विशेष

इस प्रकार ब्रिटेन की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल में अपना साम्राज्य स्थापित किया!

Er sachin rajpoot
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स्वीडन और डेनमार्क के बीच ओरेसंड ब्रिज है, यूरोप का सबसे लंबा ब्रिज और टनल !!
स्वीडन से आने वाला पुल समुद्र के नीचे सुरंग में बदल जाता है और डेनमार्क में फिर से दिखाई देता है; इंजीनियरिंग के इस खूबसूरत काम से दोनों देश एक हैं।
इसकी कुल लंबाई 16 किलोमीटर है और Øresund जलडमरूमध्य के माध्यम से डेनमार्क को स्वीडन से जोड़ता है। ओरेसंड ब्रिज 2000 में बनाया गया था और डेनमार्क और स्वीडन के बीच कारों (राजमार्गों) और ट्रेनों के पारित होने की अनुमति देता है। इसके निर्माण से पहले, दोनों देशों के बीच सभी यातायात नौका द्वारा किया जाता था।


Satish Kumar Paswan
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आज #प्लासी_विजय_दिवस है!
अगर बहुजन नजरिये से देखा जाय तो यह कोरेगांव विजय से बड़ी और आधुनिक भारत की सबसे बड़ी घटना है. इस घटना ने भारत के इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित किया. इसके बाद ही भारत में ब्रितानी साम्राज्य की बुनियाद पड़ी और भारत आधुनिक रूप अख्तियार करने लगा. इसी अंग्रेज भारत में आईपीसी लागू हुई, जिसके फलस्वरूप लोग कानून की नजरों में एक बराबर हुए और एक ही अपराध के लिए जो दंड शुद्रातिशुद्र के लिए मुकर्रर होते वही ब्राह्मण- क्षत्रियों को भी होने लगा. प्लासी युद्ध के असर को रेखांकित करते हुए मार्क्स ने लिखा है- the native army organised and traind by british drill sergeant was the sine quonan of indian itself emanicipatin and of india ceasing to be the parey of first foregn intruders.
जिस प्लासी युद्ध का इतना दूरगामी असर हुआ उसमें native army की भूमिका निभाने वाली प्रमुख थे : #दुसाध!
तो प्लासी युद्ध के नायक, जो राष्ट्रवादियों की नजर में खलनायक हो सकते हैं, दुसाध रहे .दुसाधों ने तत्कालीन ब्राह्मण -शक्ति समर्थित व पुष्ट मुसलमान राजशक्ति को शिकस्त देकर भारत के भावी इतिहास का नक्शा ही बदल दिया उन की भूमिका आंकलन करते हुए महान बहुजन इतिहासकार एसके बिस्वास ने लिखा है-अगर ‘#दुसाध’ अपनी भूमिका अदा नहीं किये होते तो अस्पृश्य बहुजन के भाग्याकाश में मुक्ति का सूर्योदय नहीं होता. न ही जन्म ग्रहण करते डॉ. आंबेडकर और बाबू जगजीवन राम ; न ही हमलोग देख पाते मान्यवर कांशीराम, बहन मायावती और दलित सेनाध्यक्ष राम विलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव इत्यादि भूरि-भूरि शुद्रतिशूद्र नायकों को. प्लासी युद्ध के अस्पृश्य ‘दुसाध’ सैनिकों के रक्तस्रोत और प्राण बलिदान की उर्वरक भूमि से ही उठकर मंत्री के सिंहासन पर आरुढ़ हुए थे डॉ. आंबेडकर 1942 में लेबर मंत्री बनकर : 1946 में अन्तर्वर्तिकालीन सरकार में मंत्री बने थे बाबू जगजीवन राम. आज के दिनों का दलित-बहुजन का संघर्सं और संग्राम और कुछ नहीं: प्लासी युद्ध में उनके पूर्व-पुरुषों के हथियार उठाने की परिणत अवस्था मात्र है.’

आज के दिनों में भले दुसाध मनुवादी और सवर्णवादी सत्ता के करीब नजर आये, किन्तु प्लासी युद्ध में उनकी भूमिका के लिए इस कौम को सैल्यूट किया जा सकता है. मुझे भारत के ज्ञात इतिहास में दुसाधों की एक ही भूमिका मुग्ध करती है: वह है ब्रितानी साम्राज्य की बुनियाद कड़ी करने में. उनकी भूमिका से प्रभावित होकर मैंने अपनी पहली रचना ‘आदि भारत मुक्ति बहुजन समाज: हिन्दू साम्राज्यवाद के खिलाफ मूल निवासियों के संघर्ष की दास्ताँ” में २७ पेज का एक खास अध्याय लिखा है, जिसका शीर्षक है: ‘ आधुनिक भारत के शिलान्यासी : दुसाध !
मैं प्लासी युद्ध विजय के अवसर पर प्लासी युद्ध के अनाम दुसाध सैनिको को सैल्यूट बजाता हूँ. – एच.एल. दुसाध
प्लासी युद्ध का क्या इम्पैक्ट हुआ, वह महान बहुजन लेखक डॉ. विजय कुमार त्रिशरण के लेख को पढ़कर समझने का प्रयास करें
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*प्लासी युद्ध : बहुजन मुक्ति का प्रथम संग्राम*
( 23 जून प्लासी युद्ध का विजय दिवस )
-डॉ विजय कुमार त्रिशरण
1. भारतीय इतिहास की तारीख में प्लासी का युद्ध इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ (टर्निंग पॉइंट ) है l इस युद्ध ने न केवल मुग़ल सल्तनत को जडमूल से उखाड़ कर ब्रितानियाँ हुकूमत की नीवं रखा , बल्कि सदियों से ब्राह्मणशाही व्यवस्था की बुनियाद हिला कर रख दी l
2. प्लासी युद्ध 23 जून 1757 को नबाब सिराजुदौला और लार्ड क्लाइव के बीच लड़ा गया था जिसमें, एक मुग़ल का नबाब तो दूसरा ब्रिटीशर था l युद्ध के मैदान में लार्ड क्लाइव के पास महज 2200 सैनिक थे जबकि सिराजुदौला के की ओर से 50 हज़ार सैनिकों को उतरा गया था, जिसमें 15000 घोड़सवार और 35000 पैदल सेना शामिल थे .
3. सिराजुदौला के इस विशाल सेना की मुकाबला करने के लिए लार्ड क्लाईव के 2200 सैनिकों में से केवल 500 सैनिक प्लासी के मैदान में युद्ध के लिए मोर्चा संभाले थे l
4. बाबासाहेब डॉ० आंबेडकर के अनुसार ये सैनिक भारतीय मूलनिवासी अछूत थे जो दुसाध जाति के थे l ये 22 जून को हुगली नदी को पर कर प्लासी ग्रूव में युद्ध के लिए पहुंचे थे l
5. 23 जून को दोनों सेनाओं के बीच मात्र दो घंटे (दोपहर दो बजे से चार बजे तक) की भयंकर भिडंत हुई l इस महज़ दो घंटे के आमने-सामने के घनघोर मुकाबले में क्लाइव के मूलनिवासी वीर अछूत सैनिकों ने सिराजुदौला और उसके सेनापति मीर मदन को मौत की नींद सुला कर प्लासी युद्ध को फतह कर लिया l
6. इस प्रकार ब्रिटेन की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल में अपना साम्राज्य स्थापित किया जिसमें भारत के मूलनिवासी अछूत सैनिकों की अहम् भूमिका थी l
7. सुप्रसिद्ध विद्वान प्रो० सीले के अनुसार “क्लाइव के सेना में एक भाग ब्रिटिश योद्धा और चार भाग स्थानीय भारतीय योद्धा (जो अछूत वर्ग के) थे l इस दृष्टिकोण से यह मुश्किल से कहा जा सकता है कि भारत विदेशियों द्वारा विजित हुआ , बल्कि यह कगना उचित होगा कि भारत स्वयं द्वारा भारत द्वारा विजित हुआ l”
8. प्रो० सीले आगे कहते हैं कि स्वयं को जब कोई स्वयं जय करता है तो उस पराजय नहीं कहा जाता ; वह तो स्व-मुक्ति के लिए सर्वश्रेठ विजय है l
9. प्लासी युद्ध बहुजन मुक्ति का प्रवेश द्वार है l प्लासी विजय के बाद ही भारत में ब्रिटिश हुकुमत की स्थापना हुई , दुसरे कि सदियों से वैदिक और मनुवादी विधान नरपशु बना दिए गए भारत के मूलनिवासी वर्ग को मानवीय जीवन जीने का अधिकार मिला l जहाँ मनुवादी व्यवस्था ने मूलनिवासियों को अछूत बना कर पशु से भी बद्तर जीवन जीने को मजबूर कर दिया था , वहां ईस्ट इंडिया कंपनी ने अछूतों को सेना में भर्ती कर नौकरी , शिक्षा और स्वाभिमान की ज़िन्दगी प्रदान किया l
10. बाबासाहेब डॉ० आंबेडकर ने प्रो० सीले के शोध को आगे ले जाते हुए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर रायटिंग एंड स्पीचेज वोल्यूम 12 में अपने शोध के निष्कर्ष में लिखा है कि “प्लासी के युद्ध जितने वाले मूल भारतीय सैनिक अछूत समुदाय के थे l वे लोग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सेना में भर्ती थे, वे अछूत थेl जिन्होंने क्लाइव के साथ प्लासी का युद्ध लड़ा वे दुसाध थे और जो कोरेगावं (01 जनवरी 1818 को ) का जंग लड़े वे महार थे l”
11. एच एच रिजले ने लिखा है कि “सन 1757 में प्लासी युद्ध में लार्ड क्लाइव की ओर से लड़ने वाले सेना में अधिकांश सैनिक दुसाध थे l” इस प्रकार दुसाधों ने जिस मुक्ति संग्राम का आगाज़ किया, उसे कोरेगावं में अंजाम दिया था महारों ने l
12. बाबासाहेब के शोध के अनुसार “योद्धा प्रवृति के कारण ही ईस्ट इंडिया कम्पनी के बंगाल आर्मी में दुसाध और बम्बई आर्मी में महार आर्मी के प्रमुख अंग थे l महार प्रथम भारतीय थे जो यूरोपियन्स के संपर्क में आए थे l”
13. प्लासी और कोरेगावं का युद्ध महज युद्ध नहीं, बल्कि भारतीय मूलनिवासी अछूतों के लिए मुक्ति संग्राम था l प्लासी युद्ध प्रथम और कोरेगावं युद्ध द्वितीय बहुजन मुक्ति संग्राम थाl
14. कार्ल मार्क्स ने अपने एक लेख में लिखा है कि “स्थानीय भारतीय सैनिकों, जो ब्रिटिश ड्रिल सार्जन्टों द्वारा गठित और प्रशिक्षित थे , अपने प्रथम विदेशी आक्रमणकारी घुसपैठिए (First foreign intruders) के अत्याचार के शिकार बनने से बचने के लिए अपनी मुक्ति संघर्ष की शुरुवात किए l”
15. इस प्रकार विदेशी वैदिक ब्राह्मणों के विरुद्ध भारत के इतिहास में विगत एक हज़ार सालों में पहली बार दुसाध सैनिकों ने बहुजन मुक्ति संग्राम की शुरुवात की l प्लासी युद्ध के संबंध में बंगाल के सुप्रसिद्ध इतिहासकार मा० एस के विश्वास लिखते हैं कि “अगर प्लासी युद्ध में दुसाध अपनी भूमिका ग्रहण नहीं किये होते तो अश्पृश्य बहुजन के भाग्य के आकाश में मुक्ति का सूर्योदय नहीं होता l”
16. विश्वास आगे लिखते हैं प्लासी युद्ध के अश्पृश्य दुसाध सैनिकों के रक्तधारा और प्राणोत्सर्ग की उर्वर भूमि से ही उठ कर मंत्री के सिंहासन पर आरूढ़ हुए थे डॉ० आंबेडकर 1942 में श्रम मंत्री बन कर और बाबु जगजीवन राम 1946 के अंतरिम सरकार में मंत्री पद ग्रहण कर l इस प्रकार इस दृष्टिकोण से प्लासी का युद्ध काफी अहम् है l
17. मा० विश्वास के अनुसार “आज के दिनों का दलित-बहुजन समाज का संघर्ष और कुछ नहीं , बल्कि प्लासी युद्ध में उनके पूर्वज सैनिकों के हथियार उठाने के परिणत अवस्था मात्र है l”
18. यदि 23 जून को दुसाध सैनिकों ने प्लासी को नहीं जीता होता तो 01 जनवरी 1818 को कोरेगावं के युद्ध में पेशवाओं की क्रूरतापूर्ण राजशाही सत्ता ध्वस्त नहीं होता l ये वही पेशवा थे जिन्होंने अछूतों के गले में हांड़ी और कमर में झाड़ू लटकाने का फरमान जारी किया था l इस प्रकार प्लासी का युद्ध भारतीय मूलनिवासियों के लिए मुक्ति का प्रथम प्रवेश द्वार था जिसने कोरेगावं विजय का मार्ग प्रशस्त किया l
19. बाबासाहेब डॉ० आंबेडकर लिखते हैं कि “कुछ लोग अछूतों के अंग्रेजों को जितवाने में सहयोग करने के कृत्य को देश्द्रोहिता की संज्ञा दे सकते हैं परन्तु इस मामले में अछूतों की भूमिका विल्कुल निष्पक्ष था क्योंकि यह स्वयं की मुक्ति के लिए स्वयं द्वारा भारत की जित थी l”
20. डॉ० आंबेडकर ने लिखा है कि “वास्तव में भारत 1757 से 1818 के बीच विजित हुआ” वे प्लासी युद्ध को कोरेगावं की युद्ध से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते थे क्योंकि 1757 में विजित प्लासी युद्ध 1818 में कोरेगावं के मैदाने जंग में उतरने वाले योद्धाओं के प्रेरणास्रोत था l इस प्रकार यह दोनों ही युद्ध अद्वितीय था l
21. वर्तमान में पं० बंगाल के नदिया जिले में प्लासी युद्ध में लड़े वीर सैनिकों की स्मृति में , एक विजय स्तम्भ बना हुआ है l बहुजनों को इसके सम्बन्ध में अभी पर्याप्त जानकारी और जागरूकता नहीं है l परन्तु प्लासी विजय स्तम्भ के प्रति भी कोरेगावं विजय स्तम्भ की भांति अपने पूर्वजों की त्याग, संघर्ष और बहुजन गौरव के प्रतिक के रूप में पहचान स्थापित करने की आवश्यकता है l इसके लिए बहुजनों को प्रति वर्ष 23 जून को नदिया जा कर कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने की परंपरा विकसित करने की तथा विजय दिवस मानाने की आवश्यकता है; इससे मूलनिवासी बहुजन समाज को अपने समाज की मुक्ति के लिए पूर्वजों की वीरता और त्याग ले प्रेरणा और उर्जा प्राप्त होगी l

Sukhpal Gurjar
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कृपया इस पर ध्यान दें….
घर में एक आदमी और उसकी पत्नी का झगड़ा हुआ। 20 मिनट बाद आदमी बाथरूम में नहाने गया…
जब वह स्नान कर रहा था, तो वह बाथरूम के अंदर गिर गया… उसने अपनी पत्नी को आवाज दी, लेकिन उसकी पत्नी ने कोई जवाब नहीं दिया…
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एक घंटे के बाद उसने देखा कि उसका पति बाथरूम से बाहर नहीं आया है। उसने उसका नाम पुकारा कोई जवाब नहीं…
अब तो सब कुछ छोड़कर वह बाथरूम की ओर दौड़ी।
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उसका पति पहले ही मर चुका था, क्योंकि उसका शरीर ठंडा था…
चाहे आप कितने भी क्रोधित या दुखी क्यों न हों, मदद के लिए पुकारने वालों की बात कभी न टालें, अगर औरत ने अपने पति के बुलाने पर ध्यान दिया होता, तो उसकी हालत देखकर समय पर उसे अस्पताल 🏥 ले जाती और वह बच जाता… ..
जब कोई आपको फ़ोन पर कॉल करे, तो नज़रअंदाज़ न करें, या मत कहें कि आप बहुत व्यस्त हैं, क्योंकि आप नहीं जानते कि वह किस प्रकार की जानकारी आप तक पहुँचाना चाहता है।
जब आप किसी का मिस्ड कॉल देखते हैं, तो कॉल बैक करने का प्रयास करें, सिर्फ यह जानने के लिए कि उसने कॉल क्यों किया…
आप कभी नहीं जान सकते हैं कि किसी को आपकी मदद की ज़रूरत है, या वह आपको बचाना चाहता है या वह व्यक्ति खतरे में है और चाहता है कि आप उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करें…
“I don’t care” की जिंदगी मत जिओ….
आप किसी की जान बचा सकते हैं, यादि आप तुरंत आवश्यक कदम उठाते हैं।
वर्षा जैन जी की कलम से