साहित्य

“एक कामवाली और लगवा लीजिए…

Madhu Singh
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सुरभि कितनी बार बोला है तुम्हें अगर तुम्हारे पास वक्त नहीं है तो तुम नौकरी छोड़ दो। कम से कम मेरे खाने के लिए कामवाली ही रख लो, मानव की पत्नी (नेहा) को मैं कुछ कह नहीं सकता पर हर रोज एक जैसी सब्जी खाकर मैं उब गया हूं। तुम जानती हो मैं बाहर का खाना नहीं खा सकता वरना मुझे पैसों की कोई कमी नहीं है।” विजय झल्लाते हुए अपनी पत्नी सुरभि से कहता है। सुरभि बोली “थक तो मैं भी गई हूं पर क्या बोलूं..! जबकि राशन, सब्जी सबके लिए पैसे मैं मम्मी जी को हर महीने देती हूं फिर भी नेहा इतनी कंजूसी क्यों करती है समझ नहीं आता है। कुछ कहती नहीं हूं वरना लोग कहेंगे जेठानी कमाती है तो देवरानी को दबाती है।” दोनों में बातें चल रही थी तभी विजय का छोटा भाई मानव आया और बोला “भैया चलो खाना लग गया है।

विजय बोला “तुम खाना खा लो मेरा खाने का कोई मूड नहीं है।” सुरभि बोली “देवर जी खाने में कुछ अलग हो तो घर का खाएं वरना एक ही जैसा खाना दिन-रात खाए तो क्या घर और क्या बाहर..!” मानव बोला “क्या बात है आखिर हुआ क्या..!” सुरभि और विजय ने पूरी बात बताई तो मानव ने नेहा को आवाज लगाया। नेहा मुस्कुराती हुई आई और बोली “अरे अभी यहीं बैठ गए बच्चे खाने पर इंतजार कर रहे हैं क्या हुआ..?” मानव बोला “नेहा देखो भैया और भाभी को भी वही शिकायत है जो मुझे है। रोज एक जैसा खाना खाकर ये भी परेशान हो गए हैं, पूरे दिन तो घर में बैठी रहती हो आखिर घर में काम ही कितना होता है।
अरे कम से कम यूट्यूब से ही देखकर कुछ नया बना लो।

नेहा हैरानी से मानव को देखी और बोली “दूसरों से तो नहीं पर आपसे तो इतनी उम्मीद कर सकती हूं कि आप मेरी परेशानी भी समझें..! जहां तक बात खाने की है तो यही सवाल आप अपनी माता जी से क्यों नहीं पूछते हैं, रोज-रोज अगर पुरानी सब्जी आए तो मैं क्या नया बनाऊंगी..?” विजय बोला “देखा सुरभि इसीलिए मैं बोला था तुम एक खाना बनाने वाली रख लो, मुझे घर में लड़ाई झगड़ा नहीं चाहिए।” नेहा बोली “भैया मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं, शिकायत तो अपने पति से है,अगर मैं नौकरी नहीं करती इसका मतलब क्या इस घर में मेरी कोई इज्जत नहीं आखिर मेरा भी स्वाभिमान है..!” सुरभि नेहा को मक्खन लगाते हुए बोली “अरे नहीं नेहा उनके कहने का वो मतलब नहीं है।

नेहा बोली “भाभी आप मुझसे बड़ी है एक बात बताइए आप नौकरी करती हैं तो आपको समय नहीं मिलता ये मैं समझ सकती हूं पर मैं भी घर में बैठी नहीं रहती हूं।” मानव गुस्से में बोला “नेहा तुम कैसी बात कर रही हो..!” नेहा बोली “कहां लिखा है कि घर की छोटी बहू ही सबका सम्मान करें और बदले में उसे तिरस्कार और अपमान मिले, अब बस ये नहीं चलेगा मैं भी अपने स्वाभिमान के लिए आवाज उठा सकती हूं।” इतना कहकर नेहा चली गई। नेहा नाराज होकर रसोई में गई तो उसकी सास कमला जी बोलीं “छोटी बहू बन गया खाना, तो सब आए क्यों नहीं..?” नेहा बोली “हां मम्मी रोज की तरह वही खाना बना है नया कुछ नहीं है।” कमला जी बोलीं “क्या मतलब है तुम्हारा..!

नेहा बोली “मम्मी जी मैंने कई बार आपसे कहा कुछ नया मंगवाया कीजिए, पर आप पैसों को बचाने के चक्कर में नई सब्जी कुछ नहीं मंगवाती और चार बातें मुझे सुनने को मिलती है।” कमला जी बोलीं “बहू हमारे समय में इतनी चीजें मिलती भी नहीं थी जो घर में रहता था उसी से कुछ नया बनाकर थे। तुम मेहनत करना नहीं चाहती और दोष मुझ पर डाल रहे हो..!” तभी सुरभि आई और बोली “नेहा तुम बहुत जल्दी बुरा मान जाती हो। हमारी परेशानी समझो 4 लोगों के बीच में जब हम लंचबॉक्स खोलते हैं तो रोज रोज वही खाना देखकर कैसा लगता होगा।” नेहा बोली “भाभी मैं भी रोज-रोज की शिकायतें सुनकर थक गई हूं। समझती हूं सोमवार से शुक्रवार आप काम पर जाती है, पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी शनिवार रविवार आप रसोई में आकर मेरी मदद की हो।

कमला जी बोलीं “बहु ये क्या कह रही हो..! बड़ी बहू नौकरी करती है 2 दिन ही तो उसे छुट्टी मिलती है फिर रसोई में वो कैसे काम करेगी..?” नेहा बोली “मम्मी जी अगर मैं नौकरी नहीं करती तो क्या मुझे 1 दिन भी आराम नहीं मिलेगा, क्या मुझे 365 दिन काम करना पड़ेगा आखिर मेरा भी कुछ स्वाभिमान है कि नहीं।” सुरभि इतराते हुए बोली अपनी-अपनी किस्मत होती है इतना कहकर वो चली गई। कुछ रोज ऐसे ही चलता रहा फिर एक रोज नेहा मानव से बोली “एक कामवाली और लगवा लीजिए जो कम से कम सब्जी काट दे, डस्टिंग कर दे तो मेरा काम कुछ हल्का हो जाएगा।” मानव बोला झाड़ू पोछा और बर्तन के लिए कामवाली आती तो है और सभी काम कामवाली करेगी तो तुम क्या करोगी..?

नेहा बोली “जिन्हें बना बनाया सब कुछ मिल जाता है उन्हें घर की औरतों की अहमियत नहीं पता चलती, घर में 9 लोग हैं मैं भी थक जाती हूं। मुझे लगता है इन्हीं कारणों से कुछ बहुएं अलग हो जाती हैं फिर दोष उनपर लगता कि उन्होंने आते ही घर का बंटवारा कर दिया। कमला जी मैं नेहा और मानव की बात सुनी तो तुरंत जाकर विजय और सुरभि के कान भरे विजय मानव से बोला “अगर तुम्हारी पत्नी अलग रहना चाहती है तो खुशी से तुम लोग अलग हो सकते हो।” कमला जी तुरंत विजय की तरफ खड़ी हो गईं। मानव नेहा से बोला “ये सब तुम्हारी वजह से हो रहा है तुम्हें लगता है मेरी कमाई से हमारा घर चल जाएगा।” नेहा बोली “मैंने घर को बांटने की बात ही नहीं की मैं तो बस काम को बांटने की बाद कर रही थी..!” सुरभि बोली “नेहा घुमा फिरा कर बातें मत किया करो, तुम्हारे मन में ये बातें कई दिनों से चल रही थी अच्छा हुआ अब सामने आ गई।

मानव बहुत नाराज हुआ कमला जी नेहा पर तंज कसते हुए बोलीं “मानव सबकी पत्नी एक जैसी नहीं हो सकती और तुम चिंता क्यों करते हो कौन सा घर का बटवारा हो रहा है बस रसोई अलग होगी।” सुरभि बोली “हां रोज-रोज की परेशानी से अच्छा है पैसे खर्च करके सब काम हो जाते हैं।” इतना कहकर सब अपने अपने कमरे में चले गए। नेहा मानव से बोली “आप मुझ पर नाराज हो रहे हैं पर कभी भी मेरी तकलीफ आप नहीं देखते आखिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा? देवरानी हो तो क्या मेरा स्वाभिमान नहीं..!” सुबह से शाम तक मैं लगी रहती हूं उनके बच्चों और अपने बच्चों में कभी फर्क नहीं किया फिर भी चार बातें मुझे ही सुनने को क्यों मिलती है!” मानव बोला “नेहा मैं समझता हूं पर मेरी इतनी कमाई नहीं कि मैं पूरे घर को चला सकूं अब ये सब कैसे होगा..!” नेहा बोली “सब हो जाएगा और देखिएगा कुछ ही दिनों में रसोई भी एक हो जाएगी।”

इतना कहकर वह चली गई। एक हफ्ते में रसोई अलग हो गई नेहा किफायत से अपनी रसोई चलाती थी। कुछ-कुछ बात घर के बगल में बगीचा था उसमें वो पालक, धनिया और मेथी कुछ न कुछ लगाती थी तो ताजी सब्जी भी मिल जाती थी। खाली वक्त में वो पापड़ बनाती और दुकान वाले को दे देती थी तो उसकी कमाई भी होने लगी। सुरभि ने घर के काम और खाना बनाने के लिए कामवाली रखी वो तेल मसाले में जला भुना खाना बनाकर चली जाती थी। बच्चे खाने से इनकार करते और नेहा के पास चले जाते, नेहा ने बड़े प्यार से खाना खिलाती थी। एक रोज विजय दफ्तर से लौटा और सुरभि पर चिल्लाया “एक दिन भी ढंग का खाना नहीं दे पाती हो इस तरह तो मैं बीमार हो जाऊंगा। इस महीने कितना खर्चा हो चुका है तुमने जोड़ा है, इससे अच्छा तो हम एक साथ रहते थे कम से कम ढंग का खाना तो मिलता था। सही कहती थी नेहा उसकी कोई गलती नहीं थी, अब तुम लोग सहयोग नहीं करते थे तो वो अकेली क्या करती।”

एक रोज कमला जी सुरभि से बोलीं “बहू 2 दिन छुट्टी मिलती है कम से कम 2 दिन तो खुद खाना बनाओ।” सुरभि बोली “मम्मी जी आप भी तो खाली बैठी रहती है क्यों नहीं खाना बना लेती है। आपके पैसे बचाने के कारण ये सब हुआ, बेकार में उससे रिश्ते खराब की ना इधर के रहे ना उधर के..।” सुरभि के बच्चे नेहा के घर से आए और बोले “मम्मी आज आंटी ने बहुत अच्छा पालक पराठा बनाया आप खाती तो उंगलियां चाटती रह जाती।” सुरभि के मुंह में पानी आ गया। अगले दिन वो विजय से बोली “गलती हमारी है हमने नेहा की मदद नहीं की और आज हमें इतनी दिक्कत हो रही है। इतना कुछ करने के बाद भी दिक्कत तो वही की वही रह गई और परिवार भी बिखर गया, मैं बड़ी हुई तो क्या हुआ आखिर वो मेरी देवरानी है उसे भी उतना ही सम्मान का अधिकार है मैं उससे माफी मांग लूंगी।” कमला जी आई और बोलीं “बड़ी बहू ये क्या कह रही हो तुम क्यों माफी मांगोगी..!” विजय बोला “मां आप तो रहने ही दीजिए ..!

रिश्तो को संभालने की जगह आपने चीजों को और खराब कर दिया ” सुरभि नेहा के पास जाकर माफी मांगी नेहा उसे रोकते हुए बोली “जेठानी जी सम्मान के बदले अगर सम्मान मिले तो किसी भी परिवार में नोकझोंक ना हो, मन से मैं आप लोगों से कभी नहीं अलग हुई थी।” इतना कहकर नेहा सुरभि के गले लग गई। विजय ने बोला “नेहा हम सब तुम्हारे दोषी है हमें माफ कर दो।” मानव अपने कान पकड़कर मुस्कुराते हुए बोला “मैंने तुम्हारी परेशानी नहीं समझी थी तो मैं भी तुम्हारा दोषी हूं।” कमला जी बोलीं “बहु अब क्या मुझे भी माफी मांगनी होगी..?” नेहा मुस्कुरा कर बोली “नहीं नहीं मम्मी जी बस थोड़े से बचत के लिए किसी का स्वाद मत बिगाइएगा।” नेहा के इतना कहते ही सब हंस पड़े और सब फिर से एक हो गए। दोस्तों अगर हम परिवार में एक दूसरे की भावनाओं को समझें और उन्हें एक जैसा सम्मान दें तो कभी कोई परिवार बिखरता नहीं है। जेठानी हो या देवरानी हर किसी को सम्मान के बदले सम्मान ही चाहिए, स्वाभिमान पर ठेस लगे तो कब तक कोई चुप रहेगा