साहित्य

ऐसा भी होता है

Shokki Dhingra ·
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ऐसा भी होता है
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कल एक दवा दुकान पर पैरासिटामोल के लिए जाना हुआ….
दुकान वाला इशारे से सभी को लाइन से आने बोल रहा था हम अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए आगे बढ़ रहे थे मेरे आगे एक बुजुर्ग थे कपड़े के नाम पर नीचे गमछा लपेटे थे और ऊपर एक उधड़ी हुई बनियान चेहरे पर उदासी और लाचारी साफ झलक रही थी
अपनी नम्बर आने पर दुकान वाले उन्होंने दवाई मांगी गमछे से पैसा निकाला और दे दिया दुकानदार जबतक पैसा वापिस करता वे बगल में खड़े हो गए…

अब हमारी बारी आ गई थी हमने पैरासिटामोल 650mg एक पत्ता मांगा दुकानदार ने कहा …भाईसाहब…खत्म हो गई ये आखिरी एक ही पत्ता था जो अंकलजी को दे दिया

मैं उदास होकर वहां से निकलने लगा तभी बुजुर्ग ने कहा…मेरे पत्ते से आधा इनको दे दीजिए….
मे बोला …नही रहने दीजिए मे किसी और दुकान से खरीद लूंगा और आपको वैसे भी इसकी जरूरत है

तभी बुजुर्ग बोले….बेटा एक ही रात में थोड़ी ने सब टेबलेट खा लूंगा सामने वाली फूटपाथ पर मेरी बूढ़ी पत्नी लेटी हुई है उसको बुखार है एक खाने से ही आज रात भर किसी तरह निकल जायेगा….तुम इसमें से आधी ले लो…तुम्हारा भी काम हो जाएगा आज के लिए….
दुकानदार ने कैंची से काटकर मुझे पांच टेबलेट पकड़ा दी और बोला कि इतने पैसे आप इनको दे दीजिए…
जैसे ही मैने जेब से पैसे निकालकर उनको देना चाहा…

उन्होंने लेने से साफ इंकार कर दिया…वह बोले कि बेटा अब क्या हम तुमसे इतनी दवाई का पैसा लें…
मेरा गला भर आया…. मैं उनके पीछे पीछे चलने लगा सामने सड़क पार करने पर एक झोपड़ी में वे बुजुर्ग घुस गए जिसमे से कोई मद्धम रोशनी आ रही थी…

मुझमे हिम्मत नही हुई कि मैं क्या बोलूं उनको और किस तरह से धन्यवाद दूं…

आज जब करोड़ों रुपये कमाने वाले और महल में रहने वाले दवा का कारोबार करने में लगे हैं ऐसे वक्त में कोई इंसान अपने हिस्से का दवा मुझे दे गया…..

दोस्तों कयीबार सचमुच इंसान ऐसे वक्त में निशब्द सा रह जाता है ….
🙏🙏🙏