साहित्य

उस प्रक्रिया के बारे में ज्ञान, जो जीवात्मा को परमात्मा की ओर बढ़ने में मदद करती है : लक्ष्मी सिन्हा की रचना पढ़िये!


Laxmi Sinha
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वेद का अर्थ है उस प्रक्रिया के बारे में ज्ञान, जो जीवात्मा
को परमात्मा की ओर बढ़ने में मदद करती है,,,,,,,,,,,!
आस्तिक कौन है? प्राचीन समय में एक आस्तिक को ऐसा
व्यक्ति माना जाता था जो जीवात्मा, परमात्मा और देवों
की वास्तविकता को स्वीकार करता था, बौद्ध युग में
आस्तिक शब्द का अर्थ बदल गया, बदले अर्थ के अनुसार
आस्तिक वह माना जाने लगा जो तीनों मैं से किसी एक
की वास्तविकता को स्वीकार करता है, अर्थात जीवात्मा,
परमात्मा या वेद, वेद का अर्थ है वास्तविक ज्ञान वेद किसी
विशेष पुस्तक के लिए नहीं है, वेद का अर्थ है उच्चतम
ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, यही वेद का वास्तविक अर्थ है,
आध्यात्मिक ज्ञान की प्रमुख आवश्यकता है और इस
दृष्टिकोण से हम वेद को इस तरह परिभाषित करते हैं कि
जो जीवात्मा, परमात्मा और वेदों की वास्तविकता को
स्वीकार करता है वह आस्तिक है, यह योग शब्द की सही
व्याख्या है, बौद्ध युग में अर्थ में जो परिवर्तन आया वह
बिल्कुल सहायक नहीं था, जो जीवात्मा को स्वीकार
करता है लेकिन परमात्मा या वेद को नहीं मानता है,
उसके लिए आध्यात्मिक प्रगति कैसे संभव हो सकती है?
आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने के लिए जीवात्मा को
किस दिशा में बढ़ना चाहिए? क्या होगा यदि व्यक्ति
परमात्मा के बारे में नहीं सोचता? इसी तरह, यदि कोई
व्यक्ति परमात्मा को स्वीकार करता है लेकिन जीवात्मा
को नहीं, तो व्यक्ति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा,
और जहां जीव स्वयं नहीं है, वह प्रगति की बात करना
भी अप्रासंगिक होगा, तो योगी को भी जीवात्मा की
वास्तविकता को स्वीकार करना होगा, जीवात्मा व
परमात्मा के बीच संबंध बनाने का वास्तविक कार्य कौन
करेगा?यह अध्यात्मिक ज्ञान की भूमिका है आध्यात्मिक
ज्ञान के बिना कोई व्यक्ति कैसे आगे बढ़ सकता है,
जीवात्मा परमात्मा की और कैसे प्रगति कर सकता है?
तो आस्तिक वह है जो जीवात्मा, परमात्मा और वेद को
स्वीकार करता है, यह वेद का अर्थ है अध्यात्मिक ज्ञान,
यह वेद का अर्थ है उस प्रक्रिया के बारे में ज्ञान, जो
जीवात्मा को परमात्मा की ओर बढ़ने में मदद करती है,
तो एक योगी को आस्तिक होना चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,,!!

#Laxmi_sinha
प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी(बिहार)