विशेष

इस चित्र में जो दूर से बगिया में गजी खरही दिख रही है वो पीटे गए धान के पुआल की बनी है

अरूणिमा सिंह
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सुखद दृश्य है न!
बगिया है, बगिया में खलिहान है, खलिहान में खरही है।
वही खरही जो पिछली पोस्ट में बताया था। उस पोस्ट में जो खरही जिस पैरे का था वो दउरी के थे।
दउरी मतलब दाया हुआ अनाज।
जब धान अधिक हो पीटकर धान निकालने का समय, काम करने के लिए लोग या इतनी मेहनत करने का मन न हो तो खिलहान को गोबर मिट्टी से लीपकर साफ करके वहाँ सारे धान गोल आकार में फैला दिये जाते है। दिन भर धान धूप में सूख कर बढ़िया खर हो जाता है फिर शाम को गांव से दो तीन जोड़ी बैल बुलाकर उन पर चलवाते है। एक आदमी डंडे से धान की डंठलो को इधर उधर उलटता रहता है ताकि नीचे के ऊपर हो जाये और सब डंठल से धान अलग हो जाये। इस प्रक्रिया को दउरी चलाना, दाया गया या दउरी नाधना कहते है।
दौरी के बाद भी यदि कुछ अनाज डंठल में लगे रहते तो उसे छकनी से पीटकर अलग कर लेते है। रात में दाये गए धान को सुबह झाड़ कर पुआल अलग अनाज अलग कर लिया जाता है।


दौरी से दाये जाने पर अनाज में कचरा अधिक रहता है इसलिए उसे परौता चलाकर ओसा कर साफ करते है। दौरी वाले धान का पुआल उलझा हुआ होता है इसकी खरही सुंदर व्यवस्थित नहीं होती है। उसे बस यू ही गांज देते है।
दौरी का पुआल गाय भैस की नीचे बिछाने में, बिस्तर बनाकर सोने में, कौड़ा तापने कंडा (उपले ) बनाते समय गोबर में मिलाने में,टूटे छप्पर की मरम्मत करने के ही काम में आता है।
तख्त रखकर हाथ से पीट कर डंठल से धान अलग किये गए पुआल के छोटे छोटे गट्ठर रहते है उसे ही उठाकर पीटते है तो यही गट्ठर खरही बनाने में आसानी करते है। इन गट्ठरो से बनी खरही बहुत व्यवस्थित और सुंदर बनती है।
इस पुआल से नया छप्पर बनाने, बैठने के के लिए बिड़वा बनाने, गन्ने इत्यादि के बोझ बाधने के लिए जुईना (रस्सी )बनाने जैसे बहुत से काम में प्रयोग किया जाता है।
इस चित्र में जो दूर से बगिया में गजी खरही दिख रही है वो पीटे गए धान के पुआल की बनी है इसलिए काफ़ी सुंदर लग रही है।
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अरूणिमा सिंह