साहित्य

एक स्त्री मन होना चाहता है बुद्ध…:”…कौन कहता है दीवारें बोलती नहीं…!!रूबी सत्येन्द्र कुमार की दो कवितायेँ पढ़िये!!

एक स्त्री मन होना चाहता है बुद्ध…:…कौन कहता है दीवारें बोलती नहीं…!!रूबी सत्येन्द्र कुमार की दो कवितायेँ पढ़िये!!

Satyendra Rubi Gupta
Kushinagar

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कौन कहता है दीवारें बोलती नहीं।
मैने तो हर शाम इनकी सिसकियाँ सुनी है।⚘⚘⚘⚘⚘⚘
हृदय तक बात पहुँच जायें तो आशीर्वाद दीजिएगा
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गीत
तन जर्जर और मन भी जर्जर फिर भी एक उम्मीद अभी।
लौट के आओगे घर आँगन है ऐसी उम्मीद अभी।
मुझमें बचपन की सब यादें
खट्टी मीठी भूली बातें।
शायद तुमको भी याद आये है ऐसी उम्मीद अभी।
लौट के आओगे घर आँगन है ऐसी उम्मीद अभी।
हर एक दीवारें तकती है।
छत की आस नहीं थकती है।
समझो मुझको पितृ धरोहर है ऐसी उम्मीद अभी।
लौट के आओगे घर आँगन है ऐसी उम्मीद अभी।
कितने रंग सजाया मैंने।
चैन नींद संग पाया मैने।
फिर कुछ पल संग जी लूँ रूबी है ऐसी उम्मीद अभी।
लौट के आओगे घर आँगन है ऐसी उम्मीद अभी।

रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता मंजरी
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आज का एक ताजा मुक्तक निवेदित है।
आप सभी को पसंद आये तो जल्दी ही इसे अपने आवाज़ में शेयर करूँगी।
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विद्या:मुक्तक ⚘⚘⚘⚘⚘
⚘मेरी कविता पढी जिसने,
उलझ जाते है वो ख़ुद से ।
⚘कभी की है मोहब्बत भी,
सभी ये पूछते मुझ से।
⚘जमाने भर से जो शिकवे ,
शिकायत प्रेम की करतें ।
⚘मोहब्बत की नही किसने,
मुझे यह पूछना उनसे।
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रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता मंजरी
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छन्द मुक्त कविता:- स्त्री मन
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एक स्त्री मन होना चाहता है बुद्ध।
त्याग देना चाहता है,
सारे वैभव,
सारे सुख।
पाना चाहता है निर्वाण।
लेकिन कैसे ?
कहाँ?
किससे द्वारा?
क्या कभी यह हो पायेंगा भय मुक्त?
क्या त्याग पायेगा अपनी संतान?
और तोड़ पायेगा जीवन साथी को दिये सात वचन?
चलो मान भी लें यह सब कुछ हो सम्भव।
परन्तु क्या वह रह पायेगा
या उसे रहने दिया जाएगा
वर्षों तक निर्वाध साधना में लीन ?
और यदि निर्वाण पा भी लिया तो,
क्या समाज उसे बुद्ध की भाँति दे सकेगा सम्मान?
आज के इस यक्ष प्रश्न पर विचार करता एक मौनअशांत स्त्रीमन।

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रूबी गुप्ता दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश भारत। ।
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सादर 💗💗💗💗🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🍫🍫🍫🥰