साहित्य

इस बार उसने फ़ोन काटा नहीं…

Madhu Singh
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मीटिंग के बीच में जब टेबल पर पड़ा फोन वाइब्रेट हुआ तो पुरे हाल का पता चल गया की किसी का फोन आया है। बड़े पोस्ट पर विद्यमान अधिकारी नें अपनी तरफ से बड़ी विनम्रता से कहाँ की फोन को साइलेंट करके बैठे प्लीज।
दीपक नें जल्दी से फोन को उठा कर काट दिया देखा भी नहीं की किसका फोन आया है। सॉरी सर बोलते हुऐ फटाफट फोन साइलेंट की बजाय स्विच ऑफ कर दिया। और गौर से फिर उस सफ़ेद बोर्ड की और देखने लगा जिस स्लाइड चल रही थी।
मीटिंग के तुरंत बाद भी अपना फोन ओंन करना भूल गया। काम बला ही कुछ ऐसी है अच्छी अच्छी बात भूल जाते है इंसान। बने रहना है अगर बॉस की नजरों में, दौड़ में प्रमोशन की, पैसे की, स्टेटस की, तो पूरा समय झोकना पड़ता है।
आप नहीं होंगे तो आप की जगह है कोई ओर लेने के लिये पीछे से टक्कर मार कर आगे निकलने वाले है बहुत है।
थोड़ी सांस आयी इन सब बातो से तो याद आया की फोन भी पड़ा है निर्जीव कहीं जेब में। तुरंत ही निकाला ओर उसका बटन दबा कर फिर उसे अपने संसार में प्रवेश दिया।
कुछ सोचता समझता इसके पहले ही बीवी का फोन आ गया। कहाँ हो आप फोन भी ऑफ़ है माँजी का फोन आया था।
इतना कहते है दीपक समझ गया की मीटिंग में बजने वाला वाइब्रेटर माँजी का ही होगा। थोड़ा छल्ला कर बोला ‘अरे हाँ पता है वो आने का ही बोल रही होगी।
करता हूँ में उनसे बात फ्री होकर।’
फ्री होना उसके लिये ऑफिस में तो मुमकिन नहीं था। वो भी माँ से बात करने के लिये। माँ से तो शाम को भी बात कर सकते है। अभी करना क्या जरुरी है। ऑफिस का टाइम खत्म हुआ लेकिन दीपक का अभी भी चल रहा है। यह फाइल दिखने में छोटी होती है लेकिन ज़िन्दगी निकल जाती है, इनमें सर घुसा घुसा कर।
ऑफिस में घर आया पत्नी नें कुछ कहाँ नहीं एक तो पहले ही लेट हो गये ऊपर से अगर फिर कोई ऐसी बात कह दी जिससे भड़ग गये तो उसकी खैर नहीं। इसलिये खाना गर्म करके खिला दिया।
रात सोते समय दीपक ही अचानक बोला ‘अरे तुमने याद नहीं दिलाया माँ को फोन करना था।’ पत्नी बोली ‘कहाँ करते यह आपका ऑफिस थोड़ी है जो रात 12 बजे तक खुला रहें समय देखो 1 बजा है, 11 बजे तो आपने घर में कदम रखा कब बात करते।’
चद्दर झटकाते हुये अब पत्नी को अहसास हो गया था की अब दिन का वो समय है जब वो थोड़ा बहुत पति को ताना मार सकती है।
‘माँ को 3 साल हो गये है आपसे मिलें कब से कह रही है की एक बार मिल लों। पर आप जाते ही नहीं।’
‘अरे तुम लोग तो गये थे पिछले साल’
‘हम गये थे आप को मिलना है।’
‘हाँ करता हूँ कुछ महीने 2 महीने में जानें का अभी छुट्टी नहीं लें सकता।’
सुबह होते ही वही दौड़ा भाग शुरू ऑफिस जानें के पहले ही ऑफिस घर आ जाता है। फोन आते रहते है एक चालू रहता है तो दूसरा कतार में रहता है। इसी बीच पत्नी आयी कुछ बोलने के लिये लेकिन साहब को मूड देखकर फिर किचन में चली गई।
दीपक नें जल्दी जल्दी अपने सारे ऑफिस को घर समेटा गाड़ी में डालने के लिये, गाड़ी से फिर वही ऑफिस की असली जगह पर लें जानें के लिये।
पूरा दिन फिर वही करना है काम। एक बार फिर माँ का फोन आया इस बार फिर काट दिया मन में यह सोचा की आज तो माँ से बात करूँगा ही। थोड़ा सा माँ पर प्यार भी आया। सोचा की अब फोन आया तो जरूर उठा लूंगा।
लेकिन फिर बजा नहीं, मन किया की करें बात लेकिन फिर दूसरा मन आ गया कहने की करेंगे ऑफिस के बाद।
फिर वही बात हुई काम में उलझ कर फिर से एक बार वो भूल गया माँ से बात करना । शाम को ऑफिस से जानें में फिर लेट हो गया।
घर गया तब दीपक को पत्नी को देख कर याद आया की आज उसने भी फोन नहीं किया पहलें तो कुछ नहीं बोला लेकिन खाना खातें वक्त सोचा की पूंछ लेता हूँ।
इसके पहले की पूछता पत्नी नें बोल दिया
‘मेरा फोन ख़राब हो गया है सुबह से ओंन नहीं हो रहा है। में आपको बतानें वाली लेकिन सुबह आप बिजी थे तो नहीं बात की।’
दीपक कुछ उसे कुछ कहता इसके पहले उसने घड़ी देखी समय फिर वही 10.30। सोचा माँ से बात करुँ लेकिन फिर सोचा की अब तक वो सो गई होगी इसलिये फोन नहीं किया। सोचा सुबह तो उठते ही फोन करूँगा।
इस बार इरादा पक्का था।
सुबह जैसे ही ऑफिस के लिये तैयार हुआ माँ को फोन किया। फोन उठाने के पहले ही सोचा की, बड़े प्यार से माँ से बात करेगा। छुट्टी की प्लानिंग करने लगा, मन ही मन उसे लग रहा था की माँ उसे बहुत याद कर रही है।
माँ नें फोन नहीं उठाया। ऑफिस में निकलने के पहले उसने पत्नी को कहाँ की सुनो तैयार रहना आज छुट्टी लेंकर आऊंगा शाम को माँ से मिलने चलने।
पत्नी भी सोच में पड़ गई यह अचानक क्या हुआ। बोली क्यूँ सब ठीक है क्या हुआ। बोला नहीं बस कब से बुला रही है। अब मुझे भी लग रहा है माँ से मिल आऊँ।
ऑफिस में जाते ही माँ का फोन आया. इस बार उसने फोन काटा नहीं।… फोन उठाते ही ऑफिस से सीधा घर गया।
पत्नी देखकर चौक गई कहाँ क्या हुआ। दीपक बोला चलो जल्दी कार में बैठो माँ की तबियत ठीक नहीं है मामा का कॉल आया था। राश्ते भर यह सोचता रहा की माँ कैसी होगी।
हड़बड़ी में घर चला गया। माँ कहते- कहते घर में घुसा लेकिन माँ नहीं थी। एक पल के लिये उसे अपने 3 साल में माँ के किये फोन याद आये, जब माँ उसे बुलाती थी मिलने, लेकिन वो सिर्फ कहता आऊंगा उसे भी पता था की वो ऊपर से कहता था जानें का कोई इरादा नहीं था। वो फोन भी याद आये जिनके आने पर वो भोए चढ़ा कर उन्हें काट देता था।
यह सब घर में खड़ा होकर वो सोच ही रहा था की पत्नी नें उसके कंधे पर हाथ रखा अरे माँ तो अस्पताल में है चले वहाँ।
उसकी सुन जैसी टूटी फिर गाड़ी घुमाई अस्पताल की ओर मन में बस यही दुआ की माँ ठीक हो बस अब हर दिन बात करूंगा, माँ की नहीं मानूँगा उनको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा।
अस्पताल पहुँचा और जब मामा नें उसे देखकर मुस्कुराते हुऐ कहाँ की ‘अब ठीक है चिंता की कोई बात नहीं’ इतना सुनकर ही फिर उसकी पलकों से रुके बाँध का टूटना हुआ। बच्चों की तरह रोया।
माँ के कमरे में गया तो माँ नें कहाँ ‘अरे रोता क्यूँ है अभी नहीं मरने वाली ठीक हूँ बेवजह तुमको परेशान किया में यों भैया को कह रही थी की मत बुलाओ उसे काम होगा।’
हाथ पकडे माँ का कहने लगा माँ में अच्छा बेटा नहीं हूँ। नहीं तू तो बहुत अच्छा है तभी तो दौड़ा आया। मेरे भाग अच्छे है इतनी फ़िक्र करते हो।
उस पल दीपक को लगा की वो माँ को फिर नहीं देख पायेगा। लगा की यह बोझ लिये जीना पड़ेगा। माँ बुलाती रही वो टालता रहा। समय रहते सिख जीना बहुत बुद्धिमानी का काम है।
दीपक फिर ना माना, माँ को अपने साथ ठीक होने पर लें गया। काम को छोड़ नहीं सकते लेकिन माँ को अपने साथ लें जानें के लिए तो मना सकते है।

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