अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर प्रेम और दया से भरे इस्लाम धर्म को हिंसा और तलवार के बल पर फैलने वाले धर्म के रूप में क्यों पेश किया गया? एक ऐसा धर्म जो अपनी पवित्र पुस्तक क़ुरआन में प्रत्येक अध्याय की शुरुआत ही ईश्वर की दया के नाम से करता है।
यहां हम 4 कारणों पर संक्षिप्त नज़र डालते हैं।
1 – राजनीतिक और साम्राज्यवादी इरादे
खेद के साथ कहना पड़ता है कि अधिकांश आरोपों और अनुचित शब्दों का स्रोत जो आम जनमत में कहे और डाले जाते हैं, राजनीतिक दुश्मनी और इरादे लिए हुए होते हैं।
प्रतिरोधी विचारों के साथ संघर्ष में साम्राज्यवादी इरादे एक महत्वपूर्ण कारक हैं
चूंकि इस्लाम धर्म, अन्य धर्मों के विपरीत, एकेश्वरवाद, जनता, धर्मपरायणता और न्याय पर आधारित राजनीतिक प्रशासन का एक स्पष्ट मॉडल रखता है और हमेशा इसका पालन भी करता है जबकि राजनीतिक माफिया और धाराएं विभिन्न साजिशों की प्रयास कर रही हैं और हिंसा पैदा करने सहित विभिन्न संदेहों को हवा दे रही हैं और इसी चीज़ के बढ़ावे ने राष्ट्रों को इस्लामोफ़ोबिया के जाल में फंसा दिया है और व्यवहारिक रूप से इस धारा पर ही रोक लगा दी है जो उनकी योजनाओं को बाधित करती है।
2 – क्षेत्रीय विशेषज्ञों की ग़लतफ़हमी
कुछ तथाकथित टीकाकारों और विशेषज्ञों ने धार्मिक ग्रंथों की सही समझ न होने के बावजूद मुस्लिम शासकों के कार्यों और व्यवहारों को जो धर्म और न्याय के आधार पर नहीं थे बल्कि तलवार के बल पर जनता पर शासन करते थे, इस्लाम धर्म के दृष्टिकोण के समान माना जबकि यह सत्य और सही है कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के क्रियाकलापों को किसी धर्म का मापदंड क़रार नहीं दिया जाना चाहिए।

एक यहूदी विशेषज्ञ गोल्डज़िहेर की तस्वीर, जिसने इस्लाम के बारे में विचारों को आकार देने में प्रभावी किरदार अदा किया
प्रामाणिक और पुष्ट इस्लामी शिक्षाओं का उल्लेख करने के बजाय विशेषज्ञों ने इस्लामी इतिहास के कुछ कालखंडों में कुछ राजाओं और ख़लीफ़ाओं के व्यवहार के आधार पर अपने सिद्धांतों को समायोजित और प्रचारित किया है जिनमें से अधिकांश शासक धोखे और बल से सत्ता में आये थे।
3- नकली, काल्पनिक और अपूर्ण इस्लामी नज़रियों की भरमार
इन बातों के अलावा, दाइश या अल-कायदा गुट का उल्लेख करना ज़रूरी है जो हिंसा, क्रूरता, निर्दयता और इस्लाम से दूरी और अलगाव का प्रतीक थे और एक स्पष्ट रूप से मुस्लिम दुनिया पर पश्चिम की ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेन्सियों के समर्थन से क़ब्ज़ा किया। इन में कुछ समय के लिए इराक़, सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों की ओर इशारा किया जा सकता है।
कुछ अमेरिकी अधिकारियों की स्वीकारोक्ति के बावजूद, इस बात का सबसे अच्छा और मज़बूत सबूत उन हथियारों की मात्रा है जो इन देशों ने इन युद्धों के दौरान में विभिन्न देशों को बेचे थे।
आईएसआईएस आतंकियों के काफिले की एक व्यवस्थित परेड जिसमें उसने वाहनों और उपकरणों के साथ शक्ति प्रदर्शन किया
बेशक दुनिया के मुसलमानों ने इन मुस्लिम हस्तियों के प्रति घृणा और अरुचि व्यक्त की और उनके कार्यों को साम्राज्यवादियों की पहचान क़रार दिया न कि इस्लामी प्रवृत्ति पर।
इन लोगों के मुस्लिम विरोधी व्यवहार का सबसे अच्छा प्रमाण पवित्र क़ुरआन है जो एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या को पूरी दुनिया की हत्या के बराबर बताता है।
ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए माएदा की आयत संख्या 32 में कहता है कि इसी आधार पर हमने बनी इस्राईल पर लिख दिया कि जो व्यक्ति किसी व्यक्ति को, किसी व्यक्ति के बदले या ज़मीन पर भ्रष्टाचार की सज़ा के अलावा क़त्ल कर दे तो उसने मानो सारे इंसानों को क़त्ल कर दिया।