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ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने जुमे की नमाज़ के दिन इस्लामी देशों से एकजुट होने की अपील की : रिपोर्ट

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने चार साल में पहली बार जुमे की नमाज़ के दिन दिए अपने संबोधन में इस्लामी देशों से एकजुट होने की अपील की.

उन्होंने ईरान के ‘दुश्मनों’ पर इस्लामी दुनिया में विभाजन के बीज बोने का आरोप लगाते हुए इसकी निंदा की. साथ ही इसराइल पर किए ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल हमलों को भी जायज़ ठहराया.

आयतुल्लाह जिस वक्त ये संबोधन दे रहे थे उस समय मोसल्ला मस्जिद में उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ जुटी हुई थी.

ख़ामेनेई ने अपने संबोधन की शुरुआत इसराइली हवाई हमले में मारे गए हिज़्बुल्लाह के शीर्ष नेता हसन नसरल्लाह को याद करते हुए की.

इससे पहले आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने साल 2020 में तब जुमे की नमाज़ पर संबोधन दिया था जब, अमेरिका ने ईरान रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) के जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या की थी. उससे पहले ख़ामेनेई ने साल 2012 में इस तरह का संबोधन दिया था.

ईरान ने नसरल्लाह की मौत के जवाब में मंगलवार रात इसराइल पर करीब 200 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. इसके बाद से आशंका जताई जा रही है कि इसराइल भी ईरान पर हमला कर सकता है.

अपने संबोधन में ख़ामेनेई ने कहा कि ईरान के दुश्मन वही हैं जो फ़लस्तीनी प्रशासन और लेबनान समेत दूसरे मुस्लिम देशों के भी दुश्मन हैं.

‘ज़रूरत पड़ी तो फिर पहले जैसी कार्रवाई की जाएगी’

ख़ामेनेई ने अपने संबोधन में कहा, ”हमारी सेना का ये शानदार काम पूरी तरह से कानूनी तौर पर वैध और वाजिब है.”

उन्होंने कहा कि हमारे सशस्त्र बलों ने जो किया वो हड़पने की नीति रखने वाले ज़ायनिस्ट शासन के चौंका देने वाले अपराधों के लिए कम से कम सज़ा थी.

उन्होंने कहा, ”इस संबंध में ईरान अपना कर्तव्य पूरी तरह निभाएगा. ये काम वो पूरी ताकत और धैर्य के साथ पूरा करेगा. हम इस काम को पूरा करने में ना तो देरी करेंगे और ना जल्दबाज़ी.”

ख़ामेनेई ने कहा, ”अगर जरूरत पड़ी तो राजनीतिक और सैन्य मामलों पर फैसला लेने वालों की नज़र में वैसा ही वाजिब फैसला किया जाएगा जैसा पहले किया गया था.”

ख़ामेनेई के संबोधन से पहले नसरल्लाह के लिए दुआ की गई.

ख़ामेनेई ने नसरल्लाह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ”नसरल्लाह मेरे भाई थे. वो मेरे प्रिय थे और मेरा गर्व भी. वो इस्लामी दुनिया के पसंदीदा शख्स थे. वो लेबनान के चमकते हीरे थे.”

इसराइली हमले में नसरल्लाह की इसराइली हमले में मौत के बाद कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि ख़ामेनेई को ईरान में किसी सुरक्षित ठिकाने पर ले जाया गया है और उनकी सुरक्षा और अधिक कड़ी कर दी गई है.

नसरल्लाह के मारे जाने के बाद हिज़्बुल्लाह-हमास ने खाई कसम

पिछले शुक्रवार को लेबनान के सबसे ताक़तवर सशस्त्र ग्रुप हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की इसराइली हमले में मौत हो गई थी.

इसराइल ने शनिवार को दावा किया था कि शुक्रवार की रात को हुए हमले में नसरल्लाह समेत हिज़्बुल्लाह के कई कमांडरों की मौत हुई है.

इसके काफ़ी देर बाद हिज़्बुल्लाह की ओर से इस ख़बर की पुष्टि करता एक बयान आया कि नसरल्लाह की मौत “दक्षिणी हिस्से में विश्वासघाती ज़ायनिस्ट हमले के बाद” हुई.

जबकि हिज़्बुल्लाह ने इसराइल के खिलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कही. हिज़्बुल्लाह ने “प्रतिज्ञा” भी ली कि “गज़ा, फ़लस्तीन, और लेबनान और उसके दृढ़ और सम्मानीय लोगों की रक्षा” के लिए वो लगातार समर्थन करता रहेगा.

हिज़्बुल्लाह की ओर से पुष्टि किए जाने के बाद इसराइली डिफ़ेंस फ़ोर्सेस (आईडीएफ़) के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने टेलीविज़न पर एक संदेश जारी कर कहा था,” हमारी जंग लेबनान के लोगों से नहीं बल्कि हिज़्बुल्लाह से है.”

उन्होंने नसरल्लाह को इसराइल के ‘सबसे बड़े दुश्मनों में से एक’ बताया था.

उन्होंने कहा था, “शुक्रवार को बेरुत पर इसराइली वायु सेना की ओर से किए गए सटीक हमले में नसरल्लाह मारे गए.”

दूसरी ओर हमास ने शोक व्यक्त करते हुए कहा था, ” हम हिज़्बुल्लाह के भाइयों और लेबनान में इस्लामिक रेसिस्टेंस के साथ खड़े हैं.”

ख़ामेनेई ने क्या संदेश देने की कोशिश की?

शायेन सरदारीज़देह और गुनशेह हबीबियाज़ाद का विश्लेषण

आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के संबोधन को चार साल पहले जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद दी गई स्पीच जैसा ही माना जा रहा है.

जनरल सुलेमानी अमेरिकी हमले में मारे गए थे.

ख़ामेनेई ने तेहरान के मध्य में भारी भीड़ के बीच इस संबोधन से दुनिया के सामने ईरान की ताक़त दिखाने के साथ ही अपने देश की जनता को भी शांत करने का प्रयास किया है.

दरअसल, ख़ामेनेई ने सार्वजनिक मंच पर आकर उन ख़बरों को ख़ारिज करने की कोशिश की है जिनमें ये कहा जा रहा था कि हमास नेता इस्माइल हनिया और फिर हिज़्बुल्लाह के शीर्ष नेता हसन नसरल्लाह के मारे जाने से उन्हें अपनी हत्या का डर सता रहा है.

ये कार्यक्रम एकजुटता दिखाने की भी कोशिश कही जा सकती है. इस दौरान ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान और सरकार के सभी बड़े चेहरे भी वहां मौजूद थे.

पेज़ेश्कियान ने हाल में कहा था कि ईरान और इसराइल को कहीं न कहीं अपनी शत्रुता को ख़त्म करना पड़ेगा. इस बयान की वजह से वह कट्टरपंथियों की आलोचना का शिकार हुए.

ख़ामेनेई ने उन आशंकाओं को भी ख़ारिज किया जिनमें कहा जा रहा था कि इसराइल की हालिया कार्रवाइयों की वजह से क्षेत्र में ईरान का अपने प्रॉक्सीज़ को समर्थन प्रभावित होगा.

साथ ही उन्होंने सात अक्तूबर को किए गए हमास के इसराइल पर हमले को एक बार फिर से सही ठहराया.

उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि हनिया और नसरल्लाह की हत्या के बाद भी ईरान अपनी प्रॉक्सीज़ के ज़रिए इसराइल से लड़ाई जारी रखेगा.

इसराइल और फ़लस्तीन के बीच संघर्ष के दायरे में कैसे आया हिज़्बुल्लाह

पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के इसराइल पर हमले और फिर इसराइल की जवाबी कार्रवाई ने पूरे मध्यपूर्व में तनाव फैला दिया है.

हिज़्बुल्लाह हमास का समर्थन करता है और वो लेबनान से इसराइल पर हमला करता रहा है. इसराइल भी लगातार हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करता रहा है.

लेकिन पिछले सप्ताह हालात तब और पेचीदा हो गए जब इसराइल ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के हवाई ठिकानों पर हमले शुरू किए.

इस बीच, शुक्रवार को इसराइली हमले में हिज़्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत हो गई. इसके बाद ईरान ने इसराइल पर मिसाइलों से हमला किया.

एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि देश के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने व्यक्तिगत रूप से इन हमलों का आदेश दिया था.

ये हमले इन दो शक्तियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे छद्म युद्ध में एक नया मोड़ है

असल में ईरान इसराइल के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करता है. ईरान की सैन्य नीति में इसराइल केंद्र में रहता है.

इसराइल, ईरान को अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा मानता है और वो सालों से उसके ख़िलाफ़ गुप्त अभियान चलाता आया है

ईरान अपने परमाणु और मिसाइल ठिकानों की हिफ़ाज़त के लिए हिज़्बुल्लाह के रॉकेटों और मिसाइलों के जखीरे का इस्तेमाल करता रहा है.

जुलाई में सत्ता में आए ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजे़शकियान ने इसराइल पर ईरान को एक ऐसे जंग के लिए उकसाने के आरोप लगाए हैं जिसमें अमेरिकी भी खिंचा चला आएगा.

पेज़ेशकियान ने क़तर में ईरानी मीडिया को बताया था,” हम भी सुरक्षा और शांति चाहते हैं. याद रखें कि इसराइल ने ही तेहरान में हनिया की हत्या की थी. यूरोप और अमेरिका कह रहे हैं कि अगर हम कोई एक्शन ना लें तो ग़ज़ा में एक हफ़्ते में शांति हो जाएगी. हमने इंतज़ार किया लेकिन हत्याएं और बढ़ती जा रही हैं. ”

कई कट्टर विचार रखने वाले लोग इस बात से असहज थे कि ईरान इसराइल के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.

देश के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई और गार्ड्स कोर के नियंत्रण वाले सरकारी टीवी चैनल पर कई कंमेंटेटर कह रहे थे कि हमास के प्रमुख इस्माइल हनिया की मौत का बदला ना लेकर ईरान ने इसराइल की हिम्मत बढ़ा दी थी.

इसराइल पर मंगलवार के मिसाइल अटैक के बाद ईरानी आर्म्ड फ़ोर्सज़ के चीफ़ मेजर जनरल मोहम्मद बाक़ेरी ने कहा है था कि अब धैर्य और संयम का वक़्त ख़त्म हो गया है.

ईरान इसराइल के ख़िलाफ़ लड़ रही ताकतों का समर्थन करता है. हिज्बुल्लाह को समर्थन देना उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है. यही वजह है कि वो इसराइल से लड़ रहे हमास का भी समर्थन कर रहा है.

बीते क़रीब एक साल से इसराइल हमास के बीच जंग चल रही है. पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के लड़ाकों ने इसराइल पर हमला कर दिया था.

इसके बाद इसराइल ने ग़ज़ा समेत फ़लस्तीन में कई जगहों पर हमले शुरू कर दिए. हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इसराइली हमले में अब तक 40 हजार फ़लस्तीनियों की मौत हो गई. वहीं हमास के 7 अक्टूबर के हमले में 1200 लोग मारे गए थो और 251 लोगों को बंधक बना लिया गया था.