साहित्य

उस गाव में एक फ़क़ीर आया, महामूर्ख ने उस फ़क़ीर के चरण पकड़े और कहा….

Apna mohalla-अपना मोहल्ला
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एक गांव में एक महामूर्ख था। वह बहुत परेशान था, क्योंकि वह कुछ भी कहता लोग हंस देते; लोग उसको महामूर्ख मान ही लिये थे। वह कभी ठीक भी बात कहता तो भी लोग हंस देते। वह सिकुड़ा सिकुड़ा जीता था, बोलता तक नहीं था। न बोले तो लोग हंसते थे, बोले तो लोग हंसते थे। कुछ करे तो लोग हंसते थे, न करे तो लोग हंसते थे।

उस गाव में एक फकीर आया। उस महामूर्ख ने रात उस फकीर के चरण पकड़े और कहा कि मुझे कुछ आशीर्वाद दो, मेरी जिंदगी क्या ऐसे ही बीत जायेगी सिकुड़े सिकुड़े? क्या मैं महामूर्ख की तरह ही मरूंगा, कोई उपाय नहीं है कि थोड़ी बुद्धि मुझमें आ जाये?
उस फकीर ने कहा उपाय है, यह ले सूत्र, तू निंदा शुरू कर दे।
उसने कहा : निंदा से क्या होगा? फकीर ने कहा. सात दिन तू कर और फिर मेरे पास आना।


उस महामूर्ख ने पूछा. करना क्या है निंदा में? उस फकीर ने कहा. कोई कुछ भी कहे, तू नकारात्मक वक्तव्य देना। जैसे कोई कहे कि देखो, कितना सुंदर सूरज निकल रहा है! तू कहना इसमें क्या सुंदर है? सिद्ध करो, सुंदर कहां है, क्या सुंदर है? रोज निकलता है, अरबों खरबों सालों से निकल रहा है। आग का गोला है, सुंदर क्या है? कोई कहे कि देखो, जीसस के वचन कितने प्यारे हैं! तू तत्क्षण टूट पड़ना कि क्या है इसमें प्यारा, कौन सी बात खूबी की है, कौन सी बात नयी है? सदा से तो यही कहा गया है, सब पिटा पिटाया है, सब बासा है, सब उधार है।
तू नकार ही करना। कोई सुंदर स्त्री को देखकर कहे कितनी सुंदर स्त्री है! तू कहना इसमें है क्या? जरा नाक लंबी हो गयी तो हो क्या गया, कि रंग जरा सफेद हुआ तो हो क्या गया? सफेद तो कोढ़ी भी होते हैं। सुंदर कहां है, सिद्ध करो। तू हर एक से प्रमाण मांगना और खयाल रखना यह कि हमेशा नकार में रहना; उनको विधेय में डाल देना, तू नकार में रहना।
सात दिन बाद आ जाना।
सात दिन बाद तो जब आया महामूर्ख तो अकेला नहीं आया, उसके कई शिष्य हो गये थे। वह आगे—आगे आ रहा था। फूल मालाएं उसके गले में डली थीं। बैड बाजे बज रहे थे। उसने फकीर से कहा कि तरकीब काम कर गयी! गांव में एकदम सन्नाटा खिंच गया है, जहां निकल जाता हूं लोग सिर नीचा कर लेते हैं। लोगों में खबर पहुंच गयी है कि मैं महामेधावी हूं। मेरे सामने कोई जीत नहीं सकता। अब आगे क्या करना है?
उसने कहा : अब आगे तो कुछ करना ही मत, बस तू इसी पर रुके रहना। अगर तेरे को मेधा बचानी है, कभी विधेय में मत पड़ना। ईश्वर की कोई कहे तो तत्क्षण, तत्क्षण नास्तिकता प्रकट करना। जो भी कहा जाये, तू हमेशा नकारात्मक वक्तव्य देना, तुझे कोई न हरा सकेगा; क्योंकि नकारात्मक वक्तव्य को असिद्ध करना बहुत कठिन है। विधायक वक्तव्य को सिद्ध करना बहुत कठिन है।
ईश्वर को स्वीकार करने के लिए बड़ी बुद्धिमत्ता चाहिए, बड़ी सूक्ष्म संवेदना चाहिए। हृदय का अत्यंत जागरूक रूप चाहिए। चैतन्य की निखरी हुई दशा चाहिए। भीतर थोड़ी रोशनी चाहिए। लेकिन ईश्वर को इंकार करने के लिए कुछ भी नहीं चाहिए। कोई अनिवार्यता नहीं है ईश्वर को इंकार करने के लिए। इसलिए लोग दुनिया में निंदा करते हैं।