साहित्य

—एक बहाना झगड़े का!

Harish Yadav
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मेरी शादी मेरी मर्जी के खिलाफ एक साधारण से लड़के के साथ कर दी गई थी। उसके घर में बस उसकी माँ थी, और कोई नहीं। शादी में उसे बहुत सारे उपहार और पैसे मिले थे, पर मेरा दिल कहीं और था। मैं किसी और से प्यार करती थी, और वो भी मुझसे। लेकिन किस्मत ने मुझे यहाँ ला दिया, अपने ससुराल।
शादी की पहली रात जब वो दूध लेकर आया, मैंने उससे पूछा, “एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसे छूए तो उसे बलात्कार कहते हैं या हक?” उसने बस इतना कहा, “आपको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ शुभ रात्रि कहने आया हूँ,” और कमरे से बाहर चला गया। मैं सोच रही थी कि झगड़ा हो जाए ताकि मैं इस अनचाहे रिश्ते से छुटकारा पा सकूं, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मैं उस घर में रहकर भी घर का कोई काम नहीं करती थी। दिनभर ऑनलाइन रहती और न जाने किस-किस से बातें करती। उसकी माँ, बिना किसी शिकायत के, घर का सारा काम करती रहती, और उसके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती। मेरे पति एक साधारण कंपनी में काम करते थे। हमारी शादी को एक महीना हो चुका था, लेकिन हम पति-पत्नी की तरह कभी साथ नहीं सोए थे।
उस दिन, जब मैंने उसकी माँ के बनाए खाने को बुरा-भला कहकर फेंक दिया, तो उसने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया। बस, मुझे यही चाहिए था—एक बहाना झगड़े का। मैं पैर पटकते हुए घर से निकल गई, अपने पुराने प्यार से मिलने। मैने उससे कहा, “कब तक यहाँ ऐसे रहेंगे? चलो, भाग चलते हैं कहीं दूर।” पर सच तो यह था कि मेरे पास कुछ भी नहीं था, और वो खाली हाथ भागने को तैयार नहीं था।
फिर एक दिन, मेरे ससुराल में एक घटना घटी। मैंने पहली बार अपने पति की अलमारी खोली। उसमें मेरा बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, और वो सारे गहने थे, जो मेरे घरवालों ने मुझसे छीन लिए थे। मुझे ये सब देखकर झटका लगा। साथ ही, उसकी डायरी में मेरे लिए एक खत रखा था। उसमें लिखा था कि उसने मेरी हर चीज को संजोकर रखा था, और दहेज में मिले सारे पैसे मेरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए थे। उसने लिखा कि वो मुझे प्यार से इस रिश्ते में बाँधना चाहता है, न कि जबरदस्ती।
उसकी इन बातों ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने सोचा भी नहीं था कि ये “गंवार” मुझे इस तरह से समझ सकता है, बिना कुछ कहे। धीरे-धीरे, मुझे एहसास हुआ कि वो मुझे उसी सादगी से प्यार करता है, जिस सादगी से उसने मुझे अपनी जिंदगी में जगह दी थी।
अगली सुबह, मैंने सिंदूर गाढ़ा करके अपनी माँग में भरा और अपने पति के ऑफिस चली गई। वहाँ पहुँचकर मैंने सबके सामने कहा, “अब सब ठीक है। हम साथ-साथ एक लंबी छुट्टी पर जा रहे हैं।”
उस दिन, मुझे समझ आया कि जिन फैसलों को मैं गलत मानती थी, वही मेरे लिए सबसे सही थे। मेरे माँ-बाप ने मेरे लिए जो भी किया, वो सिर्फ मेरे भले के लिए था 🤔

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Dev Kumar
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गर्मी की भरी दोपहरी थी, और अचानक तीन-चार बिन बुलाए मेहमान घर आ गए। पापा, राहुल, ने उन्हें कुछ ज्यादा ही खास माना। बाकी हम, खासकर मैं और मेरी बहन अनुष्का, उन्हें पहले कभी नहीं देखे थे। हमें थोड़ी उलझन सी हो रही थी, लेकिन पापा तो उनका स्वागत करने में लगे हुए थे।
पापा ने जल्दी से माँ, सपना, से कहा, “तुम रसोई में काम करो, मैं मेहमानों के साथ बैठता हूँ।” अब यह भी सच था कि पापा को अपनी गर्मी की ज़रा भी परवाह नहीं थी, लेकिन माँ को रसोई में काम करने के लिए भेज दिया। माँ पहले से ही थकी हुई थी। दिनभर के काम के बाद अब गर्मी में रसोई में खाना बनाने का काम और उस पर पापा के बार-बार आदेश।
हम छोटे थे, तो थोड़ा बहुत मदद कर रहे थे, लेकिन यह भी एक क़िस्म का काम था। माँ पसीने-पसीने हो रही थी, लेकिन सर पर दुपट्टा बांधकर काम करती जा रही थी। इस सब के बीच पापा और उनके दोस्त आराम से टेलीविजन के सामने बैठकर कूलर की हवा खाते हुए चर्चा कर रहे थे। कभी नाश्ता लाओ, कभी पानी लाओ, तो कभी कह रहे थे, “यह क्या, चाय थोड़ी ठंडी है।”
माँ के धीरज का बांध तब टूट गया जब पापा रसोई में आए और धीरे से बोले, “इतनी देर क्यों लग रही है खाना बनाने में? एक घंटा हो गया!” माँ ने समझाने की कोशिश की कि वह अकेले काम कर रही हैं, ऊपर से गर्मी और फिर पापा के बार-बार के आदेश। लेकिन पापा और गुस्से में आ गए। माँ भी गुस्से में बोली, “पंखे के नीचे बैठकर सब कुछ जल्दी हो जाता है। लेकिन यहाँ एक मिनट भी घंटे जैसा लगता है।”
बस फिर क्या था, मामला गरम हो गया। पापा वापस जा कर अपनी बातें करने लगे, और माँ चुपचाप रोने लगी। यह सब देखकर मेरा दिल भर आया।
खाना तैयार हो चुका था, और जैसे ही माँ ने खाना परोसने के लिए दिया, मैंने चुपचाप नीचे जाकर मेन स्विच बंद कर दिया। नीचे कोई भी नहीं था, और सब खाना शुरू कर चुके थे, तो पापा चेक भी नहीं करेंगे।
अब क्या था, सब गर्मी में खाना खा रहे थे, पसीने में भीगते हुए। और मेहमानों को भी यह समझ में आया कि खाना वही खा रहे थे, जिस हालत में माँ ने उसे बनाया था।
पापा जैसे ही रसोई में आए, अपने झूठे बर्तन रखने के लिए, पसीने से तरबतर हो गए। पापा ने कहा, “बहुत गर्मी है, कैसे कर रही थी इतना काम?”
माँ चुप हो गई, और बिजली विभाग को भी धन्यवाद दिया कि सही समय पर लाइट चला दी। अब सबको लगा कि लोड ज्यादा हो जाने से मेन स्विच खुद गिर गया था या फिर किसी ने गलती से गिरा दिया होगा।
मैं तो इतनी मासूम थी कि आज तक किसी को मुझ पर शक भी नहीं हुआ।
बात बस इतनी थी, पापा से सबसे ज्यादा प्यार है, लेकिन माँ को रोता हुआ देखना बर्दाश्त नहीं हुआ।

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