धर्म

इस्लामी संस्कृति व मूल्यों की ओर पलट आना मुसलमानों के पश्चिमी संस्कृति से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग है

एक अध्ययनकर्ता का कहना है कि आपसी समझबूझ इस्लामी संस्कृति के प्रचार- प्रसार का रास्ता व मार्ग है और एक विचार व धारणा को फ़ैलाने का सबसे बेहतरीन रास्ता जंग व विवाद नहीं है बल्कि चिंतन- मनन करने वालों के साथ सिद्धांतिक व तार्किक वार्ता है।

अंतरराष्ट्रीय दर्शनशास्त्र दिवस के अवसर पर दर्शनशास्त्र की बहसों में रूचि रखने वाले बहुत से लोगों की उपस्थिति में ईरान के पवित्र नगर क़ुम में एक कांफ्रेन्स आयोजित हुई। इस कांफ्रेन्स में दर्शनशास्त्र के संबंध में इमाम ख़ामेनेई के विचारों पर भी प्रकाश डाला गया।

पार्सटुडे ने न्यूज़ एजेन्सी मेहर के हवाले से बताया है कि सैय्यद मोहसिन शरीफ़ी ने इस कांफ्रेन्स में दर्शनशास्त्र के संबंध में ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस संबंध में कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के विचार में संस्कृति हर समाज का आधार और समस्त कामयाबी व नाकामी की स्रोत है।

साथ ही इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के बयानों में विभिन्न संस्कृतियों की बात की गयी है जैसे इस्लामी व साम्राज्यवादी संस्कृति आदि।

इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि इस्लामी और पश्चिमी संस्कृति में से हर एक दावा करती हैं कि वह एक अंतरराष्ट्रीय संदेश लिए हुए हैं। अलबत्ता इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह.का मानना है कि वह इस्लामी संस्कृति जिसमें किसी प्रकार की हेराफ़ेरी नहीं हुई है ग़ैर इस्लामी व पश्चिमी संस्कृति से बेहतर है।

शरीफ़ी आगे कहते हैं दूसरी संस्कृतियों विशेषकर पश्चिमी संस्कृति के साथ इस्लामी संस्कृति के लेनदेन के संबंध में इस्लामी जगत के प्रतिभाशालियों के मध्य एक दूसरे से भिन्न तीन दृष्टिकोण मौजूद हैं।

कुछ प्रतिभाशालियों का मानना है कि प्रगति के एकमात्र मार्ग के रूप में पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता को स्वीकार करना चाहिये जबकि दूसरा गुट इस दृष्टिकोण को पूरी तरह नकारता है और उसकी उपलब्धियों को बयान किया और उसका मानना है कि पश्चिमी संस्कृति से इस्लामी संस्कृति का संबंध इस्लामी संस्कृति के ख़राब होने का कारण बनेगा।

प्रतिभाशालियों के तीसरे गुट का मानना है कि संस्कृतियों के मध्य सही संबंध स्थापित होना चाहिये। इस गुट का मानना है कि अगर संस्कृतियों के मध्य सही संबंध स्थापित हो जाये तो वह प्रगति का कारण बनेगा। संस्कृतियों के बारे में इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. का जो विचार है वह तीसरे गुट के विचार से निकट है।

यह अध्धयनकर्ता आगे कहता हैः दो चीज़ें पश्चिमी संस्कृति का मूल तत्व हैं। पहले तत्व में वे चीज़ों शामिल हैं जिनका कोई मूल्य व महत्व नहीं है या उनका कोई विशेष आधार नहीं है और दूसरे तत्व में वे चीज़ें शामिल हैं जिनका महत्व है या उनका कोई विशेष विशेष आधार है। पश्चिमी संस्कृति के मुक़ाबले इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. का विचार दृष्टिकोणों को अलग करना है यानी उनका मानना है कि पश्चिमी संस्कृति की जो कमियां व त्रुटियां हैं उन्हें एक तरफ़ रखा जाना चाहिये और जो अच्छाइयां हैं जैसे प्रगति के क्षेत्र में, उन्हें एक तरफ़ रखा जाना चाहिये। यानी पश्चिमी संस्कृति की अच्छाइयों और बुराइयों को एक दूसरे से अलग करना चाहिये। दूसरे शब्दों में पश्चिमी संस्कृति की कुछ चीज़ों को स्वीकार करना चाहिये और कुछ को स्वीकार नहीं करना चाहिये।

इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. उन विचारकों और दर्शनशास्त्रियों में से थे जिन्होंने विवादों के मध्य बीच का रास्ता चुना और उनका मानना था कि भौतिक प्रगति के साथ नैतिकता और अध्यात्मक को भेंट नहीं चढ़ाना चाहिये।

वह कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. का मानना है कि पश्चिमी संस्कृति के नकारात्मक बिन्दुओं का मुक़ाबला किया जाना चाहिये। उनका मानना है कि इस्लामी संस्कृति व मूल्यों की ओर पलट आना मुसलमानों के पश्चिमी संस्कृति से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग है।