

रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता मंजरी
सादर
Related Articles
मेरी ग़लती है, कि मैंने आज तक अपनी पत्नी की कद्र नहीं की!
Madhu Singh =============== रजनी जब हड़बड़ाकर जागी, तो निग़ाहें सीधे घड़ी पर पड़ी. सात बज गए थे. दिव्या दरवाज़े के बाहर से ही रुआंसी होकर चिल्ला रही थी, “मम्मी, आप अभी तक सो रही हैं? मेरी स्कूल बस आने वाली है. अभी तक न तो मुझे नाश्ता मिला है और ना ही मेरे टिफिन का […]
‘‘क्या कह रही हैं आप, समधिनजी?’’
दो लफ्ज =========== समधिन की बात सुन कर दिवाकर सकते में आ गए. नागिन की तरह फुफकार कर निर्मला बोली, ‘‘आप लोग मेरी बेटी को तरहतरह से तंग करते हैं. मैं ने बेटी का ब्याह किया है, उसे आप के हाथों बेचा नहीं है. मेरी बेटी अब आप के घर नहीं जाएगी.’’ दिवाकर ने पिछले […]
#कहानी- लम्हों की दास्तान…रेनू की क़लम से…
#कहानी- लम्हों की दास्तान अजय और परी तीन दिनों के लिए दिल्ली गए हुए हैं और मैं… मैं आजकल घर में नितान्त अकेली हूं. एकदम तन्हा, किंतु क्या वास्तव में मैं अकेली हूं. नहीं, मेरे साथ मेरे अतीत की स्मृतियां हैं, जो मुझे एक पल के लिए भी तन्हा नहीं छोड़तीं. गुज़रे दिनों के खट्टे-मीठे […]