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“कभी यूं ही जब हुई बोझिल सांसें, भर आई बैठे बैठे जब यूं ही आंखें…गीतकार ”योगेश गौड़” के जन्म दिवस पर विशेष!

“कभी यूं ही जब हुई बोझिल सांसें। भर आई बैठे बैठे जब यूं ही आंखें। कभी मचल के। प्यार से चल के। छुए कोई मुझे पर, नज़र ना आए। कहीं दूर जब दिन ढल जाए। सांझ की दुल्हन बदन चुराए।” ये गीत नहीं है। ये दर्शन है। और इस दर्शन के दर्शन कराने वाली हस्ती हैं योगेश गौड़ जी। आज योगेश जी का जन्म दिवस है। 19 मार्च 1943 को लखनऊ में योगेश जी का जन्म हुआ था। साल 2018 में योगेश जी ने द इंडियन एक्स्प्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि सालों से उनके पास कोई नहीं आया गाने लिखवाने के लिए। 90 के दशक के आखिरी सालों में उन्होंने कुछ फिल्मों के लिए गीत लिखे थे। लेकिन वो फिल्में कभी रिलीज़ ना हो सकी। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उन्हें पूरी तरह भुला दिया।


योगेश जी के शुरुआती जीवन की बात करें तो इनके पिता पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे। मगर योगेश जी जब छोटे थे तब ही उनकी असमय मृत्यु हो गई। इनकी मां ने बड़ी मुश्किलों में परिवार चलाया था। वैसे ये माता जी ही थी जिनसे इन्हें कविताई करने की प्रेरणा मिली थी। 16 साल की उम्र में योगेश जी लखनऊ से मुंबई आ गए। तब इनके एक कज़िन जिनका नाम वृजेंद्र गौड़ था, वो मुंबई में ही रहा करते थे और डायलॉग राइटर थे। योगेश जी उन्हीं के सहारे मुंबई आए। लेकिन जल्द ही अहसास हो गया कि मुंबई में इन्हें अपना ठिकाना खुद बनाना होगा। मुंबई की एक झुग्गी बस्ती में इन्होंने एक झोपड़ी 12 रुपए महीना किराए पर ले ली। लेकिन ना तो वहां बिजली थी। और ना ही पानी। एक कुआं था जहां से ज़रूरत का पानी लिया जाता था।

जीवन चलाने के लिए इन्होंने मुंबई में कई तरह के काम किए। सामान बेचा। मजदूरी की। चक्रधारी नामक एक फिल्म में तो इन्होंने एक्स्ट्रा कलाकार के तौर पर भी काम किया था। उस फिल्म में त्रिलोक कपूर और निरूपा रॉय हीरो-हीरोइन थे। लेकिन एक अच्छी बात ये रही कि इन्होंने लिखना नहीं छोड़ा। इनके पास एक डायरी थी जिसमें ये छोटी-छोटी कविताएं और अपने विचार लिखा करते थे। एक दिन किसी तरह इनकी डायरी रोबिन बनर्जी ने पढ़ ली। रोबिन बनर्जी उस वक्त के नामी डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर थे। इनकी लेखनी बनर्जी साहब को बड़ी पसंद आई। और उन्होंने योगेश जी को अपनी फिल्म सखी रोबिन के लिए गीत लिखने का ऑफर दिया। इसी फिल्म के लिए इन्होंने एक गीत लिखा जिसके बोल थे,”तुम जो आ जाओ तो प्यार आ जाए।” ये योगेश जी के करियर का पहला सुपरहिट गीत था। इस गीत को मन्ना डे और सुमन कल्यानपुर जी ने गाया था।

इस तरह बतौर गीतकार योगेश जी का करियर शुरू हुआ। हांलाकि शुरुआत में इन्होंने अधिकतर छोटे बजट और बी-ग्रेड फिल्मों के लिए गीत लिखे थे। मुंबई में गुज़ारा करने की चुनौती जो थी। फिर एक दिन इनकी मुलाकात हुई नामी संगीतकार सलिल चौधरी जी से। शैलेंद्र जी की मृत्यु के बाद सलिल चौधरी उन दिनों किसी गीत लेखक की तलाश में थे। सलिल चौधरी जब योगेश जी से मिले तो काफी प्रभावित हुए। उन्होंने आनंद फिल्म के बारे में इन्हें बताया। और दो गीत लिखने को कहा। बाकि गीत गुलज़ार साहब लिख रहे थे। सलिल चौधरी जी के कहे मुताबिक योगेश जी ने आनंद के लिए दो गीत लिख दिए। और वो दोनों ही गीत बहुत हिट हुए। खूब पसंद किए गए। एक का ज़िक्र तो शुरुआत में मैंने किया ही था। दूसरा था,”ज़िंदगी, कैसे है पहेली हाय।” और यहीं से योगेश जी बन गए ए-ग्रेड फिल्मों के गीतकार।

योगेश जी ने आनंद के बाद कई नामी फिल्मों के लिए गीत लिखे। जैसे अन्नदाता, अनोखा दान, मेरे भईया, रजनीगंधा, मिली, हमारे तुम्हारे, बातों बातों में, मंज़िल, अपने पराए, शौकीन, पसंद अपनी अपनी व और भी कई। 29 मई 2020 योगेश जी की मृत्यु हो गई थी।