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ईरान के ख़िलाफ़ कोई भी युद्ध बेहद गंभीर होगा – द न्यूयॉर्क टाइम्स

ईरान और इस्राइल के बीच सीधे सैन्य टकराव की शुरुआत ने ईरान के सशस्त्र बलों की तरफ एक बार फिर लोगों को ध्यान खींचा है। इस महीने की शुरुआत में, इस्राइल ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के राजनयिक परिसर में एक इमारत पर हमला किया, जिसमें ईरान के सात वरिष्ठ कमांडरों और सैन्य कर्मियों की मौत हो गई थी। उसी समय ईरान ने जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई थी। और लगभग दो सप्ताह बाद उसने बीते शनिवार को इस्राइल पर हवाई हमला कर दिया, जिसमें सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलें शामिल थीं। इन हमलों का लक्ष्य इस्राइल के भीतरी और नियंत्रण वाले क्षेत्र को निशाना बनाना था। ऐसे में ईरान की सैन्य क्षमता का विश्लेषण प्रासंगिक है।

इस्राइली अधिकारियों ने कहा है कि ईरान के किसी भी हमले का हम पलटवार करेंगे। ईरान ने जिन मिसाइलों से इस्राइल पर हमला बोला, उनको तो इस्राइल ने कामयाबीपूर्वक झेल लिया। लेकिन, इसमें संदेह नहीं कि ईरान फिर हमला कर सकता है और यह अंततः एक व्यापक क्षेत्रीय युद्ध में तब्दील हो सकता है। ऐसी भी आशंका है कि इस संघर्ष में अमेरिका भी शामिल हो जाए, हालांकि वाशिंगटन ने स्पष्ट कहा है कि उसका दमिश्क हमले से कोई लेना-देना नहीं है।

विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के विरोधी (मुख्यतः अमेरिका और इस्राइल) तेहरान के जटिल सैन्य तंत्र से उलझना नहीं चाहते हैं, इसलिए दशकों से वे ईरान पर सीधे हमला करने से बचते रहे हैं। हालांकि ईरान और इस्राइल लंबे समय से हवाई, समुद्री, जमीनी और साइबर हमलों के माध्यम से छद्म युद्ध में लगे हुए हैं। इस्राइल ने ईरान के भीतर सैन्य एवं परमाणु ठिकानों को गुप्त रूप से निशाना बनाया है और कमांडरों एवं वैज्ञानिकों को मारा है। नेवल पोस्ट ग्रेजुएट स्कूल में राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के एसोसिएट प्रोफेसर और ईरानी सेना के विशेषज्ञ अफशोन ओस्तोवर ने बताया कि ईरान पर हमला नहीं करने का कारण यह नहीं है कि उसके विरोधी उससे डरते हैं, बल्कि उन्हें पता है कि ईरान के खिलाफ कोई भी युद्ध बेहद गंभीर होगा।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज द्वारा पिछले साल किए गए आकलन के मुताबिक, ईरानी सशस्त्र बल पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा है, जिसमें 5,80,000 सक्रिय जवान हैं और पारंपरिक एवं इस्लामी रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर में विभाजित करीब दो लाख प्रशिक्षित जवान सुरक्षित रखे गए हैं। सेना और गार्ड दोनों अलग हैं तथा जमीन, वायु एवं समुद्र में सक्रिय हैं। गार्ड ईरान की सीमा सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन वे कुद्स बल का भी संचालन करते हैं, जो पूरे पश्चिम एशिया में छद्म लड़ाकू गुटों के नेटवर्क को हथियार, प्रशिक्षण एवं समर्थन देने वाली विशिष्ट इकाई है। इन लड़ाकू गुटों में लेबनान के हिजबुल्ला, यमन का हूती, सीरिया, इराक के विद्रोही, हमास और गाजा के फलस्तीन इस्लामी जिहाद शामिल हैं। भले ही छद्म लड़ाकू गुटों को ईरान की सेना में नहीं गिना जाता, पर विश्लेषक कहते हैं कि उन्हें क्षेत्रीय सहयोगी बल माना जाता है, जो हमेशा लड़ाई के लिए तैयार, भारी हथियारों से लैस और वैचारिक रूप से ईरान के प्रति वफादार हैं, जो उसकी तरफ से लड़ने के लिए आ सकते हैं। खासकर हिजबुल्ला को ईरान की सैन्य क्षमता का हिस्सा माना जाता है, जिसका ईरान के साथ करीबी रणनीतिक रिश्ता है।

 

 

सटीक और लंबी दूरी की मिसाइलों, ड्रोन एवं हवा रक्षा के विकास पर जोर देते हुए दशकों से ईरान की रणनीति अवरोध पर आधारित रही है। इसने स्पीडबोट और कुछ छोटी पनडुब्बियों का बेड़ा तैयार किया है, जो फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य से गुजरने वाले व्यापारिक पोतों और वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को बाधित करने में सक्षम है। ओस्तोवर कहते हैं कि ईरान के पास पश्चिम एशिया में बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन का विशाल भंडार है। इसमें 2,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ ही क्रूज मिसाइलें एवं एंटी-शिप मिसाइलें भी हैं। वह इस्राइल सहित पश्चिम एशिया के किसी भी देश को निशाना बना सकता है।

 

 

विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल के वर्षों में तेहरान ने लगभग 1,200 से 1,550 मील की दूरी तक मार करने और रडार से बचने में सक्षम ड्रोन का बेड़ा किया तैयार है। ईरान ने अपनी मिसाइलों एवं ड्रोन को छिपाया नहीं है, बल्कि सैन्य परेडों में प्रदर्शित किया है, क्योंकि वह ड्रोन का बड़ा निर्यातक बनना चाहता है। ईरान के ड्रोन का इस्तेमाल रूस यूक्रेन में कर रहा है और सूडानी संघर्ष में भी इसे देखा गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ईरान के हथियार ठिकाने और भंडारण सुविधाएं व्यापक रूप से फैली हुई हैं और उन्हें हवाई हमलों से नष्ट करना मुश्किल है।

 

 

अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते ईरान टैंक और लड़ाकू जेट जैसे उच्च तकनीक वाले हथियारों और विदेशी सैन्य उपकरणों का आयात नहीं कर सकता है। 1980 के दशक में इराक के साथ आठ साल चले युद्ध के दौरान कुछ ही देशों ने ईरान को हथियार बेचने की इच्छा जताई थी। युद्ध खत्म होने के एक साल बाद 1989 में जब अयातुल्ला अली खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता बने, उन्होंने घरेलू हथियारों का उद्योग खड़ा करने के लिए काफी संसाधन खर्च किया। वह ईरान को आश्वस्त करना चाहते थे कि उसे अपनी रक्षा जरूरतों के लिए विदेशी शक्तियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। आज ईरान घरेलू स्तर पर बड़ी मात्रा में मिसाइलों और ड्रोनों का निर्माण करता है और उसने रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता दी है।

 

 

विशेषज्ञों का कहना है कि उपकरणों, सामंजस्य, अनुभव एवं सैन्यकर्मियों की गुणवत्ता के मामले में ईरान की सेना को क्षेत्र में मजबूत माना जाता है, पर अमेरिका, इस्राइल और यूरोपीय देशों की सेना से वह काफी पीछे है। ईरान की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी वायु सेना है। ईरान के ज्यादातर विमान पुराने हैं और उनमें से कई जरूरी कल-पुर्जों के अभाव में निष्क्रिय हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि 1990 के दशक में उसने रूस से एक छोटा बेड़ा भी खरीदा था। ईरान के टैंक और बख्तरबंद वाहन पुराने हैं, और देश में केवल कुछ बड़े नौसैनिक जहाज हैं।

 

 

वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की हत्याओं से ईरान के क्षेत्रीय अभियानों पर असर पड़ना लाजिमी है, क्योंकि उन्हें वर्षों का अनुभव था और सहयोगी लड़ाकू गुटों के प्रमुखों से उनके रिश्ते थे। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, ईरान के सशस्त्र बलों को कमांड करने की शृंखला बरकरार है।

-द न्यूयॉर्क टाइम्स