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ईरान के राष्ट्रपति रईसी की चीन यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया का ग़लत प्रोपेगंडा : रिपोर्ट

ईरान और भारत के आपसी संबंध कोई आजके नहीं हैं, बल्कि प्राचीन समय से दोनों देशों के बीच एक मज़बूत रिशता रहा है। दोनों देश सदियों से घनिष्ठ सभ्यतागत संबंध रखते हैं। लेकिन दुनिया की कुछ शक्तियां ऐसी हैं कि जो इन दोनों दोस्त देशों के बीच हमेशा फूट डलवाने की साज़िश रचती रहती हैं। अब इन साज़िशों में भारतीय मीडिया का वह हिस्सा भी शामिल हो गया है कि जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है।

इस समय इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी चीन के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर तीन दिवसीय बीजिंग यात्रा पर हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर 20 साल बाद यह किसी ईरानी राष्ट्रपति की यात्रा है। चीन पहुंचने पर राष्ट्रपति रईसी का चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भव्य स्वागत किया। वहीं ईरानी राष्ट्रपति के चीन के दौरे पर पूरी दुनिया की मीडिया नज़रे जमाए हुए है। ख़ासकर ऐसे समय में कि जब दोनों देशों पर अमेरिका और पश्चिम देश दबाव बनाने के लिए अपने प्रतिबंधों के हथकंड़े का लगातार इस्तेमाल कर हैं। वहीं अब भारत का गोदी मीडिया भी राष्ट्रपति रईसी की चीन यात्रा को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रोपेगंडों का हिस्सा बन गया है। गोदी मीडिया यह दावा कर रहा है कि ईरान के राष्ट्रपति की चीन यात्रा भारत के लिए ख़तरे की घंटी है। मोदी सरकार को चाहिए कि वह इस यात्रा पर पैनी नज़र जमाए रखे।


गोदी मीडिया के अनुसार, क्योंकि चीन की ही तरह ईरान भी अमेरिका को दुश्मन देश है और भारत अमेरिका का दोस्त है, इसलिए ईरान चीन मिलकर भारत के ख़िलाफ़ कोई खिचड़ी पका सकते हैं। यहां ध्यान योग्त बात यह है कि जब स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति से मुलाक़ात करते हैं, या फिर शी जिनपिंग को झूले पर बैठाकर झूला झुलाते हैं तब यह मीडिया भारतीय प्रधानमंत्री के इस कार्य को सूझबूझ भरी अच्छी राजनीति बताता है, लेकिन अगर अन्य देश का नेता केवल मुलाक़ात करता है तो उसपर संदेह जताने लगता है। यही हाल तब हुआ था जब नरेंद्र मोदी बिना पूर्व कार्यक्रम के अचानक पाकिस्तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के घर पहुंच गए थे, तब भी इसी गोदी मीडिया ने मोदी की जनकर तारीफ़ की थी, लेकिन अगर यही काम भारत की किसी अन्य पार्टी के नेता ने किया होता तो आज तक उसपर देशद्रोही का टैग लगा होता।


बहरहाल ईरान के राष्ट्रपति और चीन के राष्ट्रपति के बीच यह कोई पहली मुलाक़ात नहीं है। इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति सैयद इर्बाहीम रईसी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सितंबर 2022 में शंघाई सहयोग संगठन में मुलाकात हुई थी। साथ ही सैयद इब्राहीम रईसी के 2021 में ईरान के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों ने 25 साल के रणनीतिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा मंगलवार को भी दोनों नेताओं ने कई द्विपक्षीय सहयोग के मुद्दे पर सहमति जताई है। राष्ट्रपति रईसी अपनी चीन यात्रा पर एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी साथ ले गए हैं, जिसमें केंद्रीय बैंक के गवर्नर और छह मंत्री भी शामिल हैं।


यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईरान जितना चीन के साथ अपना सहयोग बढ़ा रहा है उतना ही उसका वर्तमान में भारत के साथ भी सहयोग बढ़ा है। इसमें चाबहार बंदरगाह के अलावा रूस और भारत के बीच बनने वाली लाइफ लाईन भी शामिल है। भारत से अगर रिश्तों की बात करें तो ईरान से संबंध मित्रतापूर्ण रहे हैं। ईरान हमेशा भारत के साथ रहा है। चीन ने भारत को जब हिन्द महासागर में घेरने के लिए पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बनाया, तो ईरान ही था जिसने चाबहार बंदरगाह का भारत को एक्सेस दिया। ऐसे में भारत के गोदी मीडिया को ऐसे प्रोपेगंडों से ख़ुद को दूर रखना चाहिए कि जिससे दो मित्र देशों के बीच किसी भी तरह की दूरी पैदा होने की आशंका हो। जिस तरह दुनिया का हर देश अपने हितों को सबसे आगे रखता है उसी तरह ईरान भी अपने हितों के अनुसार अपनी नीतियां बनाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह किसी अपने दोस्त देश के ख़िलाफ़ कोई खिचड़ी बनाए। यह काम साम्राज्यवादी शक्तियों का है। जो हमेशा अपने दोस्तों के पीठ में खंजर घोंपता आए हैं और उसमें अमेरिका और पश्चमी देश सबसे आगे हैं।

(रविश ज़ैदी R.Z)

सोर्स ; पारस टुडे

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है