Ataulla Pathan
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वो 1920 का दौर था, ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक अपने उरुज पर थी, इसी तहरीक के दौरान स्वतंत्रता सेनानी शाह मुहम्मद ज़ुबैर साहेब को मुंगेर की जामा मस्जिद में तक़रीर करने के लिए बुलाया गया, मस्जिद में काफ़ी तादाद में लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे; तब ही शाह मुहम्मद ज़ुबैर एक नौजवान श्रीकृष्ण सिंह का हांथ पकड़े हुए मस्जिद में दाख़िल होते हैं, और उन्हे (श्रीकृष्ण सिंह) तक़रीर करने कहते हैं, श्रीकृष्ण सिंह ने मस्जिद से हिन्दु-मुस्लिम एकता, ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के समर्थन में एक इंक़लाबी तक़रीर की; जिसकी गूंज काफ़ी दूर तक सुनाई दी।
और यहीं से शुरु होता है श्रीकृष्ण सिंह साहेब का सियासी सफ़र जो उन्हे बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाती है। श्रीकृष्ण सिंह शाह मुहम्मद ज़ुबैर साहेब को अपना सियासी गुरु मानते थे। शहर मुंगेर के ज़ुबैर हाऊस मे ही उन्होंने सियासत की शुरुआत की थी, यहीं उनकी मुलाक़ात हिन्दुस्तान के बड़े से बड़े नताओं से हुई चाहे वो महात्मा गांधी हों या मोती लाल नेहरू या मौलाना जौहर…। यहीं इन्होंने 1922-23 के दौरान किसान सभा की बुनियाद डाली थी, जिसके अध्यक्ष शाह मुहम्मद ज़ुबैर थे और श्रीकृष्ण सिंह उपाध्यक्ष। बाद में शाह मुहम्मद ज़ुबैर मुंगेर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष बनते हैं, और श्रीकृष्ण सिंह उसके उपाध्यक्ष। 1930 में इस पद पर रहते हुए शाह मुहम्मद ज़ुबैर का इंतक़ाल हो जाता है। जिसके उपाध्यक्ष यानी श्रीकृष्ण सिंह ख़ुद ब ख़ुद मुंगेर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष बन गये। पर श्रीकृष्ण सिंह अपने सियासी मेंटर और बड़े भाई शाह मुहम्मद ज़ुबैर के एहतराम की वजह कर कभी भी उस कुर्सी कभी नहीं बैठे, जहां अध्यक्ष रहते हुए शाह मुहम्मद ज़ुबैर बैठा करते थे। उनके लिए उस कुर्सी के बग़ल में उससे छोटी कुर्सी लगाई गई।
ये मामला यहीं नहीं रुका, इसका कई आयाम है। जिसपर फिर कभी बात होगी।
– तस्वीर 1948 के मोमिन कॉन्फ़्रेंस के जलसे की है, जहां श्रीकृष्ण सिंह अपने साथी विधायक अब्दुल क़ैयुम अंसारी साहब के साथ देखे जा सकते हैं।
~ Md Umar Ashraf
श्रीकृष्ण सिंह – बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री
“बिहार केसरी” डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) (1887–1961), भारत के अखंड बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री (1946–1961) थे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री के रुप में आजीवन साथ रहे। उनके मात्र 10 वर्षों के शासनकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में की उल्लेखनीय कार्य हुये। उनमें आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी व बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।
अविभजित बिहार के विकास में उनके अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान के लिए “बिहार केसरी” श्रीबाबू को आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाना जाता है । अधिकांश लोग उन्हें सम्मान और श्रद्धा से “बिहार केसरी” और “श्रीबाबू” के नाम से संबोधित करते हैं।
स्मरणीय स्थान
जन्म स्थान – खनवां गांव (नवादा जिला) जहां उनका ननिहाल है। वहां मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने लगभग दो सौ करोड़ की लागत से कई योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम किया है। इनमें उनकी स्मृति में एक स्मारक भवन, पार्क, पॉलीटेक्निक कॉलेज, हॉस्पिटल, पावर हाउस, पावर ग्रिड इत्यादि का निर्माण प्रमुख हैं।
पैतृक गांव- माउर, बरबीघा(शेखपुरा जिला) यहां उनकी स्मृति में एक प्रवेश द्वार बनाया गया है, श्रीबाबू के पैतृक आवास पर व बरबीघा चौक पर एक-एक प्रतिमा स्थापित की गई है, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में किया गया है इत्यादि।
कर्मभूमि गढ़पुरा- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी जी ने गुजरात में साबरमती आश्रम से लगभग 340 किलोमीटर की पदयात्रा कर दांडी में अंग्रेजी हुकूमत के काले नमक कानून को भंग किया था। गांधी जी के आहवान पर बिहार में “बिहार केसरी” डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा “श्रीबाबू” ने मुंगेर से गंगा नदी पार कर लगभग 100 किलोमीटर लंबी दुरूह व कष्टप्रद पदयात्रा कर गढ़़पुरा के दुर्गा गाछी में अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के काले नमक कानून को तोड़ा था। इस दरम्यान ब्रिटिश फौज़ के जूल्म से उनका बदन नमक के खौलते पानी से जल गया था,पर वह हार नहीं माने थे। गढ़़पुरा के इस ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार के प्रथम सत्याग्रही कहा था। 82 वर्षों की घोर उपेक्षा के बाद गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति बेगूसराय की पहल पर 2012 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व 2014 में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी वहां पहुंचे और बाधाओं के बावजूद, स्वतंत्रता संग्राम की इस अनमोल विरासत व श्रीबाबू की कर्मभूमि के दिन बहुरने लगे हैं। यहां एक स्मारक निर्माणाधीन है, इस हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की स्मृति में पिछले 8 वर्षों से एक पदयात्रा “गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा” का आयोजन किया जा रहा है। वर्तमान में यह पदयात्रा प्रतिवर्ष 17 अप्रैल को मुंगेर के श्रीकृष्ण सेवा सदन से प्रारंभ होकर वाया बलिया, बेगूसराय, मंझौल, रजौड़ 21 अप्रैल को गढ़़पुरा पहुंचती है। सरकार ने बेगूसराय से गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह स्थल तक जाने वाली लगभग 34 किलोमीटर लंबी सड़क का नामांकरण “नमक सत्याग्रह पथ” किया है। किसी भी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में नामांकित देश की यह सबसे लंबी सड़क है। गढ़़पुरा के छोटे से हॉल्ट जैसे स्टेशन का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में “डॉ.श्रीकृष्ण सिंह नगर-गढ़पुरा” किया गया है जिसका स्टेशन कोड DSKG है। यहां करोड़ों की लागत से कई उल्लेखनीय विकास कार्य हुए हैं और यात्री सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
मुंगेर में कष्टहरणी घाट के निकट गंगा नदी पर नवनिर्मित रेल सह सड़क पुल का आधिकारिक रूप से नामांकरण “श्रीकृष्ण सेतु” किया गया है। पटना में गांधी मैदान के उत्तरी भाग में राजधानी का सबसे बड़ा सभागार “श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल” का निर्माण किया गया है जहां उनकी एक आदमकद प्रतिमा भी स्थापित किया गया है। गांधी मैदान,पटना के पश्चिमी छोड़ पर श्रीबाबू की स्मृति में “श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र” की स्थापना की गई है।
बेगूसराय के जीडी कॉलेज, श्रीकृष्ण महिला कॉलेज, नगर निगम चौक, कचहरी रोड, श्रीकृष्ण इंडोर स्टेडियम व रिफाइनरी टाउनशिप में “बिहार केसरी” श्रीबाबू की स्मृति में प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रीबाबू की स्मृति में यहां एक इनडोर स्टेडियम और कचहरी रोड पर जिला परिषद का एक विशाल कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स भी है।
उनके नाम से झारखंड की राजधानी राँची में एक पार्क है। किसी समय में झारखंड बिहार ही का भाग था।