Harish Yadav
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एक #बदचलन” औरत की सच्ची कहानी
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में
एक विधवा महिला अपने तीन बच्चों संग रहती थी उसके सभी बच्चे छोटे छोटे थे कि उसके पती का देहांत हो गया महिला बहुत ही लाचार बेबस और गरीब थी
उसके बच्चों में बेटी ही सबसे बड़ी थी बेटों का नाम रामू श्यामू और बेटी का नाम काजल था धीरे-धीरे समय बीतता गया और महिला जैसे तैसे मेहनत मजदूरी करके
अपने तीनों बच्चों को थोड़ा बहुत पढ़ा लिखाकर पालती गयी…
धीरे-धीरे समय बीतता गया और बच्चों में काजल सबसे बड़ी थी काजल देखने में बहुत गोरी और सुंदर थी देखते देखते काजल 20 साल की हो गई तो बेचारी बिधवा मां ने अपनी बेटी काजल का रिश्ता प्रयागराज जिले के एक छोटे से गांव में राकेश नाम के लड़के के साथ तय कर दिया…
राकेश मुम्बई में एक प्राइवेट कंपनी में 40 हजार महीने कमाता था राकेश भी काजल को बहुत पसंद करता था क्योंकि काजल थी ही बहुत सुंदर कुछ दिनों बाद काजल और राकेश की सादी हो गई…
और पांच वर्ष के अंदर ही काजल के तीन बच्चे दो बेटा और एक बेटी हुई बेटी सबसे छोटी थी लेकिन वह गूंगी थी बेचारी कुछ बोल नहीं पाती थी…
समय बीतता गया काजल को एक राज नाम के लड़के से दोस्ती हो गई काजल चोरी चोरी अपने पति से छिपाकर राज से बातें करने लगी और घर बुलाकर अवैध संबंध बनाने लगी…
काजल राज का ये सिलसिला दो से तीन महीना चला ही था कि काजल का पती राकेश मुम्बई से घर आ गया और एक दिन जब राकेश किसी काम से प्रतापगढ़ चला गया तो काजल अपने दोस्त राज को घर बुला लिया..
जब राकेश दोपहर को दो बजे घर आया तो देखा बेडरूम वाले कमरे में काजल और वो लड़का एक दूसरे कि बाहों में बाहें डालकर बातें कर रहे थे..
जब राकेश ने ये सब देखा तो मानों उसके पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि राज ने काजल को पैसे से लेकर हर ऐसो आराम दिया था काजल को राकेश ने भला बुरा कहां और कमरे से बाहर चला आया…
राकेश ने काजल को घर से इसलिए नहीं निकाला कि उसके तीनों बच्चे बिना मां के हो जाएंगे और काजल को समझा बुझाकर छोड़ दिया…
लेकिन काजल बहुत ही बदचलन औरत थी एक दिन काजल उसी लड़के के साथ घर से भाग कर दिल्ली चली गयी और उसके साथ रहने लगी लेकिन कुछ दिन बाद उस लड़के ने काजल को मारना पीटना और गाली गलौज और बदचलन न होती तो अपने पति और तीन बच्चों को छोड़कर मेरे पास आती कहकर उसको भगा दिया…
अब काजल पता नहीं कैसे पागलों वाली बातें करती है दर दर की ठोकरें खा रही है और सच में पागल हो गई है और लोगों से खाने की भीख मांगती है…!
नोट—-
(पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं)
दोस्तों ये सच्ची घटना दुनिया के सामने इसलिए ला
रहीं हूं कि फिर कभी कोई औरत ऐसा न करें और किसी की जिंदगी बर्बाद न हो और बच्चे बिना मां के न हों इसलिए आप सभी से हमारी गुजारिश है कि इस
Harish Yadav
Indra pratap
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मेरे एक मित्र हैं, पहले केवल परिचित थे.. धीरे-धीरे मित्रता हुई.. अब उन्हें मित्र इसलिए भी कह पाती हूँ
क्यों कि हज़ारों असहमतियों के बाद भी उन्होंने मेरे साथ बने रहना चुना है.. मैं तो खैर पहले भी ऐसी ही थी.. सहमत होने पर साथ देती हूँ, असहमत होती हूँ
तो कह देती हूँ.. मुझमें उनकी असहमतियों को सुनने का धैर्य भी है.. अपने मित्रों को किसी स्केल पर नहीं नापती.. पर कभी यह उम्मीद नहीं करती कि वे भी मेरे जैसे ही हो जाएं.. सबकी अपनी पर्सनैलिटी और निजी चयन हैं.. शायद इसलिए हमारे बीच चीज़ें लंबे समय तक बनी भी रहती हैं..
डेढ़ वर्ष पहले की बात है, मेरा स्थानांतरण जिस स्कूल में हुए वहाँ स्टाफ बड़ा था.. शुरुआत में मुझे एडजस्ट होने में कुछेक महीने लगे.. स्कूल के बिल्कुल सड़क के किनारे होने के कारण यहाँ की धूल-धक्कड़ से मैं परेशान रह रही थी.. मुझे लगातार फ्लू की शिकायत रहने लगी.. कई बार दिक्कत ज्यादा बढ़ जाने पर मुझे दो-चार दिन की छुट्टियाँ भी करनी पड़ती.. मैं जब छुट्टी से वापस आई तो मेरे इन मित्र ने मुझे कहा “क्या बात है? क्यों नहीं आ रहे थे, मरने वाले थे क्या?” अब यह एक बीमारी से उठ कर आए व्यक्ति के लिए तो प्लेज़ेन्ट बात नहीं ही थी.. खैर उस दिन मैंने हँसी में बात टाल दी.. पर जब भी मैं छुट्टी लेती, तो अगले दिन मुझे उनकी इसी खराब बात को झेलना पड़ता.. सब लोगों के साथ उनका यही सो कॉल्ड मज़ाक चलता..
मैं मौका ढूँढती कि क्या कहकर उन्हें रियलाइज़ कराऊँ कि ऐसी बात कहने से किसी को चोट पहुँचती होगी.. चूँकि हम ये नहीं जानते कि कौन सा व्यक्ति मानसिक या शारिरीक तौर पर किन परिस्थितियों का सामना कर रहा है, ऐसा कहना ठीक नहीं लगता..
खैर, कुछ महीनों पहले उन्होंने मुझे बताया कि पहले जब उनका स्कूल दूर हुआ करता तो रास्ते में वे इस स्कूल को देखते हुए खुद से कहते रहते, “काश इस स्कूल में मेरा ट्रांसफर हो जाता..” कहते मैं रोज़ मन ही मन ये खुद से कहता, और एक दिन जब ट्रांसफर के लिए डिपार्टमेंटल साइट खुली तो मैंने यहाँ के लिए अप्लाई कर दिया.. और सचमुच मेरा ट्रांसफर इधर हो गया.. यानी जैसी वाइब्स आप खुद को देते हैं वैसा आपके साथ होता चला जाता है.. उनकी ठीक इस बात पर मैंने उन्हें धर लिया.. मैंने उन्हें कहा कि आपने खुद को सकारात्मक वाइब्स दीं और आपके साथ सकारात्मक चीज घटीं.. फिर दूसरों को खराब बातें बोलकर क्यों नकारात्मकता फैलाते हो? उनको भी अच्छी बातें कह दिया करो.. खास तौर पर तब जब वे कमज़ोर महसूस कर रहे हों..
हम्मम! उन्होंने जवाब दिया.. “अब से मैं ये ध्यान रखूँगा..”
आज हम मित्र इसलिए भी है क्योंकि हममें अपनी खराब बातों को एक दूसरे के कह देने पर त्याग देने की भावना भी है.. 🙂
कभी शिवानी को मैंने कहते सुना था “जैसा अन्न वैसा मन..” सात्विक खाना मतलब उबला हुआ खाना नहीं है, सात्विक खाने का अर्थ है सही वाइब्रेशन के साथ खाना..
जैसे अच्छी वाइब्रेशन से खाया गया अनहेल्दी खाना भी कभी-कभी शरीर को उतना नुकसान नहीं पहुँचाता और विश्व की सबसे न्यूट्रिशियस डायट को भी नकारात्मक वाइब्स के साथ खाया जाए तो वह शरीर को कोई फायदा नहीं करती वैसे ही मुँह से निकले हर शब्द को भी यही संस्कार संचालित करे तो बेहतर..इस तरह अच्छे मन, अच्छे intent के साथ कही गई हर बात सात्विक बात है 🙂