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ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका की प्रतिबंध और अधिकतम दबाव की नीति जारी : रिपोर्ट

पार्सटुडे – दोहरी कूटनीति और बाइडेन प्रशासन के दबाव की नीति जिसमें अमेरिका ने एलान किया कि वह उन 35 कंपनियों और जहाज़ों के ख़िलाफ प्रतिबंध लगाएगा जो ईरानी तेल को विदेशी बाज़ारों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने जो वाशिंगटन के आर्थिक वॉर रूम की भूमिका निभाता है, ईरान के ख़िलाफ़ ज़्यादा दबाव की नीति की परिधि में मंगलवार को एलान किया कि: आज अमेरिका ने 35 कंपनियों और जहाज़ों के ख़िलाफ़ नए प्रतिबंध लगाए हैं जो विदेशी बाजारों में ईरान के तेल के अवैध हस्तांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह कार्रवाई ईरान के तेल विभाग पर ज़्यादा से ज़्यादा लागत थोपती है।

अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने दावा किया है: तेल की आमदनी ईरान के परमाणु कार्यक्रम को आवश्यक संसाधन प्रदान करती है, उन्नत ड्रोन और मिसाइलों के विकास में मदद करती है और ईरान से जुड़े बलों की गतिविधियों के लिए निरंतर वित्तीय और भौतिक सहायता प्रदान करती है। मई 2018 में, अमेरिका एकतरफा और अवैध रूप से जेसीपीओए से निकल गया और उसने ईरान के ख़िलाफ़ सबसे गंभीर और कड़े प्रतिबंध लगा दिए।

अमेरिकी डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने भी विभिन्न बहानों के तहत और कूटनीति और दबाव के दोहरे नज़रिए की परिधि में इन प्रतिबंधों को जारी रखते हुए इस्लामी गणतंत्र ईरान पर और भी कड़े प्रतिबंध लगा दिये हैं। बाइडेन प्रशासन की नई कार्रवाई का उद्देश्य, ईरान के एयर डिफ़ेंस विभाग और ईरानी शिपिंग के ख़िलाफ़ यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के नए प्रतिबंध के साथ, तेहरान के खिलाफ पश्चिम के संगठित और समन्वित आप्रेशन्ज़ के तहत, ईरान के ख़िलाफ़ दबाव को तेज करना है तथा इसका मक़सद ईरान के तेल की आमदनी को कम करना है।

इसके अलावा, इस काम से, बाइडेन ने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा उनकी सरकार द्वारा ईरान से तेल निर्यात की उपेक्षा के आरोपों का जवाब भी दे दिया है। बेशक, नए प्रतिबंधों के लिए अमेरिका द्वारा दावा की गयी वजहों में वही बारम्बार के किए गए बहाने हैं, यानी परमाणु कार्यक्रम का वित्तपोषण, हथियारों के कार्यक्रम और क्षेत्र में प्रॉक्सी ग्रुप्स का समर्थन वग़ैरा।

ईरान लगभग 44 वर्षों से तेल प्रतिबंधों सहित एकतरफ़ा अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। जेसीपीओए से हटने और अधिकतम दबाव अभियान शुरू करने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति “डोनल्ड ट्रम्प” के राष्ट्रपति पद के दौरान ईरान विरोधी प्रतिबंध लगाने को नए और अभूतपूर्व आयाम मिले हैं।

बाइडेन प्रशासन के अनुसार, तेहरान द्वारा अमेरिका की अतार्किक और अवैध मांगों को मानने की उम्मीद में वाशिंगटन ने ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ सबसे गंभीर और कठोर प्रतिबंध लगाए हैं जो निश्चित रूप से असफल और नाकाम रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रम्प के कार्यकाल के बाद से ईरान के ख़िलाफ अमेरिका के अधिकतम दबाव अभियान का केंद्र बिंदु ईरान के तेल निर्यात को रोकना रहा है।

हालांकि, तेहरान विभिन्न तरीकों और ताज़ा से न केवल अपने तेल निर्यात को जारी रखने में सक्षम रहा है, बल्कि इस निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि भी कर रहा है, जैसा कि अमेरिकियों ने भी स्वीकार किया है। अमेरिकी थिंक टैंक “नेशनल इंटरेस्ट” ने एक रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ सालों के व्यापक आर्थिक रुझान ईरान के पक्ष में रहे हैं।

बताया गया कि: ऊर्जा सूचना एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी कच्चे तेल की औसत वार्षिक क़ीमत में बहुत वृद्धि हुई। यह 2022 में 84 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई जो 2020 में 29 डॉलर प्रति बैरल थी और कोविड-19 महामारी की वजह से थी। चूंकि अमेरिका का तेल की कीमत पर सीमित प्रभाव है इसीलिए क़ीमतों में वृद्धि ने ईरान को तेल बेचने और अधिक फ़ायदा उठाने की इजाज़त दी है जबकि प्रतिबंधों को लागू करने में बाइडेन प्रशासन की नाकामी भी साबित हुई है।

अमेरिकी राष्ट्रपतियों, विशेष रूप से डोनल्ड ट्रम्प का प्रयास, ईरान पर नियंत्रण स्थापित करने और परमाणु तकनीक के क्षेत्र सहित अमेरिका की अवैध और अतार्किक मांगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए ईरान के ख़िलाफ सबसे कठिन और सबसे व्यापक प्रतिबंध लगाने का रहा है। बाइडेन सरकार का नज़रिया भी ईरान के बारे में ट्रम्प प्रशासन के ज़ोर ज़बरदस्ती के दृष्टिकोण का ही जारी है जो निश्चित रूप से अप्रभावी साबित हुआ है।

ट्रम्प के वाइट हाउस में पुनः प्रवेश और उनके दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरुआत के साथ, यह उम्मीद की जाती है कि वह पहले की तरह ही नीति लागू करेंगे, यानी व्यापक आयाम में ईरान के खिलाफ अधिकतम दबाव की नीति, एक ऐसी नीति जिसकी नाकामी ट्रम्प के राष्ट्रपति पद के पहले कार्यकाल में एक बार साबित हो चुकी है।