धर्म

“ऐ ईमान वालों पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ, शैतान की नक़ल मत करो”

Razi Chishti
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अल्लाह सुबहानहूतआला ने फ़रमाया “ऐ ईमान वालों पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ, शैतान की नक़ल मत करो”(2:208). अल्लाह सु.हू.त. ईमान वालों से मुखातिबा है, उन लोगों से नहीं जो अभी मुसलमान है. मोमिन और मुसलमान का फ़र्क़ सुरह हुजरात में ब्यान किया गया है; “देहाती लोग कहते हैं कि हम ईमान लाये हैं. नहीं, तुम यह कहो कि हम अभी इस्लाम लाये हैं. ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में उतरा ही नहीं.”(49:14). जो लोग इस्लाम के पाँच अरकान से आगे नहीं बढ़े वह इस्लाम पर हैं. हदीसे जिबरईल में ब्यान हैं कि जब जिबरईल अ.स. ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह स.अ.व. इस्लाम क्या है तो आप स.अ.व. ने फ़रमाया नमाज़ पाबंदी से अदा करना, रमज़ान के रोज़े रखना, हज करना, ज़कात देना और कलमा शहादत पढ़ना यह इस्लाम है(सही बुख़ारी, सही मुस्लिम). और जब पूछा कि ईमान क्या है तो फ़रमाया ज़ुबान से इक़रार और जो इक़रार किया उसको दिल से तसदीक़ करलेना यह ईमान है. जब बंदा मोमिन हो गया उससे अल्लाह सु.हू.त. फ़रमा रहा है कि पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ शैतान की नक़ल मत करो. जब कोई अहंकार सहित अपने पूरे स्तित्व को अल्लाह सुबहानहूतआला(ईश्वर) के वजूद में समपूर्ण रूप से आत्मसमर्पण करदेता है तो फिर वह व्यक्ति पूर्ण रूप से इस्लाम में दाख़िल होगया. शैतान में अहंकार था और तकब्बुर में नाफ़रमानी कर बैठा. लोगों में आपसी लड़ाई झगड़े की वजह उनका अहंकार(अना) है. जो पूरा पूरा इस्लाम में दाख़िल होगया वह सब के अंदर अल्लाह की निशानियों को ही देखता है. लेकिन अज्ञानता के कारण हर व्यक्ति में, चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, उसमें अहंकार भर गया है. इंसान का पुतला जब बनकर तैयार हुआ तो वह बेजान था, उसमें अल्लाह सु.हू.त. ने अपनी रूह फूँक दी(38:72) पुतले में कूवत व हरकत आगयी लेकिन यह जान लें कि अल्लाह सु.हू.त. ने फ़रमाया है; “नहीं है किसी में कूवत और हरकत सिवाय अल्लाह के”(18:39). अल्लाह सु.हू.त. की रूह के साथ इंसान में इल्म, क़ुवते इरादा, कुदरत, सुनने, देखने और बोलने की ताक़त यह सब आगये. मालूम हो कि इंसान में जो भी सिफ़ात हैं वह उसके ज़ाती नहीं है, यह सब उसके पास अल्लाह सु.हू.त. की अमानत के तौर पर हैं. इस अमानत का ज़िक्र सूरह एहजाब (33:72) में है. इस तरह हई, क़य्यूम, क़दीर, अलीम, समी, बसीर और कलीम अल्लाह सु.हू.त. ही है, इंसान तो अब्दुल हई, अब्दुल अलीम, अब्दुल क़दीर वग़ैरह वग़ैरह है. सूरह फुस्सिलत में अल्लाह सु.हू.त. ने फ़रमाया है की उसकी जो निशानियाँ आफ़ाक़ में हैं वह सब इंसान की ज़ात में भी हैं(41:53). अपनी अना(अहंकार) को त्याग कर पूरे इस्लाम में जो दाख़िल हो गया वह सभी लोगों में अल्लाह की निशानियों को देखता है फिर उसका तकब्बुर ख़त्म हो जाता है, और जब सब को अपने जैसा ही समझने लगे तब वह बिना कलह और द्वेष के आपस में रहने लगता है.
Razi Chishti