साहित्य

” एक कप चाय”…*थोड़ा मैं बदलता हूं और थोड़ा तुम बदलो*

Laxmi Kumawat
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* थोड़ा मैं बदलता हूं और थोड़ा तुम बदलो *
” एक कप चाय”
जैसे ही यह शब्द कानों में गूंजे, वैसे ही गुंजन का रसोई में खड़े-खड़े ही पारा चढ़ गया।
‘हे भगवान कितनी चाय पीता है यह शख्स। किस्मत फूटी होगी उस लड़की की, जो इससे शादी करेगी। बेचारी की पूरी जिंदगी चाय बना बना कर पिलाते हुए ही बीत जाएगी’
गुंजन धीरे से बड़बड़ाई। पास ही खड़ी राम्या ने उसे चुप रहने का इशारा किया, तो उसने चाय बनाने के लिए चाय का पतीला गैस पर रख दिया। चाय बनाई और कप में निकाल कर उसे बाहर संचित को दे आई।
संचित गुंजन की बड़ी बहन राम्या का देवर था। राम्या की शादी को अभी चार महीने ही हुए थे और राम्या का कोई भाई नहीं था, जो उसे लिवाने ससुराल जाए। इस कारण से संचित राम्या को छोड़ने आ गया। कल शाम को ही संचित अपनी भाभी को उसके मायके छोड़ने आया था। आज सुबह का ही उसका टिकट था, पर संचित को राम्या और उसके माता-पिता ने जबरदस्ती दो दिन के लिए रोक लिया ये कहकर कि हम भी तो तुम्हें हमारे शहर की रौनक दिखाएं।
संचित वैसे भी अपने भैया और पापा के साथ व्यापार संभालता था। भैया से पूछा तो उन्होने भी कह दिया कि मैं सब संभाल लूंगा, वो लोग इतना कह रहे हैं तो तुम रुक जाओ। इसलिए संचित वहीं रुक गया।
संचित को चाय पीने का बहुत शौक था। और अपनी चार महीने की शादी में राम्या को यह बात अच्छे से पता चल चुकी थी। इसलिए उसने अपनी छोटी बहन गुंजन से भी कह दिया कि संचित जब भी चाय के लिए कहे तो उसे आधा कप चाय बना कर दे देना।
संचित सुबह से तीन कप चाय तो पी चुका था। सुबह की दो चाय तो पापा मम्मी के साथ ही हो चुकी थी (गुंजन और राम्या तो चाय पीते नहीं थे ) जबकि एक चाय पड़ोस के सुधाकर अंकल आए तो उनके साथ। और अब फिर एक कप चाय का आर्डर मिल गया।
सुबह से गुंजन ही चाय बना रही थी। और उसकी आदत थी कि चाय बनाने के बाद वो चाय के बर्तन को धो दिया करती थी। लेकिन आज सुबह से कई बार तो चाय बना चुकी थी और कई बार यह बेचारा पतीला धूल चुका था, इसलिए वो चिढ़कर बैठी हुई थी।
थोड़ी देर बाद नाश्ते से फ्री होकर गुंजन फटाफट बर्तन धोने लगी क्योंकि पापा ने कहा था कि बाहर घूमने जाना है। लेकिन तभी बाहर से पापा की आवाज आई,
” अरे गुंजन, जरा एक कप चाय तो बना लाना “
सुनते ही गुंजन ने जो बर्तन हाथ में था जोर से सिंक में पटका, जिसकी आवाज बाहर तक सुनाई दी।
“क्या हुआ गुंजन?” मम्मी ने आवाज लगाई।
” कुछ नहीं मम्मी, बर्तन हाथ से छूट गया”
रसोई में काम करती हुई राम्या ने कहा और गुंजन के पास आकर धीरे से बोली,
” क्या हरकत कर रही है तू? क्यों एक चाय के पीछे मेरी और मेरे मायके की इमेज की ऐसी की तैसी करवाना चाहती है?”
” हे भगवान दीदी, तुम्हारा ये देवर तो हद है। अब तो हमारे चाय के कप भी कहने लग गए हैं कितनी बार मुंह लगाएगा ये हमें। जितना खुद तेरा देवर अपनी जिंदगी में नहीं नहाया होगा ना, उतनी बार तो मेरे पतीले और कप ने नहा लिया आज। बेचारे अब तो वो भी हाथ जोड़कर कहने लग गए कि बहन और कितना नहलाओगी हमें”
गुंजन की बातें सुनकर राम्या की हंसी छूट गई पर फिर चुप करते हुए चुपचाप उसने चाय चढ़ा दी। थोड़ी देर बाद सब लोग तैयार होकर बाहर घूमने निकल गए। पूरे दिन भर सब ने एंजॉय किया और रात को बाहर ही डिनर कर सब लोग घर आए। घर में घुसे ही थे कि इतने में संचित ने राम्या से कहा,
“भाभी एक कप चाय हो जाए”
जिसे सुनते ही राम्या ने पलट कर गुंजन की तरफ देखा, जो उस समय गुस्से में राम्या को ही देख रही थी। इतने में मम्मी ने गुंजन से कहा,
“गुंजन खड़ी क्या है, फटाफट चाय बना ले बेटा”
” ठीक है मम्मी”
कहकर गुस्से में ही गुंजन रसोई में गई। पीछे पीछे राम्या भी रसोई में आ गई।
” क्या हुआ गुंजन?” राम्या ने उसे छेड़ते हुए कहा
” जी चाहता है तुम्हारे देवर को इसी चाय में डूबा डूबा कर मार दूँ”
” हाँ तो मार दे, वो तो मरने को तैयार है तेरे हाथों”
” क्या मतलब??” गुंजन ने हैरानी से पूछा।
” अरे जब से मेरी सगाई हुई थी, तब से वो तुझे पसंद करते है और तुझसे शादी करना चाहते हैं। इसीलिए तो इनके भैया ने खुद काम का बहाना बनाकर इन्हें यहां भेजा है, ताकि तू भी इन्हें समझ ले। तेरे जीजा जी ने साफ कहा है कि अगर तुझे यह रिश्ता मंजूर है तो ही बात आगे बढ़ेगी”
” दीदी, इससे शादी? और सब तो ठीक है लेकिन??”
“लेकिन??? लेकिन क्या? “
” हे भगवान! कितनी चाय पीता है ये इंसान? मैं तो चाय बनाते बनाते और बर्तन धोते धोते पागल हो जाऊंगी। मेरी तो पूरी जिंदगी रसोई में ही कट जाएगी”
” कुछ मैं चाय पीना कम कर दूंगा और कुछ तुम चाय पीना शुरू कर देना। थोड़ा मैं बदलूंगा, थोड़ा तुम बदल जाना। कभी मैं तुम्हें चाय अपने हाथों से बना कर पिलाऊंगा तो कभी तुम मुझे पिला देना। बस यूं ही जिंदगी जी लेंगे हम”
संचित ने रसोई में आते हुए कहा।
सुनकर राम्या की हंसी छूट गई जबकि गुंजन के चेहरे पर शर्म की लालिमा छा गई। पीछे-पीछे मम्मी भी रसोई में आ गई।
” ले , अब तो तेरे लिए चाय बनाना तक सीखने को तैयार हो गया, और क्या चाहिए। अब तो बोल हां है या नहीं”
आखिर गुंजन ने मुस्कुरा कर हां कर दी। कुछ महीनों बाद उन दोनों की शादी कर दी गई। और आज संचित और गुंजन दोनों साथ मिलकर ही चाय पीते हैं।

मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित