। सब बहुत ख़ुश हुए थे।

मित्तल ने अमीर रिश्तेदारों की एक लिस्ट बनाई थी। वे हर जगह कम से कम हफ़्ता भर रुकते, मीशा घर की रेकी करके क़ीमती चीज़ें चुरा लेती, बैंक अकाउंट्स हैक कर लेती, लेकिन सावधानी से और उतनी ही मात्रा में कि आसानी से पकड़ न आ सके। उन्हीं पैसों से वे अपने लिए ब्रांडेड कपड़े ख़रीदते और रिश्तेदारों को तोहफ़े भी देते, जिससे वे और भी ख़ुश हो जाते।

अपनी अमीर बुआ के यहाँ रुके उसे दस दिन हो चुके थे। इससे ज़्यादा रुकने पर उन्हें शक हो सकता था, और क़िस्मत से उसकी झोली में दो मौक़े एक साथ आ गए थे। अब वह अपनी बुआ का वार्डरोब और गहने आसानी से टटोल सकती थी और इतना अमीर गेस्ट घर में रुकने वाला था।

गोल्डन वर्क वाली मरून साड़ी में उसकी चाँदी सी रंगत एकदम दमक रही थी। सीढियां उतरते एकदम उसका पैर फ़िसला लेकिन गिरने से पहले ही किसी ने उसे थाम लिया।

टाल डार्क हैंडसम धवल की बॉडी किसी नर्म नाज़ुक अमीरज़ादे या प्रोटीन पाउडर और स्टेरॉइड्स वाली नहीं, किसी डिसिप्लिन्ड और वेल ट्रेंड फौजी की तरह थी। चपल, चुस्त, मज़बूत, एथलेटिक। दोनों सबसे बेख़बर एक-दूसरे को देखते ही रह गए थे। फिर होश दुरुस्त होने पर मीशा ने मुआफ़ी माँगते हुए धवल का कोट दुरुस्त किया और वॉशरूम चली आई।

उसके हाथ में धवल का वेलेट था।
“अरे बाप रे, इतने सारे नोट, कैशलेस ज़माने में भी। इसमें से 4-5 ग़ायब हो जाएं, तो क्या ही पता लगेगा।” फिर फोन निकालकर उसने कार्ड स्कैन कर लिए।

“ठीक है, अब इस वेलेट को वहीं फर्श के साइड में गिरा दूँगी, ताकि लगे, हमारी टक्कर से गिर गया होगा।”
लंच टाइम में बातें होने लगीं। बुआ ने दोनों की एक-दूसरे में दिलचस्पी भांप ली थी।

“मीशा बेटा, क्यों न तुम धवल को हमारे फार्म की विज़िट कराओ। हमारी स्ट्रॉबेरीज़ की क्वालिटी एकदम बेस्ट है।”
“जी बुआ, ज़रूर।” मीशा ने झुकी नज़रों से कहा।

“वॉव आपकी हिन्दी, आपका एक्सेंट एकदम इंडियन है, लग ही नहीं रहा, लंदन की अपब्रिंगिंग है, लग रहा जैसे बरसों से आप यहीं रह रही हैं।” धवल के कहने पर मीशा ने मुस्कुराकर शुक्रिया कहा। आगे क्