सेहत

”ऐसा सोचने वाले लोग ज़्यादा लंबा जीते हैं” : शोध

जो होगा, अच्छा होगा यह मान लेने भर से जीवन बदल सकता है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऐसा सोचने वाले लोग ज्यादा लंबा जीते हैं.

प्रिंस भोजवानी खुद को कभी निराशावादी इंसान नहीं मानते थे. लेकिन जब एक महीने में तीन बार उन्हें अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े तो उन्हें अपने बारे में कुछ अलग पता चला. मई 2018 से पहले वह एक स्वस्थ इंसान थे. नियमित रूप से 30 किलोमीटर साइकल चलाते थे. फिर एक दिन अचानक उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया. आंखें धुंधला गईं और चलना मुश्किल हो गया.

इमरजेंसी के डॉक्टरों को लगा कि उन्हें स्ट्रोक हुआ है लेकिन वह उनकी स्थिति की सही वजह नहीं बता पाए. भोजवानी बताते हैं कि उनके एक “बेहद आशावादी दोस्त” ने इस बात की ओर इशारा किया कि वह हमेशा निराशावादी नजरिया रखते हैं और यह उनकी सेहत खराब होने की वजह बना.

न्यू यॉर्क में रहने वाले भोजवानी कहते हैं, “उसके अगले दिन से ही मैंने जिंदगी को अलग तरह से देखना शुरू किया.” उन्होंने ध्यान लगाना शुरू किया और रोज सुबह इस बात के लिए शुक्रिया अदा करना शुरू किया कि वह जीवित हैं.

इस तरह भोजवानी को एक मकसद मिला. उन्होंने साथियों के साथ मिलकर एक समाजसेवी संस्था ‘आसन वॉइसेज’ की शुरुआत की.

तब से भोजवानी की सेहत पर वैसा संकट नहीं आया है, जबकि वह घंटों तक काम करते हैं. वह कहते हैं कि ऐसा उनके नए आशावादी नजरिए के कारण है. वह बताते हैं, “उस जिंदगी बदल देने वाली घटना ने मुझे सकारात्मक सोच अपनाने को मजबूर किया. अब मैं उस तरह से जीना सोच भी नहीं सकता, जैसा पहले जिया करता था.”

क्या करता है आशावाद?
आशावाद अपने आप में किसी चीज का इलाज नहीं है. लेकिन बहुत से अध्ययन सकारात्मक सोच और अच्छी सेहत के बीच सीधा संबंध दिखा चुके हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कोई व्यक्ति कितना आशावादी है, यह जानने के लिए ‘लाइफ ओरिएंटेशन टेस्ट’ के दस सवाल एक मानक टेस्ट है. यह टेस्ट 1994 में प्रकाशित हुआ था.

इस टेस्ट में लोगों से विभिन्न बातों पर एक से पांच के बीच नंबर देने को कहा जाता है, जैसे कि “जब जीवन में अनिश्चितता हो तो मैं उम्मीद करता हूं सबसे अच्छा नतीजा निकलेगा.”

हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉप्युलेशन एंड डिवेलपमेंट स्ट्डीज में शोधकर्ता हयामी कोगा कहती हैं, “आमतौर पर यह मानना कि सब अच्छा होगा या भविष्य में जो होगा वह मेरे लिए लाभकारी होगा, आशावाद की परिभाषा है.”

कोगा 2022 में हुए एक अध्ययन में मुख्य शोधकर्ता थीं जिसका निष्कर्ष था कि जो लोग आशावादी होते हैं, उनके 90 साल से ज्यादा जीने की संभावना अधिक होती है. इसी साल मई में जेएएमए (JAMA) साइकिएट्री पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि जैसे-जैसे आशावादी लोगों की उम्र बढ़ती है, उनके शारीरिक अंगों के काम सुचारू रूप से करते रहते हैं.

इस अध्ययन के लिए छह साल तक 5,930 ऐसी महिलाओं पर अध्ययन किया गया था जो मेनोपॉज से गुजर चुकी थीं.

कोगा कहती हैं, “हम जानते हैं कि ज्यादा आशावादी लोगों के अधिक स्वस्थ जीवन जीने की संभावना बहुत होती है. उनकी आदतें स्वस्थ होती हैं, वे सेहतमंद भोजन करते हैं और एक्सरसाइज करते हैं.”

क्या आशावादी होना सीखा जा सकता है?
कुछ लोग तो पैदा ही आशावादी होते हैं लेकिन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में साइकिएट्री पढ़ाने वालीं सू वर्मा कहती हैं कि आशावादिता सीखी भी जा सकती है.

‘प्रैक्टिकल ऑप्टिमिजमः द आर्ट, साइंस एंड प्रैक्टिस ऑफ एक्सेपशनल वेल-बीइंग’ नामक किताब की लेखिका वर्मा बताती हैं, “गिलास को हमेशा आधा भरा देखने और सब अच्छा होने की उम्मीद का गुण भले ही आपके अंदर जन्म से नहीं हो, तब भी आप इसे सीख सकते हैं.”

वर्मा की सलाह है कि जब भी कोई उलझन या संदेह की स्थिति हो तो बुरे के बजाय अच्छा होगा, यह सोचना सीखना होता है. वह कहती हैं, “क्या रोशनी की कोई किरण दिखाई दे रही है? क्या कोई समस्या है जिसे हल किया जा सकता है, या फिर कोई सच्चाई है जिसे स्वीकार कर लेना चाहिए?”

वर्मा कहती हैं कि वह अपने मरीजों को कहती हैं कि किसी भी उलझन में यह मानना चाहिए कि जो सबसे अच्छा हो सकता है, वही होगा और फिर उस नतीजे के लिए कदम-दर-कदम रास्ता बनाना चाहिए.

वीके/एए (एपी)