धर्म

ईमान और यक़ीन : सहाबा कराम रज़ि अल्लाहु अलैहिम अजमईन के ईमान और यक़ीन ने उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल दी!


Farooque Rasheed Farooquee
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. ईमान और यक़ीन
सभी ईमान वाले अल्लाह के माबूद होने पर और हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि वसल्लम के आख़िरी पैग़म्बर होने पर ईमान रखते हैं और आख़िरत यानी हश्र का दिन क़ायम होने पर यक़ीन रखते हैं। फिर भी सब ईमानवालों के आमाल एक जैसे नहीं होते। अगर आप ग़ौर करें तो यक़ीन और ईमान की मंज़िलें भी अलग-अलग होती हैं। सहाबा कराम रज़ि अल्लाहु अलैहिम अजमईन के ईमान और यक़ीन ने उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल दी। वो दुनिया पर इस तरह छाए जैसे कभी बादल नहीं छाए। वो इस दुनिया के आसमान में सितारों की तरह जगमगाए। दुनिया के 35 लाख स्क्वायर किलोमीटर पर उनकी हुकूमत क़ायम हुई और उन्होंने अपने दौर के हर मशहूर मुल्क में इस्लाम का पैग़ाम पहुॅंचा दिया। वह इस दुनिया में सिर्फ़ अल्लाह और रसूल सललल्लाहु अलैहि वसल्लम की फ़रमाॅंबरदारी के लिए ज़िन्दा रहे और शहीद हुए या अपनी मौत तक पहुॅंचे।

हम सब मुसलमान भी इस्लाम के अक़ीदों और अहकाम पर यक़ीन रखते हैं लेकिन हमारे दीनी और दुनियवी मामलात कामयाबी के बलंद दर्जे पर नहीं हैं। यक़ीन की बुनियाद अमल है और यक़ीन की मंज़िलें होती हैं। कुछ मुसलमानों का इस्लाम पर यक़ीन कभी-कभी दिल में एक ख़्याल बनकर आता है और कुछ देर तक उसका असर रहता है। कुछ मुसलमान ऐसे भी हैं जो इस्लाम बारे में सोचते तो हैं लेकिन हालात की वजह से मजबूर हो जाते हैं। कुछ ईमान वाले यह महसूस करते हैं कि हर अमल दुरुस्त होना चाहिए क्योंकि अल्लाह हर लम्हे उन्हें देख रहा है और कुछ अल्लाह के वली ऐसे भी हैं जो यह महसूस करते हैं कि वो अल्लाह को देख रहे हैं। अल्लाह की निगाह में रहने वाला या अल्लाह को देखने वाला अपनी जान दे सकता है लेकिन ग़लत बात न कह सकता है और न कर सकता है।

हम अपने दौर के ख़राब होने की बात करते हैं। हम हालात के नाज़ुक होने की बात करते हैं। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि इस्लाम के लिए सबसे नाज़ुक ज़माना हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि वसल्लम का था। उस दौर में कोई इस्लामी तारीख़ नहीं थी। सहाबा के सामने कोई मिसाल नहीं थी और कामयाबी की कोई उम्मीद शुरू में तो बिल्कुल नज़र नहीं आती थी। उस दौर से ज़्यादा नाज़ुक दौर और कौन हो सकता है? हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा कराम की कोशिशों ने उस दौर को इस्लाम और इंसानियत का सबसे अच्छा दौर बना दिया।

यह हक़ीक़त है कि हालात बेहतर नहीं हैं लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी सबसे पहले ईमान वालों ही पर आती है। हमें अपने आमाल दुरुस्त करने चाहिए। हमारे लिए ज़िन्दगी भी कामयाबी है और मौत भी कामयाबी है। हमारी अस्ल ज़िन्दगी मौत के बाद शुरू होती है। अल्लाह सभी ईमान वालों को ईमान पर ज़िन्दगी दे और ईमान ही पर मौत दे। आमीन!

(फ़ारूक़ रशीद फ़ारूक़ी)