साहित्य

उस दिन हद हो गई जब उसने एक मनचले की धुनाई कर दी और…

मीनू का मन विचलित था। कभी अपनी अभावग्रस्त जिंदगी देखती… कभी मैडम का प्रलोभन।
“मीनू, चलो मेरे साथ काम दिलवा दूंगी…ऐश करोगी ऐश। “
गोरी-चिट्ठी मैडम आधुनिक लिबास में लिपस्टिक पोते नजाकत से कार में बैठती, फाटक ड्राइवर खोलता… मैडम का बिंदास अंदाज बेफिक्री… गरीबी से त्रस्त बेजार मीनू को अपनी ओर खींचते।
मीनू के शराबी पिता मां से झगड़कर जो गये सो वापस नहीं आये।… आत्माभिमानी मां घर-घर काम कर मीनू को पढाने लगी… एक दिन उसको किसी गाड़ी ने धक्का मारा… कमर टूट गया… अपाहिज होकर बिस्तर पर रिरियाती रहती।
सयानी होती मीनू पढाई छोड़ मां के जगह काम करने निकली… लेकिन इतना आसान नहीं था… लोगों की गंदी निगाहें… बेमुरव्वत व्यवहार उसे आहत करता।
उस दिन हद हो गई जब उसने एक मनचले की धुनाई कर दी और जोश में मैडम के यहाँ जा पहुंची… अब मैडम के साथ काम करने पर ही शायद उसे इज्जत की रोटी नसीब हो।
” मां ,मैं मैडम के पास जा रही हूं… “
“कौन मैडम.. “चिंतित मां की आवाज़ अनदेखी कर वह चली गई।… उसके पैर ठिठक गये… जब उसने देखा कि मैडम को पुलिस पकड़कर ले जा रही है… उतनी आकर्षक दिखने वाली मैडम का मेकअप विहीन वीभत्स चेहरा देख मीनू कांप उठी।
“नशाखोरी, देहव्यापार का धंधा कराती थी यह… भोली-भाली लाचार बेबस लड़कियों को अपनी चिकनी-चुपडी़ बातों में फंसाकर उनकी जिंदगी बरबाद करती थी। “जितनी मुँह उतनी बातें।
मीनू का सामना एक और विकृत सत्य से हुआ।
मीनू दौड़कर अपने घर मां के पास पहुंच गई। पूरी बात बताई।
“मीनू तुम किसी तरह अपनी पढाई पूरी कर लो… परिश्रम से पेट पालो… लेकिन ऐसे मैडम की बातों में मत आना नहीं तो जूते पडेंगे। “
मीनू की आंखें खुल गई थी।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®
#प्रदत्त मुहावरा -जूते पड़ना