साहित्य

इश्क़ ही तो है

Mamta Prajapati
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इश्क़ ही तो है
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अक्सर उलझ जाती थी खुद में ही
फिर कुछ इस तरह सुलझाती थी
इश्क़ ही तो है
हर हक उसका ही तो है
बेशक हिस्से आये थे मेरे
वो खुश्क सी हॅंसी तेरी
और कुछ सुस्त से किस्से
गाहे बगाहे की मुलाकातें
उदास और लंबे दिन
सिसकती अंधेरी रातें
खिन्न हो जाता था मन मेरा
फिर कुछ इस तरह बहलाती थी
इश्क़ ही तो है
हर हक उसका ही तो है
बेशक हिस्से आये थे मेरे
जमाने भर की रुसवाईयाँ
जिंदगी जहर करते सवाल
कुछ दम तोड़ते से जवाब
इंतज़ार की घड़ियाँ
राह तक तक थकती आंखियाॅं
हॅंसी आती थी खुदपर ही
फिर कुछ इस तरह संभालती थी
इश्क़ ही तो है
हर हक उसका ही तो है
बेशक हिस्से आये थे मेरे
टूटे फूटे वादे, दम तोड़ते इरादे
पराये से वो अपने
तमाशा बनती जिंदगी और
तमाशाइयों में शामिल तुम
ममता देवी ✍️✍️