दुनिया

ईरान ने इस्राईल की हेकड़ी निकाल दी, 331 ड्रोन और मिसाईलों से दहल गया ज़ायोनी साम्राज्य : अकेले नवाटिम एयर बेस में 44 इसराइली सैन्य अधिकारी मारे गए : रिपोर्ट

Ali Sohrab
@007AliSohrab
ईरान के इसराइल पर हमले के बाद प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया है कि अकेले नवाटिम एयर बेस में कम से कम 44 इसराइली सैन्य अधिकारी मारे गए हैं…

इसराइल अपने हमले में अस्पतालों, स्कूलों, इबादतगाहों, शरणार्थी शिविर आदि को निशाना बनाता है ताकि अधिक से अधिक महिलाओं, बच्चों सहित अधिक से अधिक गैर-यहूदियों की हत्या किया जा सके…

वहीं हम देख रहे हैं कि ईरान अपने हमले में इसराइली सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहा ताकि लड़ाई जिससे है वो हताहत हो ना कि आम नागरिक विशेषकर महिलाएं व और बच्चे…

यह अंतर “कुफ्फार” के युद्ध के सिद्धांत और इस्लामी युद्ध के सिद्धांत के बीच के अंतर को दर्शा रहा है।
#IranAttack

S p r i n t e r F a c t o r y
@Sprinterfactory

Taliban spokesman: We pray for Iran’s victory over Israel

ईरान के जटिल आपरेशन के मुक़ाबले में इस्राईल का डिफेंस सिस्टम ध्वस्त

एयर डिफेंस सिस्टम पर बेतहाशा पैसा लगाने के बावजूद इस्राईल का यह सिस्टम ईरान के मिसाइल व ड्रोन हमलों के सामने फेल हो गया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल आईआरजीसी ने शनिवर की रात मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन में विभिन्न ठिकानों को लक्ष्य बनाया।

यह कार्यवाही, दमिश्क़ में ईरानी काउन्सलेट पर इस्राईल के हमले के जवाव में अंजाम दी गई। इस्राईल के हमले में ईरान के वरिष्ठ कमांडर जनरल मुहम्मद रज़ा ज़ाहेदी और उनके 6 सहयोगी शहीद हो गए थे।

ताज़ा कार्यवाही में पहले चरण में बहुत बड़ी संख्या में क्रूज़ मिसाइल और ड्रोन से क़ाबिज़ इस्राईल को लक्ष्य बनाया गया। दूसरे चरण में ईरान निर्मित लंबी मारक क्षमता वाले बैलिस्टिक मिसाइलों को लक्ष्यों को भेदने के लिए फायर किया गया।

इस कार्यवाही के बाद जो तस्वीरें आ रही हैं वे ईरान के मिसाइलों और ड्रोन के मुक़ाबले में इस्राईल के एयर डिफेंस सिस्टम की विफलता को दर्शा रही हैं। ईरान के बैलिस्टिक मिसाइलों का लगातार अपने लक्ष्यों को भेदने और नक़ब में ज़ायोनियों की हवाई छावनी के ध्वस्त होने की तस्वीरें साफ बताती हैं कि ईरान के हमले के मुक़ाबले में इस्राईल का एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह फेल हो गया।

स्रोतः तस्नीम न्यूज़

CNN says this is the largest drone attack in the world!

ISRAEL VS IRAN

 

Total Population:
Iran 🇮🇷: 87.6M
Israel 🇮🇱: 9.04M

Available Manpower:
Iran 🇮🇷: 49.05M
Israel 🇮🇱: 3.80M

Fit-for-Service:
Iran 🇮🇷: 41.17M
Israel 🇮🇱: 3.16M

Military Personnel:

Active Personnel:
Iran 🇮🇷: 610K
Israel 🇮🇱: 170K

Reserve Personnel:
Iran 🇮🇷: 350K
Israel 🇮🇱: 465K

Paramilitary Forces:
Iran 🇮🇷: 220K
Israel 🇮🇱: 35K

Financials:

Defense Budget:
Iran 🇮🇷: $9.95B
Israel 🇮🇱: $24.4B

External Debt:
Iran 🇮🇷: $8B
Israel 🇮🇱: $135B

Foreign Reserve:
Iran 🇮🇷: $127.15B
Israel 🇮🇱: $212.93B

Airpower:

Total Aircraft:
Iran 🇮🇷: 551
Israel 🇮🇱: 612

Fighter Aircraft:
Iran 🇮🇷: 186
Israel 🇮🇱: 241

Attack Helicopter
Iran🇮🇷: 13
Israel 🇮🇱: 48

Land Power:

Tank Strength:
Iran 🇮🇷: 1,996
Israel 🇮🇱: 1,370

Armored Vehicles:
Iran 🇮🇷: 65,765
Israel 🇮🇱: 43,407

Self-Propelled Artillery:
Iran 🇮🇷: 580
Israel 🇮🇱: 650

Naval Power:

Fleet Strength:
Iran 🇮🇷: 101
Israel 🇮🇱: 67

Submarines:
Iran 🇮🇷: 19
Israel 🇮🇱: 5

Logistics:

Airports:
Iran 🇮🇷: 319
Israel 🇮🇱: 42

Merchant Marine:
Iran 🇮🇷: 942
Israel 🇮🇱: 45

Natural Resources:

Oil Production:
Iran 🇮🇷: 3.45M bbl
Israel 🇮🇱: 0 bbl

Source:
@stats_feed

BREAKING

❗Iran 🇮🇷 just failed the iron dome of Israel when it attacked on Israel hours ago.
❗after Iran Yemen 🇾🇪 launched their drones on Israel too and
❗Lebanon 🇱🇧 just attacked on northern Israel
❗Israel finally succeeded in starting world War III

BREAKING: BIDEN TELLS ISRAEL TO NOT RESPOND TO IRAN

Israel Media:

“The conversation between Biden and Netanyahu has ended.

The President of the United States asked the Prime Minister of the Zionist regime to refrain from responding to Iran’s retaliatory attack.”

ईरान और इजराइल के बीच चल रहीं जंग को लेकर कुवैत और कतर ने अमेरिका की मदद करने से किया इंकार, बोले- ईरान पर हमला करने के लिए हम अमेरिका को अपने सैन्य अड्डों का इस्तेमाल नहीं करने देंगे.

Hena bushra 📿❤ 2
@HenaBushra
अब तक जो दुनिया में शेर होने का दावा कर रहा था, #ईरान ने आज रात से उसकी हेकड़ी निकाल दी
#अमेरिका भी साथ में हमला करने का हिम्मत नहीं जुटा पा रहा
ईरान ने अमेरिका को भी चेतावनी दी है और बाकी सभी देशों को भी की कोई इस जंग के बीच में ना आए ,ईरान ने वह कर दिया है जो आज पूरे दुनिया में किसी के पास हिम्मत नहीं

ईरान इज न्यू #सुपर_पावर

फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शरणार्थी शिविर पर 2002 के इस्राईल के अपराधों की समीक्षा

सन 2002 में जेनीन शर्णार्थी शिविर पर इस्राईल की हिंसक कार्यवाही की समीक्षा

पार्सटुडे- मार्च सन 2002 के अंत में अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व बदनाम और घृणित प्रधानमंत्री एरियल शेरून के आदेश पर ज़ायोनी सेना ने फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर हमला कर दिया। सन 1967 से लेकर उस समय तक, ज़ायोनियों की यह सबसे बड़ी सैन्य कार्यवाही थी। यह हमला रामल्ला, तूलकर्म, क़िलक़ीलिए, नाबलुस, बैते लहम और जेनीन पर किया गया।

इस हमले का मुख्य लक्ष्य, जार्डन नदी के पश्चिमी तट के अधिक जनसंख्या वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर ज़ायोनियों द्वारा नियंत्रण करना था। 3 से लेकर 7 अप्रैल 2002 तक ज़ायोनी सेना ने एरियल शेरून के आदेश पर फ़िलिस्तीनियों के जेनीन नामक शर्णार्थी शिविर पर यह हमला किया था।/यह हमला टैंकों, बख़्तरबंद गाड़ियों, युद्धक हैलिकाप्टरों, एफ-16 युद्धक विमानों, दो पैदल बटालियनों, कमांडोज़ और कई बुल्ड़ोज़रों तथा बहुत से बख़्तरबंद बुल्डोज़रों से किया गया था। ज़ायोनियों की ओर से पूरी तैयारी के साथ किये गए इस हमले में 52 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए। ज़ायोनियों के इस हमले में उसके 23 सैनिक भी मारे गए। संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के अनुसार जेनीन शरणार्थी शिविर में शहीद होने वाले 52 फ़िलिस्तीनी शहीदों में 22 आम नागरिक थे।

इस जनसंहार के बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट बताती है कि ज़ायोनियों के इस हमले के समय वे फ़िलिस्तीन, पत्रकार और विदेशी लोग जो इस शिविर से बाहर थे उन्होंने फ़िलिस्तीनियों के शर्णार्थी शिविर पर मिसाइलों, हैलिकाप्टरों और युद्धक विमानों को हमला करते हुए देखा था। इस हमले के बारे में सैन्य विशेषज्ञों और संचार माध्यमों का मानना है कि कार्यवाही के दौरान बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी मारे गए। 4 अप्रैल से 14 अप्रैल तक फ़िलिस्तीनी शिविर और वहां के अस्पताल के इर्दगिर्द का घेराव इसीलिए किया गया था ताकि बाहर की दुनिया को यह पता ही न चलने पाए कि फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शरणार्थी शिविर में इस दौरान क्या हुआ?

ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि वहां पर फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार के अतिरिक्त उनको मानवीय ढाल के रूप में प्रयोग करने, दर्दनाम यातनाएं देने, गिरफ्तार किये गए फ़िलिस्तीनियों के साथ दुर्वयव्हार करने, उनको खाने-पीने से रोकने, उनतक दवाएं ले जाने में बाधाएं डालने और इस शिविर की भूलभूत सुविधाओं को नष्ट करने जैसे अमानवीय काम भी किये गए।

प्रोफेसर जेनीफर लोवेंशटाइन को, जो स्वतंत्र पत्रकारिता भी करती हैं, 2002 के वसंत के मौसम में फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शर्णार्थी शिविर में भेजा गया था। वहां के बारे में अपनी रिपोर्ट में वे लिखती हैं कि आरंभ में तो मुझको यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या मैं सही जगह पर पहुंची हूं? मेरी आंखों के सामने एक खण्डहर था। मुझको याद है कि मैंने एक बूढ़े व्यक्ति से पूछा था कि क्या यहां पर कोई शिविर है? उसने एक बार मुझको बहुत ही ग़ौर से देखा और फिर उसी खण्डहर की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह है। उसको देखकर मेरी समझ में आया कि इस शिविर पर कितना भयावह हमला किया गया होगा। मुझको तो उस खण्डहर में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ टीले से दिखाई दे रहे थे। वहां की ज़मीन कीचड़ वाली थी। वहां पर मौजूद लोग उस खण्डहर से अपना सामान निकाल रहे थे। कुछ लोग कीचड़ में रास्ता बना रहे थे ताकि मारे गए लोगों को निकाला जा सके या घायलों तक सहायता पहुंचाई जा सके।

वहां पर लाशों की बू फैली हुई थी। वहां के लोग इस बदबू के बारे में बातें कर रहे थे। उस समय तक मैंने कभी भी एसा दृश्य नहीं देखा था। मैं लोगों से दूर वहां पर मौजूद अस्पताल में गई। वहां के कर्मचारी, मारे गए लोगों को सफेद कपड़ों में लपेट रहे थे। कफन पहनाकर लाशों को वहीं पर तपते हुए सूरज में रखा जा रहा था। उसी के पीछे कुछ क़ब्रे बनी हुई थीं। उनको देखकर लग रहा भा कि उनको जल्दी में खोदा गया है ताकि लाशों को फौरन की दफ़्न कर दिया जाए और कोई बीमारी न फैलने पाए।

जेनीन शर्णार्थी शिविर में जघन्य अपराध करने वाले यह नहीं चाहते थे कि उन्होंने वहां पर जो अमानवीय कार्यवाही की है उसकी ख़बर दूसरों तक पहुंचे। वे इसके पक्ष में नहीं थे कि कोई उस स्थान की तस्वीर खींचे या फ़िल्म बनाए। स्वाभाविक सी बात है कि आक्रमणकारी इस बात को छिपाने में लगे हुए थे कि इस शिविर की बिजली और पानी की सप्लाई काटी जा चुकी है और वहां पर मेडिकल फैसिलिटी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। इसीलिए उस स्थान पर किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा था। बड़ी मुश्किल से वहां पर कुछ विदेशी पत्रकार पहुंच पाए थे। विडंबना यह है कि ज़ायोनी सैनिकों ने जेनीन शर्णार्थी शिविर पर हमला करके फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार करने के बाद फ़िलिस्तीनियों के बरतनों में पेशाब किया और उनको उसी हालत में छोड़ दिया। जब वे यह काम कर चुके तो यह इस्राईली सैनिक हंसते हुए वहां से चले गए और आगे जाकर आइसक्रीम खाने लगे।

परिवेष्टन का शिकार जेनीन कैंप के लिए बचाव एवं सहायता संगठन सहायता नहीं भेज पा रहे थे। हालांकि वहां पर मौजूद फ़िलिस्तीनियों को इसकी ज़रूरत थी। किसी को फ़िल्म बनाने का अधिकार नहीं था। कोई एसा फोटो नहीं दिखाई दिया जिसमें किसी बच्चे को डर ही वजह से अपनी मां से चिपटा हुए दिखाया गया हो। खेद की बात यह है कि ज़ायोनियों से सहानुभूति जताई जा रही थी। दुखी करने वाले यह दृश्य उस समय सामने आए जब बहुत बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी तेलअवीव और येरूश्लम पहुंचे और उन्होंने घटना को अंजाम देने वालों से हाथ मिलाए और उनसे सहानुभूति प्रकट की।

जेनीन को भुलाया जा चुका है। यह घटना 20 साल पहले की है। उस समय से लेकर अबतक ग़ज़्ज़ा में कई ख़तरनाक कार्यवाहियां की जा चुकी हैं। ऐसे में इस दुखद घटना की याद को बाक़ी रखना बहुत ज़रूरी है। इसकी वजह यह है कि सामान्यतः प्रतिरोध और विशेषकर विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध कड़ा प्रतिरोध ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति से आरंभ होते हैं।

ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति, लोगों को प्रेरित करने में सहायक सिद्ध होती है। अगर अपनी सरकारों की हां-हुज़ूरी के कारण संचारा माध्यम इस काम को अंजाम न दें तो फिर हम इंसानों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उस काम को आगे बढ़ाएं। जेनीन को भुला दिया गया है। जेनीन या इस जैसी अन्य भुलाई जाने वाली घटनाओं को याद दिलाना भी एक प्रकार का प्रतिरोध है। अतीत को याद रखना और वर्तमान को बदलने की हिम्मत, वह चीज़ है जो भविष्य के निर्माण का पहला क़दम है।