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कश्मीर में भारत से पाकिस्तान की जगह चीन लड़ रहा है : रिपोर्ट

कई दशकों तक भारत ने कश्मीर को लेकर चले आ रहे विवादों की वजह से पाकिस्तान को अपनी रक्षा और विदेश नीति के केंद्र में रखा था. पिछले दो सालों में यह स्थिति बदल गई और पाकिस्तान की जगह चीन ने ले ली है.

कश्मीर के लद्दाख इलाके मेंभारत और चीन के सैनिकों की झड़पने भारत का रुख बदल दिया. आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे भारत की विदेश और रक्षा नीति में चीन सबसे प्रमुख स्थान पर है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, चीन के पूरे एशिया में असर बढ़ाने की कोशिशों के साथ मिल कर भी भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था से बहुत पीछे है. 2014 से 2016 तक भारतीय सेना की उत्तरी कमांड के प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा कहते हैं, “भारत बहुत तेजी से चीन-केंद्रित हुआ है.”

1947 में भारत और पाकिस्तान के बनने के बाद से ही कश्मीर विद्रोह, तालाबंदी और राजनीतिक जोड़ तोड़ का शिकार रहा. इतना ही नहीं भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच हुए चार युद्धों के केंद्र में भी कश्मीर ही था. कश्मीर दुनिया में अकेली ऐसी जगह है जिसे लेकर तीन परमाणु ताकत से लैस देशों के बीच टकराव है.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत
1960 के दशक में भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन का एक सक्रिय सदस्य था. समूह में शामिल 100 से ज्यादा देशों ने शीत युद्ध के दौर में किसी एक प्रमुख ताकत की ओर जाने की बजाय अलग रहने का फैसला किया. पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों से विवादों के बावजूद भारत का गुट निरपेक्ष रवैया उसके विदेश नीति की धुरी रहा है. साथ ही भारत के राजनयिकों का ध्यान मुख्य रूप से पाकिस्तान के कश्मीर को लेकर किये जा रहे दावों को खत्म करने पर रहा है. पूर्व राजनयिक और 2002-03 में भारत के विदेश सचिव रहे कंवल सिब्बल कहते हैं, “कश्मीर एक तरह से हमारी विदेश नीति की चिंताओं के केंद्र में रहा है.”

पाकिस्तान की जगह चीन
भारत और चीन के बीच हुये लद्दाख में सीमा विवाद ने दोनों एशियाई देशों के बीच तनाव को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है. राजनयिकों और सैन्य अधिकारियों के बीच 17 दौर की बातचीत के बाद भी यह तनाव बरकरार है.

हुडा का कहना है कि कई दशकों तक भारत यही समझता रहा कि चीन उसके लिये सैन्य खतरा नहीं बनेगा. हालांकि 2020 के मध्य में काराकोरम के पहाडों में लद्दाख की गलवान घाटी में हुए झड़प ने यह धारणा बदल दी.

नई दिल्ली के सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस में रिसर्च फेलो कोंस्टान्टिनो जेवियर कहते हैं, “गलवान रणनीतिक रूप से एक मोड़ का बिंदु है. इसने भारत में एक नई सहमति बनाई है कि उसे चीन के साथ सिर्फ सीमा विवाद सुलझाने की बजाय पूरे रिश्ते को नये सिरे से तय करना है.”

गलवान में मध्ययुगीन तरीके से पत्थर और डंडों को हथियार बनाकर हुई लड़ाई में भारत के 20 और चीन के चार सैनिकों की मौत हुई. हालांकि बाद में चीन के और सैनिकों की जान जाने की खबरें भी आई.

कश्मीर में बदलाव
ये लड़ाई कश्मीर के राज्य का दर्जा छिनने के एक साल बाद हुई थी.कश्मीर की स्वायत्तता खत्म करने के बाद भारत सरकार ने इसे दो केंद्रशासित राज्यों में बांट दिया. इसके साथ ही जमीन के मालिकाना हक और नौकरियों को लेकर राज्य के विशेषाधिकार को खत्म कर दिये. नये राज्यों के रूप में बंटवारा करने के बाद स्थानीय राजनेताओं, पत्रकारों और संचार पर भारी पाबंदियां लगा दी गईं.

सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि इस कदम में केवल प्रशासनिक बदलाव किये गये हैं. हिंदू राष्ट्रवादियों की लंबे समय से यह मांग रही है कि मुस्लिम बहुल कश्मीर को भारत में पूरी तरह से शामिल किया जाये. पाकिस्तान ने भारत के इस कदम पर बड़ी उग्रता से प्रतिक्रिया दी और कहा कि कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है और उसकी स्थिति के साथ कोई भी एकतरफा बदलाव अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन है.

चीन की चुनौती
हालांकि भारत के इस कदम पर कूटनीतिक रूप से बड़ी चुनौती चीन की तरफ से आई जिसकी भारत को उम्मीद नहीं थी. चीन ने भारत के इस कदम की आलोचना की और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया. यहां कश्मीर विवाद पर बीते पांच दशकों में पहली बार चर्चा हुई, हालांकि इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

कश्मीर को लेकर भारत की नीति लंबे समय से एक ही है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने वह जोर दे कर कहता है कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ एक द्विपक्षीय मामला था. पाकिस्तान से वह इसे भारत का अंदरूनी मामला बताता है. इसके साथ ही वह कश्मीरी आलोचकों के सामने इस बात पर जोर देता है कि कश्मीर, आतंकवाद और कानून व्यवस्था का मसला था.

कश्मीर में हिंसा और पड़ोसियों के परमाणु हथियार
शुरुआत में भारत के सामने कश्मीर के कुछ हिस्सों में भारत विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्श हुए. हालांकि इन विरोधों को दबाने के बाद 1989 में भारत के नियंत्रण वाले हिस्से में हथियारबंद विद्रोह ने जोर पकड़ ली और कश्मीर में आतंकवाद एक बड़ी समस्या बन गया. लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद ने इलाके में दसियों हजार लोगों की जान ली है.

कश्मीर, परमाणु ताकत के लिहाज से भी एक चरम बिंदु बन गया जब 1998 में भारत और पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बना लिये. उनकी तनातनी ने दुनिया का भी ध्यान खींचा और तब अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बिल क्लिंटन ने कश्मीर को “दुनिया की सबसे खतरनाक जगह” कहा.

भारतीय विदेश नीति के कई जानकार मानते हैं कि भारत कई दशकों तक कश्मीर में बदलाव के लिये विदेशी दबाव को रोकने में सफल रहा था. हालांकि यहां भारत के शासन के खिलाफ लोगों की भावनायें जब तब उभरती रही हैं.

चीन की चुनौती
भारत के नीति निर्माताओं के सामने अब चीन बड़ी चुनौती है. चीन एशिया में ज्यादा ताकत लगाने के साथ ही पाकिस्तान को कश्मीर के मसले पर समर्थन दे रहा है. शिकागो यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर पॉल स्टानीलैंड का कहना है पाकिस्तान अब चीनी ताकत के सहयोगी के रूप में ज्यादा जटिल राजनीतिक भूमिका निभा रहा है. इससे उसे कुछ ताकत और असर मिला है.”

भूराजनीतिक टकराव गहराने के सात ही कश्मीरी मोटे तौर पर खामोश हैं. उनकी नागरिक स्वतंत्रता पर पाबंदियां हैं क्योंकि भारत ने किसी भी तरह के विरोध के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति अपना रखी है.

दुनिया के फलक पर चीन की ताकत बढ़ने के कारण भारत, अमेरिका और नये भारत प्रशांत सहयोग संगठन क्वाड के नजदीक गया है. क्वाड में भारत, अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और जापान भी है. ये देश चीन पर इलाके में आर्थिक दबदबा और सैन्य गतिविधियों के जरिये वस्तुस्थिति बदलने का आरोप लगाते हैं.

पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल कहते हैं, “हम जान गये हैं कि चीन की महत्वाकांक्षाओं को रोकने के लिए एक घेरा बनाने की जरूरत है और इसके लिये चीन के किसी भी आक्रामकता के खिलाफ सुरक्षा की एक नई दीवार बनाई जा रही है, क्वाड के केंद्र में यही है.”

भारत के रणनीतिक विचारकों की चर्चा में अब क्वाड प्रमुख है. इसके साथ ही भारत ने चीन के साथ लगती सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास को तेज कर दिया है. दूसरी तरफ चीन क्वाड को अपने आर्थिक विकास और प्रभाव को रोकने की कोशिश के रूप में देखता है. सिबल ने कहा, “इस तरह से हमने चीन को यह संकेत दे दिया है कि हम तुम्हें रोकने के लिये दूसरों के साथ जुड़ने को तैयार हैं.”

एनआर/आरपी (एपी)