नई दिल्ली – मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख देने वाले कठुआ गैंगरेप मामले में बलात्कार और हत्या से पहले आठ साल की मासूम को भारी तादाद में जबरन नींद की गोलियां दी गई थीं। जिसके कारण वह कोमा में चली गई थी। यह महत्तवपूर्ण जानकारी अपराध विज्ञान विशेषज्ञों ने दी है।
इस मामले की जांच कर रही जम्मू कश्मीर पुलिस की क्राईम ब्रांच अपहर्ताओं द्वारा दी गईं ‘मन्नार कैंडी’ (जिसे स्थानीय गांजा समझा जाता है) और एपिट्रिल 0.5 एमजी गोलियों के प्रभाव का परीक्षण करने के लिए इसी महीने की शुरुआत में उसका विसरा अपराध विज्ञान प्रयोगशाला में भेजा था।
हाल ही में क्राईम ब्रांच को मिली मेडिकल राय के तहत डॉक्टरों ने कहा है कि आठ साल की बच्ची को दी गईं गोलियों से संभवत: वह सदमे की स्थिति में या कोमा में चली गई। क्राईम ब्रांच ने मेडिकल विशेषज्ञों से आठ साल की बच्ची को उसके खाली पेट रहने के दौरान दी गईं इन गोलियों के संभावित असर के बारे में पूछा था।
क्राईम ब्रांच ने तब विस्तृत मेडिकल राय जाने का फैसला किया जब अदालत में आरोपियों और उनके वकीलों ने तथा सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों ने दावा किया कि यह करीब-करीब असंभव है कि लड़की पर हमला हो रहा हो और वह नहीं चिल्लायी हो।
विसरा का परीक्षण करने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि लड़की को जो दवा दी गयी थी उसमें क्लोनाजेपाम सॉल्ट था और उसे मरीज की उम्र और वजन को ध्यान में रखकर चिकित्सकीय निगरानी में ही दिया जाता है। चिकित्सकीय राय में कहा गया है, ‘उसके (पीड़िता के) 30 किलोग्राम वजन को ध्यान में रखते हुए मरीज को तीन खुराक में बांटकर प्रतिदिन 0.1 से 0.2 एमजी दवा देने की सिफारिश की जाती है।’
विषेशज्ञों के मुताबिक, ‘बच्ची को 11 जनवरी, 2018 को जबर्दस्ती 0.5 एमजी की क्लोनाजेपाम की पांच गोलियां दी गईं जो सुरक्षित डोज़ से ज्यादा थी। बाद में भी उसे और गोलियां दी गईं। ज्यादा डोज़ के संकेत और लक्षण नींद, भ्रम, समझ में कमी, प्रतिक्रियात्मक गतिविधि में गिरावट, सांस की गति में कमी या रुकावट, कोमा और मृत्यु हो सकते हैं।’
डॉक्टरों के अनुसार, क्लोनाजेपाम की शीर्ष सांद्रता दवा लेने के करीब एक से डेढ़ घंटे में रक्त में हो जाती है, चाहे उसे भोजन के साथ लिया जाए या उसके बगैर। यह राय अगले हफ्ते ग्रीष्मावकाश के बाद पंजाब के पठानकोट की जिला एवं सत्र अदालत को सौंपी जाएगी जो इस मामले की सुनवाई कर रही है।