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एक मां अपने लापता बच्चे को तलाश करने कहीं भी जाएगी : फ़िलस्तीन की दर्द भरी दास्ताँ!

एक मां अपने लापता बच्चे को तलाश करने कहीं भी जाएगी और जब तक उसमें जान है वह नहीं रुकेगी. उसका बच्चा ज़िंदा है या नहीं, इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

चार दिन तक करीमा अलरास, ख़ान यूनिस के अल नासेर अस्पताल में मिलने वाली सामूहिक क़ब्रों में हर तरह की बदबू, धूल और आसपास के शोर के बावजूद अपने 21 साल के बेटे को तलाश करती रहीं.

अहमद 25 जनवरी को ख़ान यूनिस में मारे गए थे, लेकिन उनकी लाश उस समय से ही लापता थी. और फिर मंगलवार के दिन करीमा को अपना बेटा मिल गया.

वह कहती हैं, “मैं यहां उस वक़्त तक आती रही जब तक मुझे अपना अहमद मिल नहीं गया. उसने 12 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था. मैंने ही उसे पाला.”

क़रीब में ही दूसरे परिवार भी क़ब्रों के पास से गुज़र रहे थे. दुनिया के युद्धग्रस्त इलाक़ों में ऐसे दृश्य अक्सर देखने को मिलते हैं.

34 हज़ार लोगों की जान जा चुकी है…

एक तरफ़ बुलडोज़र क़ब्रों में मौजूद लाशों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं.

ज़मीन के नीचे से एक बांह दिखाई दे रही है. कुछ लोग निकलने वाली लाशों को दफ़नाने के लिए नई जगह देख रहे हैं और लापता लोगों के परिवार वाले इस उम्मीद में खड़े हैं कि उनके प्यारे भी यहीं कहीं होंगे.

लेकिन यह सभी दृश्य एक जैसी बात नहीं बताते. हर सामूहिक क़ब्र, चाहे वह मध्य अफ़्रीका में हो, मध्य पूर्व में या कहीं और हो- स्थानीय स्थितियों से जुड़ी होती है.

एक ऐसे युद्ध में जो अब तक ज़मीन के छोटे से टुकड़े पर 34 हज़ार लोगों की जान ले चुका है, मरने वालों को दफ़न करना एक पेचीदा और अक्सर ख़तरनाक काम बन जाता है .

कुछ क़ब्रिस्तान पूरी तरह भर चुके हैं. युद्ध के कारण कुछ क़ब्रिस्तानों तक पहुंचना मुमकिन नहीं. और इसी दबाव की वजह से कई लाशों को ऐसे अस्पतालों की ज़मीन में दफ़नाया गया, जहां इसराइली सेना के अनुसार वह हमास से लड़ चुकी है.

मैंने जिन युद्धों के दौरान रिपोर्टिंग की, वहां अक्सर यह बताना संभव था कि मरने वालों के साथ क्या हुआ. इसकी वजह यह थी कि विशेषज्ञ घटनास्थल पर जल्द पहुंच जाते हैं और पत्रकारों के लिए भी वहां पहुंचना संभव हो पाता है.

ग़ज़ा की पट्टी की वर्तमान परिस्थितियों में जहां इसराइल और मिस्र दोनों ने ही अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को इजाज़त देने से इनकार कर रखा है और लड़ाई की वजह से विशेषज्ञ के लिए किसी जगह पहुंचना ख़तरे से ख़ाली नहीं.

ऐसे में तात्कालिक तौर पर यह तय करना बहुत बड़ी चुनौती है कि ख़ान यूनिस के अल नासेर अस्पताल और ग़ज़ा शहर के अलशिफ़ा अस्पताल में मिली सामूहिक क़ब्रों से जिन लोगों की लाशें निकली हैं उनकी मौत की वजह क्या थी.

‘क़ब्रों की स्वतंत्र फ़ॉरेंसिक जांच की ज़रूरत है’

क्या इनमें से कुछ को इसराइली सैनिकों ने मारा, जैसा कि हमास और स्थानीय राहत अधिकारी दावा कर रहे हैं?

या फिर इन क़ब्रों में मौजूद सैंकड़ों लाशें उनकी हैं जो हवाई हमले और इस इलाक़े में होने वाली लड़ाई में मारे गए हैं?

क्या इसराइलियों ने लाशों को एक क़ब्र से निकाल कर नई क़ब्र में दफ़नाया है?

फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्च आयोग के ऑफ़िस के डायरेक्टर अजीत सिंह ने मुझे बताया कि इन क़ब्रों की स्वतंत्र फ़ॉरेंसिक जांच की ज़रूरत है.

संयुक्त राष्ट्र के एक और अधिकारी ने बताया कि मंगलवार को कुछ ऐसी लाशें भी मिलीं जिनके हाथ बंधे हुए थे.

इससे पहले फ़लस्तीन सिविल डिफ़ेंस के एक अधिकारी का बयान सामने आया था कि कई लाशों के हाथ बंधे हुए थे, जबकि कुछ को सर में गोली मारी गई थी और कुछ लाशें क़ैदियों जैसी यूनिफ़ॉर्म में थीं.

रैम ज़िदान, दो सप्ताह से अपने बेटे नबील की लाश की तलाश में थीं, जो बुधवार की दोपहर को उन्हें मिली.

रैम बताती हैं कि उन्होंने लाशों पर हिंसा के निशान देखे जिनके हाथ बंधे हुए थे. उन्होंने कहा, “उनकी हत्या की गई, कुछ के हाथ और पांव इकट्ठे बंधे हुए थे. यह कब तक ऐसे ही चलेगा?”

मैंने अजीत सिंह से सवाल किया कि क्या उनके पास इस बात के ठोस सबूत हैं कि कुछ लाशों के हाथ बंधे हुए थे?

उन्होंने जवाब दिया, “हमारे पास सबूत नहीं हैं, लेकिन जानकारी मिली है. इस जानकारी की कई सूत्रों से पुष्टि करने की ज़रूरत है और इस लिए हम एक अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र जांच चाहते हैं.”

अजीत सिंह ने कहा, “वर्तमान स्थिति में हमने मानवाधिकारों का उल्लंघन होते हुए देखा है. इनमें से अक्सर युद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं. हम इस बात की इजाज़त नहीं दे सकते कि यह केवल एक छोटा सा मामला बनकर दब जाए. यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है.”

अजीत सिंह ने पत्रकारों को बताया कि उनकी टीमें ग़ज़ा जाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, “अगर इसराइल की ओर से उन्हें इजाजत और सुरक्षित रास्ते की गारंटी मिल जाए तो वह जाने के लिए तैयार हैं.”

‘सामूहिक क़ब्रों में दफ़नाने की बातें आधारहीन’

इसराइल ने अस्पतालों में लाशें दफ़नाने के आरोप का खंडन किया है.

इसराइली सेना ने कहा है कि फ़लस्तीनी नागरिकों को सामूहिक क़ब्रों में दफ़नाने की बातें आधारहीन हैं.

साथ ही साथ यह दावा भी किया कि इसराइली सेना ने इस अस्पताल में बंधकों की मौजूदगी की सूचना पर ऑपरेशन किया था.

इस ऑपरेशन के दौरान फ़लस्तीनियों की ओर से दफ़नाई जाने वाले लाशों का मुआयना किया गया था.

इसराइली सेना के बयान में कहा गया, “उन लाशों की सावधानी से जांच पड़ताल केवल उन जगहों पर की गई, जहां इंटेलिजेंस ने बंधकों की संभावित मौजूदगी के बारे में बताया था.”

“मुर्दा लोगों के सम्मान को ध्यान में रखते हुए लाशों की जांच पड़ताल की गई, जिसके बाद उन लाशों को, जो इसराइली बंधकों की नहीं थीं, उनकी जगह पर लौटा दिया गया.”

इसराइली सेना के अनुसार अस्पताल पर छापे के दौरान 200 चरमपंथियों को हिरासत में लिया गया. इसके अलावा एम्युनेशन और इसराइली बंधकों के लिए रखी गई दवाई भी बरामद की गईं.

इधर हमास की ओर से आरोप लगाया गया है कि यह लाशें ऐसे लोगों की हैं जिनको इसराइली सेना ने मार दिया, लेकिन हमास की ओर से इस दावे के सबूत नहीं दिए गए.

सम्या को भी अपने पति की लाश इसी अस्पताल से मिली और वह उन्हें एक क़ब्रिस्तान में परिवार के साथ मिलकर दफ़नाने में कामयाब हुईं.

वह ताज़ा खोदी हुई क़ब्र के पास अपनी बेटी हिंद के साथ बैठी थीं.

उन्होंने मुझे बताया, “मेरी बेटी ने बाप की क़ब्र पर आने के लिए कहा और मैं उसे कहती थी कि जैसे ही हम उनको दफ़ना देंगे तो हम जाएंगे. शुक्र है ख़ुदा का. हालात मुश्किल हैं लेकिन शायद उनको दफ़नाने के बाद हमें कुछ आराम मिल जाए.”

हिंद की उम्र पांच साल है. उनको याद है कि उनके पिता उनसे बहुत प्यार करते थे. उन्होंने कहा, “वह मेरे लिए कई चीज़ें लाया करते थे और मुझे बाहर घुमाने के लिए ले जाते थे.”

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फ़रगल कीन
पदनाम,बीबीसी न्यूज़, यरूशलम