सेहत

कद्दू कटेगा, सबमे बंटेगा!

अरूणिमा सिंह
============
कद्दू कटेगा सबमे बंटेगा!
ये सच ही है क्योंकि कद्दू होते ही इतने बड़े है कि आप अकेले नहीं खा सकेगे। पूरी तरह से बढ़ चुके कद्दू यानि कोहड़ा को ज़ब आप काटेंगे तो वो इतना बड़ा होता है कि आपका अड़ोस पड़ोस भी बनाये खाये।
पूर्वांचल के गांव की ये पहचान है हर घर का छप्पर आपको कद्दू के, लौकी के बेल से ढंका मिलेगा।
ऊपर चढ़कर बंड़ेर (मुंडेर )पर दस दस किलो के कद्दू लगते है। सीढ़ी लगाकर फिर बड़ेरी पर चढ़कर कद्दू तोड़ा जाता है। हमारे यहां कद्दू को काटते नहीं है फोड़ते है और कोई स्त्री नहीं बल्कि पुरुष फोड़ता है।
कोहड़ा बादी ( बदहजम) होता है इसलिए इसकी सब्जी बिन हींग डाले नहीं बनती है।
कोहड़ा का फूल, नरम कोपल, कली, फल सबकी सब्जी बनाकर खाया जाता है।
अगर कद्दू बो दिया गया और अच्छी प्रजाति का है तो इतना फलता है कि घर भर जाये।
बारिश के समय में ज़ब सब्जी की आमद कम हो जाती है और घर पर यदि कोहड़ा की बेल अच्छी तरह से फ़ैलकर कद्दू लगने लगे है तो ये कोहड़ा घर में सब्जी की कमी नहीं होने देता है।
हमारे बाबा कहते थे कि -बरसात में कोहड़ा आड़े मोहड़ा (कद्दू ही सब्जी की दिक्क़त दूर करके परेशानी को थाम लेता है )
कद्दू को बेटे का प्रतीक मानते है इसलिए जेठ माह का कोहड़ा जेठ बेटे के माता पिता नहीं खाते है।
कद्दू कच्ची सब्जी खाओ, फूल के पकौड़े, कोपल, कली के साग, पकने पर उबालकर नाश्ता, पके कद्दू के बीज की गिरी को भूनकर खाओ।
चाहे जिस भी तरह से खाओ आपको ढेर सारा स्वाद और सेहत देने की गारंटी है।
यदि सम्भव हो, जगह हो तो कद्दू की बेल अवश्य लगाए बहुत स्वादिष्ट, सेहत भरी कम लागत की सब्जी है।
शैड्यूल पोस्ट अरूणिमा सिंह